क्षमावाणी, क्षमापना , मिच्छामि दुक्कड़म,खम्मत खामणा ० अगर दुखाया है दिल किसी का, तो दिल से हमको मुआफ़ कर दे।। (मुआफ़ : क्षमा,) मुहब्बतें हैं हमारी दौलत, जहान ये ए'तराफ़ कर दे।।१।।। (ए'तराफ़ : प्रमाणित,स्वीकार,अंगीकार) बड़ों की गुरुता है मान ऊंचा, लघुत्व का हो समीकरण में, गुणनफलों के सभी घटक से, ऋणात्मकता ही साफ़ कर दे।।२।। शिकायतों की इमारतों में, लगे हैं अंबार कमतरी के, सभी के क़द इस क़दर बढ़ा दे, ग़ज़ाल सारे जिराफ़ कर दे।।३।। (ग़ज़ाल : हिरण का बच्चा, ज़िराफ़ : ऊंट जैसा विशाल जंगली पशु,) बड़ी ही बारीक़ है गुमां की, सुरंग लम्बी मगर अंधेरी, क़िला अहंकार का बड़ा है, विनम्रता से ज़िहाफ़ कर दे।।४।।। (ज़िहाफ़ : लघु,) सदी की सबसे है आत्मकेंद्रित, अदब की महफ़िल, सुख़न की दुनिया, ज़रा सरककर मैं पास आऊं, तू ख़ुद को मुझमें मुज़ाफ़ कर दे।।५।। (मुज़ाफ़ : मिश्रित,) ० @ डॉ. रा. रा. कुमार, १९-२०.०९.२३, ११.५५ ,
गणेशोत्सव की निराशा बालाघाट में हर मोड़ पर, हर चौक पर गणेश पंडाल बनते थे, ख़ूब जगमगार रहती थी, ख़ूब शोर होता था। प्रतिमा से लेकर सजावट तक में भव्यता की होड़ लगी रहती थी। सड़कें और गलियां उत्सवी उत्साहियों से भरी रहती थी। सौंदर्य और लालित्य के दरिया उमड़ते रहते थे। सड़कों पर मधुमखियों के छत्ते की तरह सिर ही सिर होते थे। पैदल चलना मुहाल होता था। दुपहिया और चौपहियों की मुश्किलें तो पूछो ही मत। खाना खाने के बाद कल रात दस बजे हम लोगों ने सोचा कि लोगों के आर्थिक सहयोग से, शहर में हर जाति और भाषा भाषी समुदायों ने भव्य समारोह आयोजित किये हैं, जगमगार की है, उसका आनन्द लिया जाए और लोगों की ख़ुशी के दर्शन किये जायें। नहीं, नहीं, पैदल कौन घूम सकता है 100 किलोमीटर की परिधि में? हां.. तो.. लेकिन ... हम निराश हुए। पूरा शहर घूम लिया, केवल तीन स्थानों पर बड़ी शान्तिपूर्वक गणेश जी सूनी आंखों से भक्त विहीन पंडाल देख रहे थे। हम उनसे नज़र नहीं मिला सके। शहर के बाहर पांच किलोमीटर पर भरवेली माइंस है। वहां भी गए । वह भी बालाघाट की तरह शांत और उत्सव से उजाड़ था। हम पांच किलोमीटर और जंगल क