तेरह दोहे (10+3)
केवल अवगुण देखते, विश्व-गुरू विद्वान।
घर-घर जाकर बांटते, जांघ ठोंककर ज्ञान।।१
कतर ब्यौन्त में कुतरता, पर विपक्ष के, पक्ष।
विविध कैंचियों से भरा, उसका कुंठित-कक्ष।।२
अपनी जय-जयकार को, केवल, रखें सहेज।
अन्यों के गुणगान से, करते हैं परहेज।।३
मार्ग-मरम्मत का लिया, ठेका अपने हाथ।
केवल गड्ढे देखकर, मचलें उनके हाथ।।४
स्वयं प्रबंधक कर रहे, सब गड़बड़ियां, शोर।
हंगामे का ठीकरा, किसी और की ओर।।५
बढ़ी विषम विद्रूपता, बने सहायक-न्यास।
कौशल पर-उपदेश का, अब है सबके पास।।६
बहुत देर सच गोदकर, थका अचानक न्याय।
विवश शासकाधीश ने, लिखा शेष-अध्याय।।७
शांत-शुद्ध-रस में मिला, घाल-मेल का घोल।
गोल-मोल अनगढ़ हुए, बड़-बोले के बोल।।८
कुछ पूछो, कुछ बोलता, अपराधी चालाक।
उड़ा-उड़ा सा तिर रहा, तालों पर तैराक।।९
उद्भट मल्लों को किया, बांध, धांध कर लुप्त।
खुला-द्वंद्व घोषित हुआ, वह भी बिल्कुल गुप्त।। १०
@ रा. रामकुमार, १८.०३.२३, ७.३०,
कारागारों में गए, तथाकथित व्यवधान।
आगे अगला साल है, सावधान! श्रीमान!!११
@ रा.रामकुमार,१८.०३.२३,००.१०
सोना जीवनदान है, सोना स्वास्थ्य-निदान।
सात घड़ी जो सो सके, उसकी सोना-खान।।१२
@ रा. रामकुमार, १९.०३.२३, १६.२१
कुम्भकर्ण की नींद की, बढ़ी आजकल मांग।
शायद इससे छुप सकें, सोंगढ़ियों के स्वांग।।१३
@रा. रामकुमार, १९.०३.२३, २२.४८
सोंगढ़ियों (मराठी)= स्वांग गढ़ने वाले, {स्वांग-गढ़िया (हिंदी, तत्सम) से सोंगढ़िया}, बहुरूपिया, रूप बदलकर आजीविका चलानेवाला,
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