नाम में क्या रखा है?
सुबह जो लड़का अख़बार दरवाज़े पर अड़सा कर या खुबेसकर जाता है, उसका नाम लखन है। जब अख़बार पढ़ चुकते हैं, तब अपार्टसमेंट्स के कॉरिडोर को बुहारने और पोंछा लगाने जो आती है उसका नाम है सुमित्रा। इन दोनों का आपस में कोई रिश्ता नहीं है। लखन नेत्रा में रहता है और सुमित्रा कोसमी में। हमारा दिन लखन के अख़बार दरवाज़े पर अड़साकर जाने से शुरू होता है।
लखन के बाद पीपलवाले चौक से सुबह की सब्ज़ियों की पहली खेप लेकर लक्ष्मी आती है। उससे वे महिलाएं सब्ज़ी लेती हैं, जिनके घर के लोग ऑफिस वगैरह जाते हैं या सुबह सब्ज़ियां खरीदनी ज़्यादा ज़रूरी हो जाती है। लक्ष्मी सब्ज़ियां मंहगी और तिल-तिल तौलकर देती है। महिलाएं उसे ताना भी देती हैं : "क्या बाई, तुम तो ऐसा तौल रही हो जैसे सोना तौल रही हो।"
वह कहती : "क्या करें जी, हमें भी ऐसे मिला है।"
इस विवाद के बावजूद उसकी सब्ज़ियां बराबर बिकती रहती हैं। ज़रूरत मंहगाई से दोस्ती कर लेती है।
ग्यारह बजे दूसरी सब्जीवाली आती है, नवेगांव से। उसका नाम दुर्गा है। उसकी ज़ुबान मीठी है, तौल भी उसका दीनदयाल है, सब्ज़ियां भी उसकी विश्वसुंदरी हैं.. सलीके से चुनी हुईं। उसकी सब्ज़ियां ख़ूब बिकतीं हैं लेकिन महिलाएं उससे भी मोलभाव करतीं हैं। दुर्गा के आने के आगे पीछे गोंगलई से दूधवाला कुँवरसिंह आता है।
इसी समय हमारे घर में झाड़ू बर्तन और पोंछा करनेवाली आती है, उसका नाम राधा है। उसका इन चारों से कोई संबंध नहीं है। राधा कोसमी से लगे सरेखा से आती है।
लेकिन आज सुबह पत्नी ने ध्यान-केंद्र जाते-जाते कहा : "सुनते हो, राधा नहीं आएगी। सुमित्रा से झाड़ू पोंछा के लिए बोल के रखना। मैं तब तक ध्यान-केंद्र से लौट आऊंगी।"
इतना कहकर उसने क्लीनर से पोंछा हुआ चश्मा चढ़ाया और निकल गयी। पत्नी का चश्मा दो महीने पहले ही नया बनवाना पड़ा क्योंकि नम्बर बढ़ जाने से आंखों में तकलीफ़ बढ़ गयी थी। चश्मे की सफाई होती रहे तो आंखों का नंबर नहीं बढ़ता, इसी विचार से पत्नी ने चश्मा को सावधानी से पोंछकर आंखों पर चढ़ाया। पत्नी का नाम सुनयना है।
मेरा नाम है कृष्णचन्द्र। अपने परस्पर विरोधी नाम से मुझे हमेशा दुविधा हुई है, लेकिन लोगों को लगता है- "वाह, क्या पौराणिक नाम है। मैं वस्तुवादी यथार्थवादी हूं ..मुझे समझ नहीं आता कि चन्द्र काला कैसे हो सकता है। भाववादी और आस्थावादी ही समझते हैं- कृष्ण के चंद्रवंशी होने का अर्थ।
मैंने अक्सर सुना है कि नाम का अपना एक अर्थ होता है। भाषाविज्ञान की दृष्टि से यह सही है, यह मैं भी मानता हूं। निरर्थक भी कोई नाम हो सकता है, इसकी मुझे जानकारी नहीं है।
दूसरी और एक निश्चित अर्थ होने के बावजूद, नाम को सार्थक करने के लिए दुनिया जी तोड़ परिश्रम कर रही है। कुछ लोगों के बारे में कहा जाता है कि 'जैसा नाम है, वैसा ही काम है, या वैसे ही गुण हैं। उन्हें 'यथा नाम, तथा गुण' कहकर सराहा जाता है। किसी का नाम राम हो और वह मर्यादित हो तो यही बात कही जाती है। किंतु राम का नाम लेकर दुष्कर्म, बुरे काम, घृणा, अलगाव, वैमनस्य फैलानेवाले को क्या कहोगे? यही कि राम का नाम बदनाम न करो। अर्थ यही हुआ कि राम एक ऐसा नाम हो गया है, जो अच्छाई का पर्यायवाची है। वह संज्ञा नहीं रहा, विशेषण हो गया है। यही हाल कृष्ण का है। छैल छबीले चंचल युवक को लोग कृष्ण कन्हैया कहते हैं। ये आ गए कृष्ण-कन्हैया। नाम उसका कुछ भी हो, उसके लक्षण उसे कृष्ण-कन्हैया बना देते हैं। नाम ने रिश्तों को भी नहीं छोड़ा। दुष्ट मामा को कंस और शकुनि कहने लगते हैं। अच्छे मामा तो कृष्ण ही हैं। और मामा तो ज्यादातर अच्छे ही होते हैं।
यहीं से नाम कमाना, नाम मिटाना, नाम बदनाम करना, नाम बिगाड़ना, नाम बदल देना, नाम लेना, नाम न लेना, नाम रखना, नाम हो जाना, आदि आदि अनेक नामवर मुहावरे बने।
किसी भी वस्तु, व्यक्ति या स्थान की पहचान नाम से ही होती है। दशा का भी नाम है और दिशा का भी। लक्ष्य तक पहुंचने के लिए नाम ज़रूरी है और लक्ष्य पर पहुंचने पर भी नाम हो जाता है। हिलेरी और आर्मस्ट्रॉन्ग पहले पुकारने के नाम थे, अब उपलब्धियों के नाम हो गए हैं। अंतरिक्ष बाला कल्पना चावला और अंतरिक्ष बाबा राकेश शर्मा भी नाम से अधिक काम हो गए। उनके नाम से हिमालय की चोटी याद आती है या अछूते चन्द्रमा को छू लेने का कीर्तिमान याद आता है या वृहद अंतरिक्ष दिखाई देने लगता है।
कुछ लोग कहते है कि नाम में दम होना चाहिए। तभी तो किसी-किसी नाम से बड़े-बड़े काम हो जाते हैं, तो किसी-किसी नाम से बनते काम बिगड़ जाते हैं। नाम तय करते हैं कि कौन व्यक्ति किस जगह प्रवेश कर सकता है और कौन नहीं। नाम से वीज़ा मिलता भी है और नाम ही वीज़ा में अड़ंगा अटकाता है। नाम का अपना अर्थशास्त्र भी है। कौन सा नाम कितना चंदा एकत्र करेगा, किस नाम से कितनी टिकटें बिकेंगी यह तो व्यापारवादी दुनिया देख ही रही है।
सचमुच नाम का बड़ा महत्व है। भारत में तो नाम का ज्योतिष भी है। अंक ज्योतिष और नक्षत्र ज्योतिष की गणना भी नाम की महिमा गाता है। नामों की स्पेलिंग काम ज्यादा करके नाम के महत्व को बढ़ाया जाता है। भारत में नाम का व्यक्तित्व पर प्रभाव पड़ने की अवधारणा है। किसी नवजात का नाम किसी नामधारी व्यक्ति के नाम पर रखने की मानसिकता के पीछे यह लोभ है कि बच्चा या जातक उस ऊंचाई तक निश्चितरूप से या संभवतः पहुंच जाए। लेकिन यह समाज यह कभी सिद्ध नहीं कर पाया। हमारे बचपन में नारायण नाम का एक प्रौढ़ व्यक्ति हत्या के अपराध में चौदह साल की सज़ा भोगकर घर लौटा था। नाबालिग लड़की से बलात्कार के अपराध में अभी एक उम्रक़ैद भोग रहा है। किसका दोष है? व्यक्ति का या समाज का या नाम का?
यह सब देखकर ही शायद अब लोग कहने लगे हैं 'नाम में क्या रखा है?'
'नाम में क्या रखा है?' इस पंक्ति को पढ़ते ही अंग्रेजी के नाटक-सम्राट और यशस्वी-कवि विलियम शेक्सपिअर का नाम याद आता है। मज़ेदार और अद्भुत बात यह है कि जिस व्यक्ति ने यह पंक्तियां दीं, उसी का नाम इतना बड़ा हो गया कि इस कथन के साथ उसका ही नाम याद आता है।
शेक्सपिअर का प्रसिद्ध काव्य-नाटक है 'रोमियो एंड जूलिएट'। इस नाटक में जूलियट और रोमियो एक उत्सव में परिचित होते हैं और दोनों में प्रेम हो जाता है। बाद में पता चलता है कि जूलिएट और रोमियो के परिवारों के बीच तनातनी और नफ़रत की तलवारें तनी हुई हैं। यह नफ़रत उनके प्यार में बाधा है। रोमियो को जूलिएट का परिवार नहीं स्वीकार कर एकता और जूलिएट को रोमियो का परिवार अंगीकार नहीं कर एकता। इससे प्रेम और बढ़ता है और एक होने की आकांक्षा भी। तभी जूलियट कहती है कि "नाम में क्या रखा है। जिसे हम गुलाब कहते हैं, उसे हम किसी और नाम से पुकारते तब भी वह उतना ही सुगन्धित होता।"
{“What’s in a name? That which we call a rose
By any other name would smell as sweet.”}
शायद जूलिएट चाहती हो कि रोमियो और जूलिएट नाम बदल कर अपनी पहचान छुपा लें और एक हो जाएं। नाम में क्या रखा है, रोमियो तो रोमियो रहेगा और जूलिएट जूलिएट। रंग रूप गंध वही, नाम ही तो बदलना है।
ऐसा क्यों नहीं हो सकता। भारत में करोड़ों लोगों का काम इसी से चल रहा है। धनपतराय पहले नवाबराय हुए और फिर प्रेमचंद हुए। नाम बदलते रहे, लेकिन आदमी का चिंतन, स्वभाव, कार्यक्षेत्र, उत्तरदायित्व, व्यक्तित्व वही रहा। केदारनाथ पांडे नाम का एक बालक घर से भागकर एक मठ में रामोदर या रामदास साधु हुआ और बाद में बौद्ध होकर राहुल सांकृत्यायन हो गया। नाम बदलते रहे, धर्म और आस्थाएं बदलती रहीं, राजनैतिक अवधारणाएं बदलती रहीं, हर बदलाव में उनका चिंतन और व्यक्तित्व निखरता रहा, लेकिन लेखक वे वही रहे। जनकवि नागार्जुन ने पहले यात्री उपनाम से लिखा और बाद में नागार्जुन हुये। नागार्जुन होने के पीछे आयुर्वेदाचार्य नागार्जुन की लोकप्रियता थी। नागार्जुन उनके मूल नाम वैद्यनाथ मिश्र के अर्थ के साथ घुलमिल जाता है। इस प्रकार लेखकों, शायरों, फिल्मी कलाकारों में नाम बदलना एक परम्परा या फैशन है, ट्रेंड है।
भारत में करोड़ों की संख्या साधुओं और सन्यासियों की है। साधु या संन्यासी होने के बाद इनका नाम बदल जाता है। आनन्द और स्वामी और दास जैसे असंख्य लोग हैं। नाम लेना ठीक नहीं, सभी जानते हैं। नागा साधुओं के नाम भी जन्म नाम से बदल जाते हैं। पता नहीं इनका समाज में क्या उपयोग है लेकिन समाज का बहुत सारा धन इनके जीवन निर्वाह में व्यय होता है। उनके लिए भी शायद नाम में क्या रखा है।
बहुत से लोग जिनका बहुत नाम है, वे अपने नाम का अर्थ भले ही न जानते हों, उनके लिए भी नाम में क्या रखा है। यामी नाम की एक लड़की, जिसका बहुत नाम हो गया है, उससे किसी ने पूछा कि यामी का क्या अर्थ है? वह हड़बड़ा गयी। उसने अंतर्यामी के यामी से उसे जोड़ दिया। फिर वह यम की बहन से जोड़ने लगी। उसके साथी कलाकार ने यम की बहन यामी नहीं बल्कि यमी बताया।
जो नहीं जानते उनके लिए शायद यामी का अर्थ बताना सही होगा। यामी याम का स्त्रीलिंग है। यद्यपि यामा भी याम का स्त्रीलिंग है। याम का अर्थ पहर, दिन होता है। तो यामी या यामा का अर्थ हुआ रात्रि। 'यामा' छायावादी कवयित्री महादेवी के गीत-संग्रह का नाम भी है। यामा या यामी का पर्यायवाची यामिनी है, जिसका अर्थ रात्रि है, वह भी याम से बना है।
अगर आपका ध्यान फ़ारसी की तरफ़ गया तो यामी नाम रखने या लेने में आपको हिचकिचाहट होगी, क्योंकि फ़ारसी में यामी का अर्थ होता है रोगी, रुग्ण या बीमार।
@रा. रामकुमार, दिनांक : २४.०१.२३,
संस्रोत :
याम : पुं० [सं०√यम् (नियंत्रण)+घञ्] १. दिन का आठवाँ अंश,तीन घंटे का समय, पहर,
याम : पहर, प्रहर, बेला, वेला, जून, दिन,
अष्टयाम, आठों याम, आठ प्रहर = चौबीस घण्टे(३×८=२४),
यामा, यामी, यामिनी : रात, महादेवी वर्मा का गीत संग्रह 'यामा' है।
अंतर्यामी : जो अंतःकरण या हृदय में चौबीस घंटे रहे, वास्तविक किंतु नीरस अर्थ धड़कन, आस्तिक और भावुक अर्थ ईश्वर, (यामी=) जो हर पल पास रहे, स्त्री हो या पुरुष, ईश्वर या देवी।
यामी : (फ़ारसी, विशेषण) : रोगी, बीमार
लखन के बाद पीपलवाले चौक से सुबह की सब्ज़ियों की पहली खेप लेकर लक्ष्मी आती है। उससे वे महिलाएं सब्ज़ी लेती हैं, जिनके घर के लोग ऑफिस वगैरह जाते हैं या सुबह सब्ज़ियां खरीदनी ज़्यादा ज़रूरी हो जाती है। लक्ष्मी सब्ज़ियां मंहगी और तिल-तिल तौलकर देती है। महिलाएं उसे ताना भी देती हैं : "क्या बाई, तुम तो ऐसा तौल रही हो जैसे सोना तौल रही हो।"
वह कहती : "क्या करें जी, हमें भी ऐसे मिला है।"
इस विवाद के बावजूद उसकी सब्ज़ियां बराबर बिकती रहती हैं। ज़रूरत मंहगाई से दोस्ती कर लेती है।
ग्यारह बजे दूसरी सब्जीवाली आती है, नवेगांव से। उसका नाम दुर्गा है। उसकी ज़ुबान मीठी है, तौल भी उसका दीनदयाल है, सब्ज़ियां भी उसकी विश्वसुंदरी हैं.. सलीके से चुनी हुईं। उसकी सब्ज़ियां ख़ूब बिकतीं हैं लेकिन महिलाएं उससे भी मोलभाव करतीं हैं। दुर्गा के आने के आगे पीछे गोंगलई से दूधवाला कुँवरसिंह आता है।
इसी समय हमारे घर में झाड़ू बर्तन और पोंछा करनेवाली आती है, उसका नाम राधा है। उसका इन चारों से कोई संबंध नहीं है। राधा कोसमी से लगे सरेखा से आती है।
लेकिन आज सुबह पत्नी ने ध्यान-केंद्र जाते-जाते कहा : "सुनते हो, राधा नहीं आएगी। सुमित्रा से झाड़ू पोंछा के लिए बोल के रखना। मैं तब तक ध्यान-केंद्र से लौट आऊंगी।"
इतना कहकर उसने क्लीनर से पोंछा हुआ चश्मा चढ़ाया और निकल गयी। पत्नी का चश्मा दो महीने पहले ही नया बनवाना पड़ा क्योंकि नम्बर बढ़ जाने से आंखों में तकलीफ़ बढ़ गयी थी। चश्मे की सफाई होती रहे तो आंखों का नंबर नहीं बढ़ता, इसी विचार से पत्नी ने चश्मा को सावधानी से पोंछकर आंखों पर चढ़ाया। पत्नी का नाम सुनयना है।
मेरा नाम है कृष्णचन्द्र। अपने परस्पर विरोधी नाम से मुझे हमेशा दुविधा हुई है, लेकिन लोगों को लगता है- "वाह, क्या पौराणिक नाम है। मैं वस्तुवादी यथार्थवादी हूं ..मुझे समझ नहीं आता कि चन्द्र काला कैसे हो सकता है। भाववादी और आस्थावादी ही समझते हैं- कृष्ण के चंद्रवंशी होने का अर्थ।
मैंने अक्सर सुना है कि नाम का अपना एक अर्थ होता है। भाषाविज्ञान की दृष्टि से यह सही है, यह मैं भी मानता हूं। निरर्थक भी कोई नाम हो सकता है, इसकी मुझे जानकारी नहीं है।
दूसरी और एक निश्चित अर्थ होने के बावजूद, नाम को सार्थक करने के लिए दुनिया जी तोड़ परिश्रम कर रही है। कुछ लोगों के बारे में कहा जाता है कि 'जैसा नाम है, वैसा ही काम है, या वैसे ही गुण हैं। उन्हें 'यथा नाम, तथा गुण' कहकर सराहा जाता है। किसी का नाम राम हो और वह मर्यादित हो तो यही बात कही जाती है। किंतु राम का नाम लेकर दुष्कर्म, बुरे काम, घृणा, अलगाव, वैमनस्य फैलानेवाले को क्या कहोगे? यही कि राम का नाम बदनाम न करो। अर्थ यही हुआ कि राम एक ऐसा नाम हो गया है, जो अच्छाई का पर्यायवाची है। वह संज्ञा नहीं रहा, विशेषण हो गया है। यही हाल कृष्ण का है। छैल छबीले चंचल युवक को लोग कृष्ण कन्हैया कहते हैं। ये आ गए कृष्ण-कन्हैया। नाम उसका कुछ भी हो, उसके लक्षण उसे कृष्ण-कन्हैया बना देते हैं। नाम ने रिश्तों को भी नहीं छोड़ा। दुष्ट मामा को कंस और शकुनि कहने लगते हैं। अच्छे मामा तो कृष्ण ही हैं। और मामा तो ज्यादातर अच्छे ही होते हैं।
यहीं से नाम कमाना, नाम मिटाना, नाम बदनाम करना, नाम बिगाड़ना, नाम बदल देना, नाम लेना, नाम न लेना, नाम रखना, नाम हो जाना, आदि आदि अनेक नामवर मुहावरे बने।
किसी भी वस्तु, व्यक्ति या स्थान की पहचान नाम से ही होती है। दशा का भी नाम है और दिशा का भी। लक्ष्य तक पहुंचने के लिए नाम ज़रूरी है और लक्ष्य पर पहुंचने पर भी नाम हो जाता है। हिलेरी और आर्मस्ट्रॉन्ग पहले पुकारने के नाम थे, अब उपलब्धियों के नाम हो गए हैं। अंतरिक्ष बाला कल्पना चावला और अंतरिक्ष बाबा राकेश शर्मा भी नाम से अधिक काम हो गए। उनके नाम से हिमालय की चोटी याद आती है या अछूते चन्द्रमा को छू लेने का कीर्तिमान याद आता है या वृहद अंतरिक्ष दिखाई देने लगता है।
कुछ लोग कहते है कि नाम में दम होना चाहिए। तभी तो किसी-किसी नाम से बड़े-बड़े काम हो जाते हैं, तो किसी-किसी नाम से बनते काम बिगड़ जाते हैं। नाम तय करते हैं कि कौन व्यक्ति किस जगह प्रवेश कर सकता है और कौन नहीं। नाम से वीज़ा मिलता भी है और नाम ही वीज़ा में अड़ंगा अटकाता है। नाम का अपना अर्थशास्त्र भी है। कौन सा नाम कितना चंदा एकत्र करेगा, किस नाम से कितनी टिकटें बिकेंगी यह तो व्यापारवादी दुनिया देख ही रही है।
सचमुच नाम का बड़ा महत्व है। भारत में तो नाम का ज्योतिष भी है। अंक ज्योतिष और नक्षत्र ज्योतिष की गणना भी नाम की महिमा गाता है। नामों की स्पेलिंग काम ज्यादा करके नाम के महत्व को बढ़ाया जाता है। भारत में नाम का व्यक्तित्व पर प्रभाव पड़ने की अवधारणा है। किसी नवजात का नाम किसी नामधारी व्यक्ति के नाम पर रखने की मानसिकता के पीछे यह लोभ है कि बच्चा या जातक उस ऊंचाई तक निश्चितरूप से या संभवतः पहुंच जाए। लेकिन यह समाज यह कभी सिद्ध नहीं कर पाया। हमारे बचपन में नारायण नाम का एक प्रौढ़ व्यक्ति हत्या के अपराध में चौदह साल की सज़ा भोगकर घर लौटा था। नाबालिग लड़की से बलात्कार के अपराध में अभी एक उम्रक़ैद भोग रहा है। किसका दोष है? व्यक्ति का या समाज का या नाम का?
यह सब देखकर ही शायद अब लोग कहने लगे हैं 'नाम में क्या रखा है?'
'नाम में क्या रखा है?' इस पंक्ति को पढ़ते ही अंग्रेजी के नाटक-सम्राट और यशस्वी-कवि विलियम शेक्सपिअर का नाम याद आता है। मज़ेदार और अद्भुत बात यह है कि जिस व्यक्ति ने यह पंक्तियां दीं, उसी का नाम इतना बड़ा हो गया कि इस कथन के साथ उसका ही नाम याद आता है।
शेक्सपिअर का प्रसिद्ध काव्य-नाटक है 'रोमियो एंड जूलिएट'। इस नाटक में जूलियट और रोमियो एक उत्सव में परिचित होते हैं और दोनों में प्रेम हो जाता है। बाद में पता चलता है कि जूलिएट और रोमियो के परिवारों के बीच तनातनी और नफ़रत की तलवारें तनी हुई हैं। यह नफ़रत उनके प्यार में बाधा है। रोमियो को जूलिएट का परिवार नहीं स्वीकार कर एकता और जूलिएट को रोमियो का परिवार अंगीकार नहीं कर एकता। इससे प्रेम और बढ़ता है और एक होने की आकांक्षा भी। तभी जूलियट कहती है कि "नाम में क्या रखा है। जिसे हम गुलाब कहते हैं, उसे हम किसी और नाम से पुकारते तब भी वह उतना ही सुगन्धित होता।"
{“What’s in a name? That which we call a rose
By any other name would smell as sweet.”}
शायद जूलिएट चाहती हो कि रोमियो और जूलिएट नाम बदल कर अपनी पहचान छुपा लें और एक हो जाएं। नाम में क्या रखा है, रोमियो तो रोमियो रहेगा और जूलिएट जूलिएट। रंग रूप गंध वही, नाम ही तो बदलना है।
ऐसा क्यों नहीं हो सकता। भारत में करोड़ों लोगों का काम इसी से चल रहा है। धनपतराय पहले नवाबराय हुए और फिर प्रेमचंद हुए। नाम बदलते रहे, लेकिन आदमी का चिंतन, स्वभाव, कार्यक्षेत्र, उत्तरदायित्व, व्यक्तित्व वही रहा। केदारनाथ पांडे नाम का एक बालक घर से भागकर एक मठ में रामोदर या रामदास साधु हुआ और बाद में बौद्ध होकर राहुल सांकृत्यायन हो गया। नाम बदलते रहे, धर्म और आस्थाएं बदलती रहीं, राजनैतिक अवधारणाएं बदलती रहीं, हर बदलाव में उनका चिंतन और व्यक्तित्व निखरता रहा, लेकिन लेखक वे वही रहे। जनकवि नागार्जुन ने पहले यात्री उपनाम से लिखा और बाद में नागार्जुन हुये। नागार्जुन होने के पीछे आयुर्वेदाचार्य नागार्जुन की लोकप्रियता थी। नागार्जुन उनके मूल नाम वैद्यनाथ मिश्र के अर्थ के साथ घुलमिल जाता है। इस प्रकार लेखकों, शायरों, फिल्मी कलाकारों में नाम बदलना एक परम्परा या फैशन है, ट्रेंड है।
भारत में करोड़ों की संख्या साधुओं और सन्यासियों की है। साधु या संन्यासी होने के बाद इनका नाम बदल जाता है। आनन्द और स्वामी और दास जैसे असंख्य लोग हैं। नाम लेना ठीक नहीं, सभी जानते हैं। नागा साधुओं के नाम भी जन्म नाम से बदल जाते हैं। पता नहीं इनका समाज में क्या उपयोग है लेकिन समाज का बहुत सारा धन इनके जीवन निर्वाह में व्यय होता है। उनके लिए भी शायद नाम में क्या रखा है।
बहुत से लोग जिनका बहुत नाम है, वे अपने नाम का अर्थ भले ही न जानते हों, उनके लिए भी नाम में क्या रखा है। यामी नाम की एक लड़की, जिसका बहुत नाम हो गया है, उससे किसी ने पूछा कि यामी का क्या अर्थ है? वह हड़बड़ा गयी। उसने अंतर्यामी के यामी से उसे जोड़ दिया। फिर वह यम की बहन से जोड़ने लगी। उसके साथी कलाकार ने यम की बहन यामी नहीं बल्कि यमी बताया।
जो नहीं जानते उनके लिए शायद यामी का अर्थ बताना सही होगा। यामी याम का स्त्रीलिंग है। यद्यपि यामा भी याम का स्त्रीलिंग है। याम का अर्थ पहर, दिन होता है। तो यामी या यामा का अर्थ हुआ रात्रि। 'यामा' छायावादी कवयित्री महादेवी के गीत-संग्रह का नाम भी है। यामा या यामी का पर्यायवाची यामिनी है, जिसका अर्थ रात्रि है, वह भी याम से बना है।
अगर आपका ध्यान फ़ारसी की तरफ़ गया तो यामी नाम रखने या लेने में आपको हिचकिचाहट होगी, क्योंकि फ़ारसी में यामी का अर्थ होता है रोगी, रुग्ण या बीमार।
@रा. रामकुमार, दिनांक : २४.०१.२३,
संस्रोत :
याम : पुं० [सं०√यम् (नियंत्रण)+घञ्] १. दिन का आठवाँ अंश,तीन घंटे का समय, पहर,
याम : पहर, प्रहर, बेला, वेला, जून, दिन,
अष्टयाम, आठों याम, आठ प्रहर = चौबीस घण्टे(३×८=२४),
यामा, यामी, यामिनी : रात, महादेवी वर्मा का गीत संग्रह 'यामा' है।
अंतर्यामी : जो अंतःकरण या हृदय में चौबीस घंटे रहे, वास्तविक किंतु नीरस अर्थ धड़कन, आस्तिक और भावुक अर्थ ईश्वर, (यामी=) जो हर पल पास रहे, स्त्री हो या पुरुष, ईश्वर या देवी।
यामी : (फ़ारसी, विशेषण) : रोगी, बीमार
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