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Showing posts from March, 2022

ये कश्मीर है!!

  ये कश्मीर है!!          अगर फिरदौस बर रूए ज़मीं अस्त          अमी अस्तो अमी अस्तो अमी अस्त।।            यह शेर कश्मीर के संदर्भ में इतने अधिक बार  बोला गया है कि अब यह कश्मीर पर ही लिखा हुआ लगता है और इसी रूप में स्थापित भी हो गया है। यद्यपि इस पूरे शेर में कश्मीर कहीं आया नहीं है। फ़िरदौस शब्द जन्नत के लिए है। यह ज़मीन के हर उस हिस्से का प्रतिनिधित्व करता है जो स्वर्ग की तरह है। लेकिन स्वर्ग देखा किसने है कि कहां है और कैसा है। स्वर्ग एक ख़्याली पुलाव है। भारत और दुनिया के लोगों ने कश्मीर ज़रूर देखा है। ग़रीबों ने और मध्यमवर्गी लोगों ने फिल्मों के माध्यम से कश्मीर देखा है। कश्मीर की वादियों पर बहुत फिल्में बनीं जैसे कश्मीर की कली, जंगली, आरज़ू, जब जब फूल खिले, बेमिसाल, शीन आदि। कुछ गीत भी रचे गए हैं जिससे कश्मीर का पता चले। जैसे "कितनी ख़ूबसूरत ये तस्वीर है, ये कश्मीर है।" या फिर "ये तो कश्मीर है, इसकी फ़िज़ा का क्या कहना।" यह भी गीत है,"काशमिर की कली हूँ मैं, मुरझा गयी तो फिर न खिलूंगी, कभी नहीं, कभी नहीं।" लेकिन कश्मीर की कली तमाम विपरीत परिस्थितियों में खिल रह

फिर पलाश फूले हैं।

  फागुन राग सप्तम फिर पलाश फूले हैं।                             (स्वतंत्र मत, जबलपुर, २३ मार्च १९९७) फिर पलाश फूले हैं फिर फगुनाई है। मस्ती कब किसके दबाव में आई है! नाज़ उठाती हवा चल रही मतवाली। इतराती है शाख़ नए फूलों वाली। कलियां कब अब संकोचों में आती हैं। गाती हैं विस्फोट का गाना गाती हैं।। पत्ते नए, नए तेवर दिखलाते हैं। पेड़ उन्हें अपने माथे बिठलाते हैं। धूप, ठीक नवयौवन का अभिमान लिए। चूम रही धरती को नए विहान लिए।।            जिधर देखिए उधर वही तो छाई है।।१।।            मस्ती कब किसके दबाव में आई है! सिकुड़े बैठे शीत के मारे उठ धाये। खेतों की पेड़ों पर ठस के ठस आये। ख़ूब पकी है फसल पसीनावालों की। व्यर्थ गयी मंशा दुकाल की, पालों की।। भाग भाग कहने वाले शरमाये हैं। सिर्फ़ आग के रखवाले गरमाये हैं। गर्मी से जिनका रिश्ता है नेह भरा। खेतों खेतों जीवित है वह परम्परा।।            कुछ न कुछ कर गुज़रेगी तरुणाई है।।२।।            मस्ती कब किसके दबाव में आई है! दूध पका है बच्चे इन्हें भुनाएंगे। मसल हथेली फूंक-फूंक कर खाएंगे। मेड़ों पर जो ऊग रही है बे मतलब। वही घास बनती '

भारतीय स्वर्ग कश्मीर ?

  भारतीय स्वर्ग कश्मीर ? मैं एक महीने से योजना बना रहा था कि आपसे '15 मार्च की ख़ासियत ' को लेकर चर्चा करूंगा। लेकिन 11 मार्च को कश्मीर पर बनी फ़िल्म को लेकर सोशल मीडिया में चक्रवात आ गया। विभिन्न अभिकरणों और अभिकर्ताओं ने फ़िल्म देखने की पुरज़ोर अपील शुरू कर दी ताकि जलियांवालाबाग़ तथा सैकड़ों नरसंहार की तरह कश्मीर में हुए नरसंहार की तश्वीरें देखी जा सकें, ताकि क्रूरता के जघन्न और घिनौने दृश्य हमें पीड़ितों के क़रीब पहुंचा सकें, ताकि उनके प्रति सहानुभूति पैदा कर सकें।(?)  सोमवार 15 मार्च तक मीडिया में यह खबर आई  कि 250 भारतीय सैनिकों पर आतंकी हमले से हुए नरसंहार के प्रतिशोध स्वरूप जो सर्जिकल स्ट्राइक हुई, उसकी रोमांचित और उत्तेजित करनेवाली फ़िल्म ' उरी' को कई करोड़ पीछे छोड़ते हुए, 'कश्मीर-फाइल्स' केवल तीन दिन में साढ़े पंद्रह करोड़ का बिसिनेस करनेवाली फ़िल्म बनी। फ़िल्म के लेखक, निर्देशक और निर्माता विवेक रंजन अग्निहोत्री अपनी सहनिर्मात्री और अभिनेत्री पत्नी के साथ प्रधानमंत्री से भी मिल आये। अब दूसरी कंपनियों और अभिकरणों की भांति प्रधानमंत्री ने सभी से अपील की है कि इस फ़ि

महाभारत की कूटनयिक जंगी प्रासंगिकता

  महाभारत की कूटनयिक जंगी प्रासंगिकता रूस से अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ते हुए यूक्रेन ने भारत से सहायता और सहयोग की अपील की है और उसे महाभारत की दुहाई दी है। इसके पीछे के निहितार्थ को कितने प्रतिशत भारतीय समझ पाए, यह आंकलन मुश्किल है। हम सामान्य जनों से मिलकर बने भारत से इस जानकारी की उम्मीद नहीं रखते कि महाभारत युद्ध में किस विदेशी सत्ता ने किस हैसियत से सहायता पहुंचायी और किसे पहुंचाई? महाभारत का जाना-पहचाना प्रसंग यह है कि एक ही वंशवृक्ष की दो शाखाएं आपस में टकरा रहीं थीं। सत्ता पर आसीन शाखा अपना वर्चस्व सिद्ध कर रही थी और दूसरी शाखा अपनी नीति की लड़ाई लड़ रही थी। जो सत्ता पर है, वह भी भारत है और उसी भारत से यूक्रेन की सत्ता, महाभारत के नाम पर सहयोग की गुहार कर रही है। सत्तासीन भारत अपने मित्र राष्ट्र की सत्ता से अस्तित्व की लड़ाईवाली सत्ता द्वारा की गई सहायता की गुहार के किस निहितार्थ को समझ रहा है, इसका अनुमान राजनैतिक समीक्षक ही लगा सकते हैं। दूसरी तरफ आकार और संभवतः शक्ति में रूस की तुलना में छोटा देश है यूक्रेन, जो अपनी अस्मिता और स्वन्त्रतता बनाये रखने के लिए लड़ रहा है। यानी नीतिगत