नववर्ष 2020 : कुछ मुक्तक, एक गीतल
ठगों से, कपटियों से, वंचकों से बच के आये हैं।
वधिक हमलावरों से, कंटकों से बच के आये हैं।
दिया है जन्म जंगल ने मगर रक्षा न कर पाया,
हमीं हिम्मत हुनर से हिंसकों से बच के आये हैं।
(हिरण के बहाने)
★
सही है, जिंदगी सांसों की बस आवन है, जावन है।
मगर खुशियों से गुज़री हर घड़ी पावन, सुहावन है।
समंदर और रेगिस्तान तो सुख-दुख के किस्से हैं,
हमारे दिल की हालत ही कभी सूखा है, सावन है।
**
हुनर है भाग्य लिखने का जिन्हें रंगीं उजालों का।
उन्हीं के पास है उत्तर सभी उलझे सवालों का।
कहां गड्ढे, कहां समतल, कहां गुल हैं, कहां कांटे,
कहां मधुबन, कहां खुशियां, कहां मातम मलालों का।
*
कभी मायूस होता हूं, कभी मैं मुस्कुराता हूं।
कोई सपना हसीं टूटे तो पलकों से उठाता हूं।
न जाने कौन मुझको गीत गज़लों में दिखाई दे,
घड़ी रोने की आती है तो मैं बस गुनगुनाता हूं।
*
∆∆∆∆∆
°°°°°
गीतल : 'नया एक साल'
*
वक़्त के अंधेरों से, फिर निकाल लाया हूं।
कुछ मुड़े तुड़े मिले मुझे, वो सवाल लाया हूं।
काग़ज़ी जहाजों में, कितनी दूर जाओगे?
इसलिए मैं लोहे की, नाव ढाल लाया हूं।
वायदे हजार मौसमी, किसलिए न गुल खिला सके,
इस तरह तबाहियां कई, कुछ बवाल लाया हूं।
हार-जीत की बिसात में, क्यों तुम्हारी गोटियां पिटीं,
मोहरा ज़मीर को बना, मैं फि'हाल लाया हूं।
फायदा तुम्हें ही क्यों मिला, मुल्क जब मुसीबतों में था,
कोशिशें नई करो, नया एक साल लाया हूं।
***
डॉ. कुमार,
1.1.2020, बुधवार, अपरान्ह 3.20,
ओराम सिटी, नवेगांव, बालाघाट-481001
ठगों से, कपटियों से, वंचकों से बच के आये हैं।
वधिक हमलावरों से, कंटकों से बच के आये हैं।
दिया है जन्म जंगल ने मगर रक्षा न कर पाया,
हमीं हिम्मत हुनर से हिंसकों से बच के आये हैं।
(हिरण के बहाने)
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सही है, जिंदगी सांसों की बस आवन है, जावन है।
मगर खुशियों से गुज़री हर घड़ी पावन, सुहावन है।
समंदर और रेगिस्तान तो सुख-दुख के किस्से हैं,
हमारे दिल की हालत ही कभी सूखा है, सावन है।
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हुनर है भाग्य लिखने का जिन्हें रंगीं उजालों का।
उन्हीं के पास है उत्तर सभी उलझे सवालों का।
कहां गड्ढे, कहां समतल, कहां गुल हैं, कहां कांटे,
कहां मधुबन, कहां खुशियां, कहां मातम मलालों का।
*
कभी मायूस होता हूं, कभी मैं मुस्कुराता हूं।
कोई सपना हसीं टूटे तो पलकों से उठाता हूं।
न जाने कौन मुझको गीत गज़लों में दिखाई दे,
घड़ी रोने की आती है तो मैं बस गुनगुनाता हूं।
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गीतल : 'नया एक साल'
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वक़्त के अंधेरों से, फिर निकाल लाया हूं।
कुछ मुड़े तुड़े मिले मुझे, वो सवाल लाया हूं।
काग़ज़ी जहाजों में, कितनी दूर जाओगे?
इसलिए मैं लोहे की, नाव ढाल लाया हूं।
वायदे हजार मौसमी, किसलिए न गुल खिला सके,
इस तरह तबाहियां कई, कुछ बवाल लाया हूं।
हार-जीत की बिसात में, क्यों तुम्हारी गोटियां पिटीं,
मोहरा ज़मीर को बना, मैं फि'हाल लाया हूं।
फायदा तुम्हें ही क्यों मिला, मुल्क जब मुसीबतों में था,
कोशिशें नई करो, नया एक साल लाया हूं।
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डॉ. कुमार,
1.1.2020, बुधवार, अपरान्ह 3.20,
ओराम सिटी, नवेगांव, बालाघाट-481001
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