गुरुपूर्णिमा दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं!
संस्कृत ग्रंथों में एक श्लोक प्रसिद्ध है-
चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः॥
*शब्दार्थ*: अज्ञान के अंधे-अंधेरे से बंद आंखों (चक्षुओं) को ज्ञान अंजन युक्त शलाका से जो खोलता है, उस गुरु को नमन!
भावार्थ : एक परम्परा सिखाती है, शिक्षित और दीक्षित करती है कि आंख मूंदक तथाकथित गुरुओं पर भरोसा कर लो और वही करो जो वह कहता है, वही देखो जो वह दिखाता है। इसका लाभ स्वार्थी और पाखंडी गुरुओं को बहुत होता है।
किंतु एक परम्परा वह भी है जहां व्यक्ति को तार्किक बनाया जाता है, वैज्ञानिक दृष्टि जिसे दी जाती है और जिसे आंख मूंदकर भरोसा करने की न शिक्षा दी जाती, न दीक्षा। इस परंपरा के गुरु आंख खुली रखकर दुनिया का अध्ययन, सत्य का परीक्षण करने के लिए निरन्तर सचेत करते हैं। वास्तव में ऐसे ही आंख खोलकर जीने का ज्ञान और विवेक का अभ्यास कराने वाले मार्गदर्शक अथवा गुरु को ही नमन है। तस्मै श्री गुरुवै नमः का यही अर्थ है- *उसी गुरु को नमन।*
गुरु पूर्णिमा :
वर्षा ऋतु के आरम्भ अर्थात आषाढ़ मास की आषाढ़ी-पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा कहते हैं। यह आषाढ़ी पूर्णिमा,साकार हिन्दू सनातनी परम्परा के ग्रन्थ महाभारत के रचयिता, संस्कृत के प्रकांड विद्वान, कृष्ण द्वैपायन व्यास का जन्मदिन भी है। उनका एक नाम वेद व्यास भी है। उन्हें आदिगुरु कहा जाता है और उनके सम्मान में गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा नाम से भी जाना जाता है।
निराकार सनातनी संत परम्परा के अंतर्गत संतकाल के संत घीसादास का भी जन्म इसी दिन हुआ था। वे कबीरदास के शिष्य थे। आषाढ़ी-पूर्णिमा संत गुरु घीसादास के अनुयायियोंके लिए भी महत्व का है।
सूर्य के ताप से तप्त भूमि को वर्षा से शीतलता एवं फसल पैदा करने की शक्ति मिलती है, इसलिए किसान अपने खेतों में पावस-कृषि की व्यवस्था करते हैं। शेष समाज के लिए घर में बैठकर सुरक्षित रहने के अतिरिक्त कोई काम नहीं होता। ऐसे समय ज्ञान सभाएं, महाकाव्यों के संगीत-बद्ध गायन की परंपरा चली आ रही है।
आदिकाल के शौर्य पर आधारित बुंदेली-काव्य "आल्हा" का गायन सर्वहारा वर्ग में और मध्यकाल के प्रसिद्ध महाकाव्य 'रामचरित मानस' का गायन मध्यमवर्गी हिन्दू क्षेत्रों में किया जाता है।
अन्य मतों के लोग विशेषकर सिख, बौद्ध और जैन भी अपनी परम्परा के अनुसार लोक संयोजन के कार्यक्रम करते हैं।
ये चार महीने मौसम की दृष्टि से भी सर्वश्रेष्ठ होते हैं। न अधिक गर्मी और न अधिक सर्दी। इसलिए अध्ययन, मनन, समूह चर्चा, कला प्रदर्शन आदि के लिए उपयुक्त माने गए हैं। अतः जो ज्ञानोन्मीलन करें ऐसी पुस्तकें पढ़ें। अपने मन से अधिक बातें करें, अपने मन की सुनें।
@ रा रा कुमार, १०.०७.२५, गुरुवार।
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