गिने-चुने पोषक दाने बस, हैं आहार हमारा।
हमें देख खुश होते बच्चे, ही अनमोल सहारा।
आज़ादी की सांसें हमसे,
अब तक ग़ैर रही हैं।
शाम-सुबह, दिन-रात, हमारी दुनिया में हैं कौतुक।
आते जाते लोग और हम, दोनों दर्शक, उत्सुक।
नपे-तुले आयत में अपनी,
सारी सैर रही हैं।
बाज़ारों के कलपुर्ज़े हैं, आकर्षण, मन-रंजन।
अभिनन्दन, सुस्वागत, वंदन, अंजन, मंडन, भंजन।
अधिकारों की सभी ऋचाएं,
गर्हित-वैर रही हैं।
०
@रा. रामकुमार, १६.०३.२०२३, १०.१५,
अभिनन्दन, सुस्वागत, वंदन, अंजन, मंडन, भंजन।
अधिकारों की सभी ऋचाएं,
गर्हित-वैर रही हैं।
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@रा. रामकुमार, १६.०३.२०२३, १०.१५,
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