क्या लिखूं? कितना लिखूं? कब कब लिखूं?
दर्द के गहरे समंदर! रात दिन पल पल लिखूं?
जागृति का घट, छलकती ज्योति, जगमग रश्मिरथ,
सप्त अश्वों, चक्र चौबीसों पे मैं किस पर लिखूं?
क्लिष्ट था या श्लिष्ट था कुछ भी समझ आया नहीं,
ओ कठिन जीवन तुझे कितना सरलतम कर लिखूं?
फूल के गजरे सिरों पर, पांव... पत्थर पर चले,
घाव की पीड़ा लिखूं? या सुरभियों के गढ़ लिखूं ?
लाभ-हानि लिख रही दुनिया बही-खाते में रोज़,
मैं मगर भोगे हुए जीवन के कुछ सुख दुख लिखूं।
@कुमार, ०९.१०.२१, ०४.१५
फेसबुक से साभार.
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