सुबह-सुबह मुझको मेरा साथी गुमनाम मिला!! चलो, शहर में नामवरों के, इक हमनाम मिला!! वही चाल सीधी-सादी जो बिन बोले, बोले!! वह हल्की मुस्कान मनों में जो मिश्री घोले!! चलते-चलते, चलते पुरजों को चलता करती!! उठा-पटक या लाग-लपेटी से कन्नी कटती!! उसे देखकर उकताए मन को आराम मिला!! सुबह-सुबह मुझको मेरा साथी गुमनाम मिला!! चालबाज़ियां ठगकर निकलीं, वो हंसकर निकला!! चक्रव्यूह के चक्कर में फंसकर, पककर निकला!! मुश्किल और परेशानी के, घर आता जाता!! क्या लेता-देता है कोई, जान नहीं पाता!! कभी बहुत दिन बाद, कभी वह सुबहो शाम मिला!! सुबह-सुबह मुझको मेरा साथी गुमनाम मिला!! सबके चेहरे पढ़ते रहता वह अनपढ़ अज्ञानी!! पढ़ा-लिखा जग जान न पाया, उसकी राम-कहानी!! दुनिया के गोरख-धंधों से दूर दूर रहता है!! किसे पता, कैसे-कैसे वह, कितने दुख सहता है!! समय! परखकर उसको तुमको क्या परिणाम मिला? सुबह-सुबह मुझको मेरा साथी गुमनाम मिला!! दुनिया उसके नहीं काम की, जिसे काम से काम!! कामयाबियों के लेखे में वह बिल्कुल नाकाम!! ढूंढ रहा वह क्या जाने क्या, चतुर चुस्त लोगों में!! सत्य, अहिँसा, प्रेम, पुराने-मूल्य, न...