जानिए जंगल को : एक ग़ज़ल जंगल की
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बल्लम कुल्हाड़ी बरछियां तीरो कमान थे
हम बेज़ुबान जंगलियों की वो ज़ुबान थे
हम झोंपड़ी थे क़द भी हमारे हदों में थे
ऊंचाइयों की होड़ में ऊंचे मकान थे
महुए के फूल ज़्यादातर 'अपनी' रगों में थे
'उनकी' रगों में दौड़ते केवल गुमान थे
हर्रे बहेड़े आंवले भिलमा गुली ओ चार
बेचान्दी कोदो कुटकियाँ ही खानपान थे
सालों के पक्ष में कभी तेंदू के पक्ष में
हर साल जांच में दिए हमने बयान थे
नदियां पहाड़ घाटियां जंगल की खोह में
सांसें हंसी ख़ुशी तो क्या दुनिया जहान थे
तुम जिनको जंगली जानवर कहते हो जानेमन
वे शेर गौर भालू हिरन ख़ानदान थे
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@कुमार,
२२.०८.२३, भाएसाअके, बालाघाट,
७.०२-९.१५ प्रातः, मंगल भ्रमण
शब्दार्थ :
बल्लम = एक लंबी बेंत या बांस की छड़ी जिसके सामने लोहे की नोंक होती है। बरछी = भाले की ही जाति का औज़ार जिसकी फाल या नोंक थोड़ी छोटी होती है। हर्रा = एक कसैला नीरस फल जिसका उपयोग काला रंग बनाया जाता है, दवा में त्रिफला का एक भाग। बहेड़ा = एक गूदेदार फल जिनकी गुठली का बीज मीठा किंतु मादक होता है, दवा में त्रिफला का एक भाग। आंवला = एक खट्टा किंतु विटामिन्स और मिनरल्स का भंडार,त्रिफला का एक भाग। भिलमा : छुआरे की तरह का ऐसा मीठा फल जिसकी काली गुठली फल के बाहर होती है तथा चमड़ी पर उसका असर घाव कर देता है, इस गुठली के रस को दवा की तरह वात एवं दर्द की जगह पर जंगलवासी और ग्रामीण जन लगाते हैं। दाल में इसे डाल कर उसे स्वादिष्ट तथा औषधीय बनाते हैं। गुली = महुए का फल जिसका तेल घी की तरह जमता है तथा इसे खाने एवं दिया जलाने के उपयोग में लाते है। इसकी खली (तेल निकालने के बाद की छूछ) को पौष्टिकता के लिए जानवरों की सानी में डाला जाता है। चार : बेर की तरह का काला फल जिसकी गुठली के तेलीय बीज को मेवे की तरह हर मिष्ठान्न में डाला जाता है। बेचान्दी = नदी किनारे के खास पौधे की मोटी मुलायम जड़ या तना जिसके चिप्स को तल कर खाया जाता है आलू की चिप्स की तरह।
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