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एक ग़ज़ल

बहरे मज़ारिअ मुसमन अख़रब मकफूफ़ मकफूफ़ महज़ूफ़

मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन
221 2121 1221 212

दुश्मन को लामबंद हुआ देख रहा हूँ
हर ओर खाइयों के ख़ुदा देख रहा हूँ

सच्चाइयों का आफ़ताब फिर है नदारद
बादल से आसमां को घिरा देख रहा हूँ

कुछ देर के मज़े थे ज़रा देर थीं खुशियां
फिर आफ़तों को सर पे खड़ा देख रहा हूँ

सब सिर्फ़ एकजुट थे वसूली के वास्ते
बस्ती का हाल और बुरा देख रहा हूँ

कल तक थी ख़ुदशनास ख़बरदार तबीयत
क्यों आज उसका रंग उड़ा देख रहा हूँ

मेरी बलाएँ लेके वो क़ातिल को दुआ दे
गर्दिश की है शातिर ये अदा देख रहा हूँ

सब बोलने वालों का गला घोंटनेवालों
कल लेगी तबाही जो मज़ा देख रहा हूँ


@कुमार, २९.१२.२१, बुधवार,
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शब्दार्थ :
लामबंद : संगठित, 
खाइयों के ख़ुदा : खाइयों के बनाने और गहरी करनेवाले नुमाइंदे,  
ख़ुदशनास : आत्मविश्वासी, अपने को पहचाननेवाला, 
 ख़बरदार : पहले से खतरा भांपनेवाला,
अलाहिदा علاحدہ भिन्न, अलग क़िस्म का, अन्य, 
नाज़िल نازِل नाज़िल  उतरने वाला, नीचे आने वाला, गिरने वाला, पधारने वाला, उतरा हुआ, आया हुआ


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