रत्नाकर_की_वंशबेल : नवगीत 0 धीरे धीरे सही, खुल रहा, गुप्त-गुफ़ा का द्वार। कुछ रहस्य है सम-धर्मा लोगों में बढ़ा खिंचाव। आगे दम्भ, आक्रमण-मुद्रा, पीछे हुआ लगाव। संवादों को आशंकाएं रहीं मौन दुत्कार। दकियानूसी भाईचारा मेल-जोल, सह-जीवन। तर्कों के भाले चमकाता कट्टरपंथी दुर्जन। दुआ सलामी और प्रणामी ले निकलीं हथियार। रत्नाकर की वंश बेल में हृदय नहीं फलते हैं। कंक्रीट के क्रूर क्रोड़ में लूट लोभ पलते हैं। इस जंगल में कोई हो जो छुपकर करे न वार। @कुमार, दि.२१.०४.२०२२, गुरुवार।
ये कश्मीर है!! अगर फिरदौस बर रूए ज़मीं अस्त अमी अस्तो अमी अस्तो अमी अस्त।। यह शेर कश्मीर के संदर्भ में इतने अधिक बार बोला गया है कि अब यह कश्मीर पर ही लिखा हुआ लगता है और इसी रूप में स्थापित भी हो गया है। यद्यपि इस पूरे शेर में कश्मीर कहीं आया नहीं है। फ़िरदौस शब्द जन्नत के लिए है। यह ज़मीन के हर उस हिस्से का प्रतिनिधित्व करता है जो स्वर्ग की तरह है। लेकिन स्वर्ग देखा किसने है कि कहां है और कैसा है। स्वर्ग एक ख़्याली पुलाव है। भारत और दुनिया के लोगों ने कश्मीर ज़रूर देखा है। ग़रीबों ने और मध्यमवर्गी लोगों ने फिल्मों के माध्यम से कश्मीर देखा है। कश्मीर की वादियों पर बहुत फिल्में बनीं जैसे कश्मीर की कली, जंगली, आरज़ू, जब जब फूल खिले, बेमिसाल, शीन आदि। कुछ गीत भी रचे गए हैं जिससे कश्मीर का पता चले। जैसे "कितनी ख़ूबसूरत ये तस्वीर है, ये कश्मीर है।" या फिर "ये तो कश्मीर है, इसकी फ़िज़ा का क्या कहना।" यह भी गीत है,"काशमिर की कली हूँ मैं, मुरझा गयी तो फिर न खिलूंगी, कभी नहीं, कभी नहीं।" लेकिन कश्मीर की कली तमाम विपरीत परिस्थितियों में खिल रह