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Showing posts from October, 2021

अमृतध्वनि छंद या वृत्त

 2. अमृतध्वनि छंद या वृत्त  पिछले अंक में संस्कृत वृत्त या छंद 'अनुष्टुप' के सौंदर्य और रस का आनंद लेने के बाद हिंदी वर्णमाला के स्वरक्रम में आनेवाला छंद 'अमृतध्वनि' है। हालांकि 'छंदोमंजरी' के रचयिता संगीताचार्य मौला बख़्श घीसा खान ने अपनी अनुक्रमणिका में इसे 53 वां स्थान दिया है, किन्तु हम वर्णमाला के अनुक्रम का पालन करते हुए हम (राम-छंद-शाला के रसज्ञ जन) इसे दूसरे स्थान पर ले रहे हैं।   सर्वप्रथम छंदोमंजरी में 'अमृतध्वनि' के बारे में दी गयी निम्न जानकारियों से अवगत कराना चाहूंगा और इसी के साथ हम आगे बढ़ते जाएंगे।  ० ग्रंथ : संगीतानुसार छंदोमंजरी, ५३. अमृतध्वनि चरण अक्षर २२, त भ य ज स र न गा, मात्रा स्वरूप २२१ २११ १२२ १२१ ११२ २१२ १११ २ = ३२, राग : भैरव, ताल: खंड चौताल, मात्रा : विलंबकाळ.  (भैरव थाट/ राग भैरव - सम्पूर्ण सम्पूर्ण :   रि ध  कोमल, शेष शुद्ध)  ० स्वरलिपि:  ध-प-मग-रिगरि.म-ग-रिस-रिनिस. स-ग-मप-धमप. गम। ग-म-पध-पधनि.नि-स-रिस-रिनिस.ग-म-गरि-रिसनि.स-। रि-ग-रिस-रिसनि.ध-स-निध-पमग.स-नि-धप-पमग.गम। ध-प-मग-रिगरि.म-ग-रिस-रिनिस. स-ग-मपध-मप. गम। ० १.संस्कृत : 

संस्कृत छंद अनुष्टुप का हिंदी-उर्दू में प्रयोग

1. संस्कृत छंद अनुष्टुप का हिंदी-उर्दू में प्रयोग अनुष्टुप छन्द  संस्कृत काव्य में सर्वाधिक प्रयुक्त छन्द है। वेदों सहित रामायण, महाभारत तथा गीता के अधिकांश श्लोक अनुष्टुप छन्द में निबद्ध हैं।संस्कृत में अनुष्टुप वृत्त की लोकप्रियता और सरलता की तुल्य दृष्टि से हिन्दी में दोहा को समतुल्य कहा जा सकता है। आदिकवि बाल्मिकी द्वारा उच्चरित प्रथम श्लोक अनुष्टुप छन्द में ही है।  इसी प्रकार उज्जयिनी के राजा भर्तृहरि (विक्रमादित्य के अग्रज) के 'शतक-त्रयं' में कुल 37 अनुष्टुप वृत्त या छंद हैं। 'शतक-त्रयम्' के पहले शतक "नीतिशतक" का पहला मंगलाचरण श्लोक ही अनुष्टुप छंद/वृत्त में है। देखें- दिक्कलाद्य नवच्छिन्नानंतचिन्मात्रमूर्तये। स्वानुभूत्येक साराय नमः शान्ताय तेजसे। ।      ।।नी. श. भ. मंगलाचरण: प्रथम श्लोक।। 'शतक-त्रयम्' के भाष्यकार डॉ. ददन उपाध्याय ने 'नीति शतक' के मंगलाचरण की टीका करते हुए छंद या वृत्त की चर्चा भी की है और इसमें निबद्ध 'अनुष्टुप छंद' का लक्षणवृत्त भी प्रस्तुत किया है। अस्तु, अनुष्टुप वृत्त का गण-सूत्र या लक्षण-श्लोक इस प्