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Showing posts from December, 2022

दिल्ली है गुलज़ार

शब्द वेध/भेद के अंतर्गत 40 दोहे  6. कुछ तो है षड्यंत्र अनुभव ने अनुभूति से, चुगली की दो चार। सपनों में आने लगे, भगदड़ हाहाकार।। नदियां रूठी देखकर, खेतों में भूचाल। बांध तोड़ने चल पड़े, हँसिया और कुदाल।। जंगल छोटे पड़ गए, चले तेंदुए गांव। शायद गौशाला बने, उनका अगला ठाँव।। बाघ-तेंदुए मर रहे, कुछ तो है षड्यंत्र। फिर शिकार की भूमिका, बना रहा है तंत्र।। भेड़-बकरियां हो गए, दो कौड़ी के लोग। उधर ख़ास-दरबार में, पकते छप्पन भोग।। @ कुमार,   ०३.०१.२०२३ 0 5. आनेवाले साल को ..... ० जुल्फ़ों आंखों शक्ल पर, पड़ी समय की मार। हाथ पांव के रूठते, गिरी जिस्म सरकार।।१ शब्द निरक्षर हो गए, वाक्य खो चुके अर्थ। ग्रंथालय के ग्रंथ सब, हुए आजकल व्यर्थ।।२ बोलो तो शातिर बनो, मौन रहो तो घाघ। जीभ लपलपाकर हुए, वो जंगल में बाघ।।३ आंखों से विश्वास का, सूखा सारा नीर। ठहरे आता साल अब, किस दरिया के तीर?।४ हाथ उठाये चल रहा, अपराधी सा वक़्त। आनेवाले साल को, मिली सजाएं सख़्त।।५ @रा रा कुमार, ३१.१२.२२. ००० 4. सच के दावेदार ० सारा क्रोध, विरोध सब, आंके गए भड़ास। धुँधयाती कुंठा बची, शब्द-वीर के पास।।१ पट्टेवाले

यश दड़बों में बंद

 यश दड़बों में बंद ० लहक-चहक कर गीत-ग़ज़ल ने, उम्र गुज़ारी, फिर - धूल खा रहीं रचनावलियाँ,  यश-दड़बों में बंद। जो कुछ मिला है उससे बेहतर, पाने की आशा है। दुनिया को लफ़्ज़ों से ज़्यादा,  जिन्सों की इच्छा है।  इसीलिए मंचों पर सजकर और संवरकर रहते, कमरों में साजिश रचते हैं,  मिले-जुले छल-छंद। परिश्रमों की एक तमन्ना,  मिले दिहाड़ी, जाएं। जो कुछ आ जाये इतने में,  उसे बांटकर खाएं। जगी हुई चिंता से सुख दु:ख,  कहते नींद भरे, आख़िर बिस्तर हो जाते हैं,  अंधियारों के खंद। भूखी-वंचित, दीन-हीन,  बेबस-निर्बल लाशों को। रौंद चले नासा इसरो,  हथियाने आकाशों को। उन्नत शीत-युद्ध में उलझी,  कूटनीतियाँ,  जिसमें   अपने-अपने ताने-बाने,  अपने-अपने फंद। @१०.१२.२२

शब्दों में शक्ति होती है, तभी तो..

क्षमा करें इस बार 11 पदों की लंबी कविता   शब्दों में शक्ति होती है, तभी तो ० १. शब्दों में शक्ति होती है तभी तो चिड़ियों के चहचहाते ही होने लगी है पत्तों में सरसराहट जबकि नींद पीकर सोया हुआ सारा शहर धुत्त है सुविधाओं के लिहाफ़ों में। २. शब्दों में शक्ति होती है तभी तो भंवरों की गुनगुन से खिलने लगे हैं फूल फड़कने लगे हैं तितलियों के पर जबकि बांबियों में छुपे हुए बहरे सांप गाढ़ा करने में लगे हैं अपना ज़हर। ३. शब्दों में शक्ति होती है तभी तो हवाओं की सनन सनन से अंकुराने लगीं हैं रबी की फसलें जबकि बिलों में घुसपैठिये चूहे रच रहे हैं जड़ें कुतरने का षड्यंत्र। ४. शब्दों में शक्ति होती है तभी तो झूठ सर चढ़कर बोलने लगा है जबकि अपाहिज़ और गूंगा सच झुककर तस्मे बांध रहा है साहब के जूतों के।   ५. शब्दों में शक्ति होती है तभी तो अपराधियों के माथे से पुंछ रहे हैं बर्बरता के तमाम कलंक जबकि अंधी संस्कृति के हाथों ने उठा रखे हैं अभिनंदन के हार। ६. शब्दों में शक्ति होती है तभी तो ख़रीदे जाने लगे हैं नक्कार खाने जबकि तूतियाँ अब कहीं नहीं बोलतीं छोड़कर जा रहीं

चमीटा

  चमीटा खनन खनन खन, खनन खनन खन,खन खन बजा चमीटा। धूनी, चूल्हा, गुरसी, सिगड़ी, उकसा रहा चमीटा।                                       खनन खनन खन... तू फ़क़ीर का अल्ला-अल्ला, बाबाओं का भोले। चिलमों पर अंगारा धरकर, हर-हर बम-बम बोले। अलख जगाए, धुनी रमाये, आंगन-आंगन डोले। कथा सुनाए, आल्हा गाये, तू भड़काए शोले। खरी-खरी जो कहे कबीरा, किसको लगा न चीटा। आह कबीरा..!!                   खनन खनन खन... पंजे का ख़ुद्दार पुत्र तू, चतुर चिकोटी माई। चिमटी है चालाक बहन, फ़ौलादी संड़सा भाई। चूल्हे चौके से खेतों तक तू अपनों का साथी। जबड़ोंवाला मगर-मच्छ तू, खीसोंवाला हाथी। तूने अपनी राह बनाई, गड़बड़ रस्ता पीटा। कड़ा चमीटा..!!              खनन खनन खन... ० @रा रा कुमार, दूसरा पद दि. : ०५.१२.२२