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Showing posts from January, 2023

मुग़ल गार्डन बनाम अमृत उद्यान

 'मुग़ल गार्डन' बनाम 'अमृत उद्यान अंतरण ही विकास है ।  राष्ट्रपति भवन का 'मुग़ल गार्डन ' हुआ 'अमृत उद्यान '. *अंतरण = परिवर्तन > नामांतरण, स्थानांतरण, धर्मान्तरण, रूपान्तरण, हस्तांतरण, सत्तान्तरण, ... सभी प्रकार के अंतरण मुबारक! 0 'अमृत-काल' की 'गणतंत्रीय सूचना' : प्रतिवर्ष भ्रमणार्थियो के लिए खुलनेवाला 'मुग़ल गार्डन' इस वर्ष  'अमृत उद्यान' (नामांतरण) होने के बाद ही  31 जनवरी 2023 से खुलेगा। सामान्य जानकारियां शेष नागरिकों के लिए : 1. 'भारतीय राष्ट्रपति भवन' के अंदर, रायसीना हिल्स पर 15 एकड़ में स्थित है मुग़ल गार्डन।  2. 26 जनवरी 2023 से 'मुग़ल गार्डन' का नाम  'अमृत उद्यान' कर दिया गया है। 3. 'मुग़ल गार्डन' का निर्माण ब्रिटिश शासन के दौरान किया गया था. 4.  वास्तुकार सर एडवर्ड लुटियन्स ने 'राष्ट्रपति भवन' और 'मुग़ल गार्डन' को डिजाइन किया था। 5. 'राष्ट्रपति भवन' का 'मुग़ल गार्डन' 2023 के तक अपनी सुंदरता के लिए काफ़ी चर्चित रहा है। कहा जाता है कि इसमें "

मैं और मेरे नव्यतम नौ नवगीत

  मैं और मेरे नव्यतम नौ नवगीत मैं डॉ. रामकुमार रामरिया.   मप्र उच्च शिक्षा विभाग के अंतर्गत शासकीय  महाविद्यालय के हिंदी विभाग में प्राध्यापक के रूप में सेवा, 2018 में सेवानिवृत्त। हिंदी में कबीर एवं कबीरपंथी साहित्य परम्परा का आलोचनात्मक अध्ययन पर पी-एच.डी. हिंदी के अतिरिक्त दर्शन एवं अंग्रेजी में स्नातकोत्तर उपाधियां, कविता, ग़ज़ल, गीत, निबंध, कहानी, आदि में निरन्तर लेखन, आकाशवाणी सहित अनेक राष्ट्रीय, प्रादेशिक एवं आंचलिक पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन, कहानियां पुरस्कृत, 'दलदली' एक लघु पुस्तिका एवं एक कविता संग्रह 'दूरियों के विंध्याचल' प्रकाशित, कहानी संग्रह, गीत संग्रह,  दोहा एवं मुक्तक संग्रह, ग़ज़ल संग्रह, छंद विज्ञान पर शोध ग्रंथ, निबन्ध संग्रह, शोध निबंध आदि प्रकाशन की ओर।  संप्रति बाघ नगर बालाघाट में निवास, पता : फ्लैट 202, दूसरा माला, किंग्स कैसल रेजीडेंसी, ऑरम सिटी, नवेगांव-बालाघाट।मप्र। संपर्क सूत्र : 8770882423, 9893993403, ई मेल : rkramarya@gmail.com,                  000 मेरे नव्यतम नौ नवगीत 1. अट्ठहासों के भरोसे ० जब कभी प्रतिमा गढूं मन की शिलाओं पर चित्र तो बन

बसन्तपंचमी : अंध-उर की काट

बसन्त पंचमी : अंधे हृदय के बन्धनों से मुक्ति की प्रार्थना   बसंत पंचमी के सरस्वती पूजा में बदलने की कथा अद्भुत, अनोखी, अविश्वसनीय और रोमांचक है। किंवदंती है कि कालिदास अक्षरशत्रु और विद्यादास थे। पत्नी विद्योत्तमा, विदुषी और अक्षरमहिषी थी। बसंत ऋतु का प्रभाव पड़ा और विद्यादास विषयासक्त होकर पत्नी के पास पहुंचे तो पत्नी ने धिक्कार दिया। तिरस्कृत कालिदास 'कामातक्रोधसंजायते' के सूत्र के अनुसार क्रुद्ध, रुष्ट, अवसादग्रस्त होकर, पुरुषार्थ के नष्ट होने से जीवन को निरर्थक मानकर गंगा में डूबने चले। कुछ विद्वान कहते हैं कि पत्नी ने कहा कि विद्या प्राप्त करके ही मुंह दिखाना तो वे सीधे काली के पास ज्ञानार्जन हेतु चले गए।  काली स्वरूप सरस्वती ने उन्हें प्रेरणा, विद्या और वाणी दी और जीवन के रूपांतरण की बुद्धि दी। विद्यादास से कालीदास का पुनर्जन्म हुआ। सारा ध्यान उन्होंने विद्याध्ययन में लगा दिया। कालांतर में उज्जयिनी को एक कालजयी कवि मिला, जिसने भर्तृहरि और विक्रमादित्य की राजसभा को शोभित किया। रूपांतरण का यह दिन विक्रम संवत्सर की माघ शुक्ल पंचमी थी। इसलिए माघ शुक्ल पंचमी बसन्त ऋतु के नाम पर

नाम में क्या रखा है?

नाम में क्या रखा है?           सुबह जो लड़का अख़बार दरवाज़े पर अड़सा कर या खुबेसकर जाता है, उसका नाम लखन है। जब अख़बार पढ़ चुकते हैं, तब अपार्टसमेंट्स के कॉरिडोर को बुहारने और पोंछा लगाने जो आती है उसका नाम है सुमित्रा। इन दोनों का आपस में कोई रिश्ता नहीं है। लखन नेत्रा में रहता है और सुमित्रा कोसमी में। हमारा दिन लखन के अख़बार दरवाज़े पर अड़साकर जाने से शुरू होता है।             लखन के बाद पीपलवाले चौक से सुबह की सब्ज़ियों की पहली खेप लेकर लक्ष्मी आती है।  उससे वे महिलाएं सब्ज़ी लेती हैं, जिनके घर के लोग ऑफिस वगैरह जाते हैं या सुबह सब्ज़ियां खरीदनी ज़्यादा ज़रूरी हो जाती है। लक्ष्मी सब्ज़ियां मंहगी और  तिल-तिल तौलकर देती है। महिलाएं उसे ताना भी देती हैं : "क्या बाई,  तुम तो ऐसा तौल रही हो जैसे सोना तौल रही हो।"           वह कहती : "क्या करें जी, हमें भी ऐसे मिला है।"            इस विवाद के बावजूद उसकी सब्ज़ियां बराबर बिकती रहती हैं। ज़रूरत मंहगाई से दोस्ती कर लेती है।            ग्यारह बजे दूसरी सब्जीवाली आती है, नवेगांव से। उसका नाम दुर्गा है। उसकी ज़ुबान मीठी है, तौल भी उसका दीनदय

स्वांतः सुखाय का सामाजिक सरोकार

 स्वांतः सुखाय का सामाजिक सरोकार  ० सभी को इस कहावत का अर्थ पता है कि 'अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता', इस लोकोक्ति को भी सैकड़ों बार सुन चुके हैं कि 'जंगल में मोर नाचा किसने देखा', तो कोई स्वेच्छा से सामाजिकता या सामाजिक सरोकार से मुंह कैसे मोड़ सकता है। अपनी अंतर्मुखी प्रवृत्ति के कारण, स्वाध्याय के कारण, मिलनसारिता के अभाव में, व्यवस्था-अव्यवस्था की आलोचना, विषमता और पक्षपात का विरोध करने, सच को बिना लाग लपेट के कहने, पाखण्ड नहीं करने या पाखण्ड का साथ नहीं देने के कारण यदि व्यक्ति अकेला पड़ जाए तो क्या उसे सामाजिक सरोकार से उदासीन या विरोधी व्यक्ति कहेंगे? क्या उसका कथित या लिखित वक्तव्य 'स्वान्तःसुखाय' हो सकता है? समयाभाव और सेवा सम्बन्धी विवशताओं के कारण, कहीं भी कविता पढ़ने न जाना, किसी भी संगठन में न जुड़ पाना, कोई आंदोलन या अभियान का हिस्सा नहीं होने के कारण क्या सारा व्यक्ति अकेला या एकाकी हो जाता है या हो जाना चाहिये? एक व्यक्ति का परिचय, एक सेठाश्रित व्यक्तिगत साहित्यिक संस्था के वंश-धर को, उसके अनुयायी ने यह कहकर दिया कि अमुकजी बहुत बढ़िया लिखते हैं लेकिन इनक