अरस्तू ने अपने अनुकरण के सिद्धांत में कहा है कि कोई भी काव्य या कलाकृति, रचना या चित्र, गीत या ग़ज़ल कभी मौलिक रचना नहीं होती, उसमें कहीं न कहीं अनुकरण ही होता है। कुछ दार्शनिक कहते हैं कि प्रकृति में समस्त कृतियां पूर्वात्य हैं। कलाकार जब भी कोई शिल्प गढ़ता है तो वह मात्र धूल अलग करता है। भारत में भी जिन्हें सांस्कृतिक कवि या कलाकार कहा जाता है उनकी काव्य-कृति या चित्र या शिल्प भारतीय पुराणों में वर्णित है। गीता को ऐसा ग्रंथ माना जाता है जो मनोवैज्ञानिक प्रेरणाओं का मूल स्रोत है। इसी प्रसंग में कालिदास उज्जयिनी के जिस राजदरबार के नवरत्न थे वह राजा भर्तृहरि का ही दरबार था। भर्तृहरि के छोटे भाई विक्रमादित्य के राजबार के कालिदास सहित अन्य नौ रत्न थे। स्वयं भर्तृहरि संस्कृत के समर्थ कवि थे। उन्होंने शतक त्रय के ‘नीतिशतक’ में नीचे लिखा प्रसिद्ध और ऐतिहासिक मुक्तक रचा जो प्रकारांतर से पश्चातवर्ती कवियों की प्रेरणा बनता रहा। वह श्लोक यह रहा... यां चिन्तयामि सततं मयि सा विरक्ता, साप्यन्यमिच्छति जनं स जनोऽन्यसक्तः। अस्मत्कृते च परिशुष्यति काचिदन्या, धिक्तां च तं च मदनं च इमां च मां
आस्था और अर्थतंत्र का बीजगणित : लोचदऊँ ''लॉक डाउन' में अर्थव्यवस्था चरमरा गई है', ऐसे हृदय विदारक समाचार मिलते रहते थे। चारों ओर उत्पादन और व्यापार के द्वार पर सन्नाटा छाया हुआ था। अर्थोपार्जन के हर माध्यम पर ताले पड़ गए थे। निर्माण की मजदूर इकाइयां उजड़े हुए घरों में लौटकर दम तोड़ रही थीं। देश महामारी और प्राकृतिक आपदाओं के टिड्डी दलों से घिर चुका था। केवल मुसीबतों की चर्चा ही ज़ोर- ज़ोर से बात कर रही थी बाक़ी सारी बातें सहमी और घिघियायी हुई थीं। कानाफूसी होने लगी थी कि ग़रीब देश और कितना ग़रीब हो जाएगा। अब पुलिस और सेना का क्या होगा? सरकारी अधिकारी और मंत्रियों का क्या होगा? पूंजीपतियों और उद्योगपतियों का क्या होगा? बैंक में करोड़ों मध्यम वर्गी साधारण लोगों का जो पैसा जमा है उसका क्या होगा? क्या जान और माल देश की अस्मिता को बचाने के लिए राजसात हो जाएगा? तरह तरह की चिंताओं से चिंतनशील प्राणियों का स्वास्थ्य खराब हो रहा था। इम्मुनिटी क्षीण हो रही थी और कमज़ोर होती दीवारों को तोड़कर कोविड शरीरों में प्रवेश कर रहा था। मृतदेहें आंकड़ें बना रहीं थीं। धीरे-धीरे दस महीने बीते। नया सा