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Showing posts from October, 2020

ग़ज़ल

 ग़ज़ल  लगावटों में खलल पड़े क्यों ख़ामोशियों से दुआ करेंगे हमें मिली है वफ़ा की दौलत उसी के दम पर जिया करेंगे हमारे दिल में है अम्न ओ ईमां हंसी खुशी से रहा करेंगे जो खेलते हैं मिसाइलों से उन्हें नहीं रहनुमा करेंगे अदब की पाकीज़गी पै हमको भरोसा है वह सदा रहेगा  जमात मजहब की तंग फ़र्ज़ी बुराइयों से बचा करेंगे हैं रास्ते ज़िन्दगी के टेढ़े सम्हल सम्हलकर चला करेंगे जमीन से जब जुड़े हैं हम तो गिरा करेंगे उठा करेंगे गुज़ारिशोइल्तज़ा इनायत की जब नज़र से न देखी जाएं तो इंकलाबोबगावतों को मिलेगा मौक़ा वग़ा करेंगे तुम्हारे दस्ते हिना के आगे बहार क्या है गुलिस्तां क्या है कि नफ़्ज़ो जां खुश फ़िजां करेंगे कि ज़िन्दगी खुशनुमा करेंगे सभी यही चाहते हैं 'ज़ाहिद' सलीब चढ़कर बनें मसीहा ज़रा ये उनसे भी पूछ देखो किसे-किसे वो मना करेंगे  @कुमार ज़ाहिद, २६.१०.२०२०, १२-३.३०.१०.२०३०

बह्र पर बहस -१

बहर दी गयी... बहरेरजज़ मख़बून मरफ़ू’ मुख़ल्ला√ मुफ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ऊलुन मुफ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ऊलुन 1212 212 122 / /1212 212 122  0 एक साहब ने इस पर प्रतिवाद किया .. ०  ये बह्र रजज़ नहीं है । बहरे रजज़ की मूल अरकान  मुसतफ़इलुन (2212) चार बार हर मिसरे में आती है # ये बहरे मुतक़ारिब है √ बहरे मुतक़ारिब मक़बूज़ असलम सौलह रुकनी  अरकान 121,22,121,22121,22,121,22√ फ़ऊल -फ़ेलुन -फ़ऊल-फ़ेलुन -फ़ऊल-फ़ेलुन -फ़ऊल-फ़ेलुन । हर मिसरे में 8 बार  दोनों मिसरों में 16 बार ।  (अशोक गोयल)} ० ये नाम पढ़ा मैंने इस बहर का बहर-ए-रजज़ मुसम्मन मख़्बून मुरफ़्फ़ल  मफ़ाइलातुन----मफ़ाइलातुन---मफ़ाइलातुन---मफ़ाइलातुन  12122---------12122-------12122---------12122 (मीरा मनजीत) 0 (अशोक गोयल) मोहतरमा बहरे वाफ़िर ये है  अरकान  मुफ़ा इल तुन ,मुफ़ाइलतुन ,मुफ़ाइलतुन, मुफ़ाइलतुन  12112-12112-12112-12112  इस बह्र में उर्दू में शायद ही किसी ने ग़ज़ल कही हों । #### तमाम उर्दू शायरी में सिवा एक शेर के कहीं कुछ नहीं मिलता । ####### वो शेर हस्बे ज़ैल है ।ये शेर  जनाब तालिब लखनवी मरहूम का है । ****** डरा के कहा भला बे भला ,ख़फ़ा जो हुआ ज़रा वो सनम । मिरा भी ज़रा गिला