पालक रानी अपनी पसंद की प्रिय वस्तुओं पर जान छिड़कनेवालों, मुबारक हो! आज स्पिनैच डे है। भोज्य भाजी के रूप में स्पिनैच केवल घास फूस नहीं है, यह बहुमूल्य सब्ज़ी है, जो हमारे जीवन की बगिया को सब्ज़-बाग़ बनाती है। यह निहित स्वार्थियों की भांति बेहतरी के केवल सब्ज़ बाग़ नहीं दिखाती, बल्कि हमारे स्नायुमण्डल में भरपूर शक्ति और ऊर्जा का संचार करती है, हमारे शरीर को अपेक्षित विटामिन्स और मिनरल्स की आपूर्ति करती है। कुदरत ने स्पिनैच के रूप में हमें अनोखे तरीक़े से एक नायाब तोहफ़ा दिया है जो हमारे आहार को संतुलन प्रदान करता है। हां जी, हां जी, मैं आपका नाक भौं सिकोड़ना देख रहा हूं। आपका मन चाहता है कि आप विरोध में आवाज़ उठाएं और कहें- "यह क्या स्पिनैच-स्पिनैच कह रहे हो, हिंदी में बोलो, हिंदुस्तान में रह रहे हो।" मैं जानता हूं भाई, पर क्या करूँ। आप में से बहुमत जिससे प्यार करता है न, वह है ही विदेशी। भले ही आपने हिंदी में उसका कोई प्यारा सा नाम रख लिया हो, जैसे पालक, पर हिंदी नाम रख देने से यह कोई भारतीय सब्ज़ी तो हो नहीं जाएगी। इतना आसान है क्या भारतीय होना। आख़िर परम्परा भी तो कोई चीज़ है कि न
क्या क्या याद रखूं? याद करना या भूलना अथवा ‘मन’ में ‘रखना’ (जिसे सामान्यतः याद रखना कहते हैं), मानसिक नैसर्गिक सहजात क्रियाएं है। मस्तिष्क एक पूर्वनिधारित स्वमेव प्रक्रिया (आटो इन्स्टाल्ड प्रोग्राम) के अनुसार याद करता है या नहीं करता। इसके दो विभाग हैं-चेतन और अवचेतन। दोनों बैठकर तय करते हैं कि कितना चेतन में रहेगा और कितना अचेतन में। चेतन बहिर्मुखी है और अवचेतन अंतमुर्खी है। इसलिए शरीफ़ दिखाई देनेवाले व्यक्ति को देखकर लोग कहते है- दिखता तो शरीफ़ है, मगर किसके मन में क्या है, कौन कह सकता है। यह जो आरोपित मन है, यह वास्तव में मस्तिष्क ही है, जिसके दो भाग हैं- जो बाहर दिख रहा है, वह चलता पुरजा है, कहां गंभीर रहना है, कहां हंसोड़ बनना है, कहां अनुशासित रहना है और कहां हो-हल्ला करना है, यह सक्रिय मन करता है। जो शांत और घुम्मा मन है, वह कोमल भी है और कठोर भी। सत्य और मर्म का विशेषज्ञ है। वह अपने पत्ते दबाकर रखता है। वह रहस्यमय है और निर्णायक है। वह हमेशा न्यायशील नहीं होता, वह ऐसे निर्णय भी ले सकता है जो अन्यायपूर्ण लगें। अवचेतन भी तो पूर्व अनुभवों और अध्ययनों का जखीरा, खजाना या कबाड़ ही है।