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Showing posts from September, 2010

और मेरा आगे निकल जाना

पड़े रह जाना तीन लेखकों का फुटपाथ पर और मेरा आगे निकल जाना तीन लेखक फुटपाथ पर पड़े हैं। सोचता हूं कि उन्हें उठा लूं। मगर मेरी खुद की हालत खस्ता है। लोग देख रहें है कि मैं भी फुटपाथ पर खड़ा हुआ हूं। फुटपाथ के साथ मैं इस कदर तदाकार हो चुका हूं कि उससे मेरा तादात्म्य स्थापित हो चुका है। संतों ने इसे ही पहुंची हुई स्थिति कहा है। मगर मैं संतों को कहां ढूंढूं कि वे मेरी इस स्थिति को देख सकें। फलस्वरूप मैं मनमारे फुटपाथ पर खड़ा बेचैनी से उसका इंतजार कर रहा हूं। मेरे हाव भाव से ही लग रहा है कि मैं जिसका इंतजार कर रहा हूं उसके लिए किसी भी स्थिति से गुजर सकता हूं। उसे देखकर मैं बावरा सा दौड़ सकता हूं ,बिना यह सोचे कि पागलों की तरह दौड़नवाली गाड़ियों के नीचे आ भी सकता हूं। यही आदर्श लगाव और प्रतीक्षा है। मैं जब अपनी बेसब्री नहीं संभाल पाता तो पास खड़े एक अजनबी से पूछता हूं:‘‘ वह कब आएगी।‘‘ अजनबी उपेक्षा से कहता है:‘‘ वह आधा घंटा बाद आएगी। मैं भी उसका इंतजार कर रहा हूं।‘‘ मैं समझ जाता हूं कि एक तो यही प्रतियोगिता में है जिसे पछाड़कर मुझे उस तक पहुंचना है। मैं तनाव में आ जाता हूं। ध्यान बंटाने के लि

चुहिया बनाम छछूंदर

डायरी 24.7.10 कल रात एक मोटे चूहे का एनकाउंटर किया। मारा नहीं ,बदहवास करके बाहर का रास्ता खोल दिया ताकि वह सुरक्षित जा सके। हमारी यही परम्परा है। हम मानवीयता की दृष्टि से दुश्मनों को या अपराधियों को लानत मलामत करके बाहर जाने का सुरक्षित रास्ता दिखा देते हैं। बहुत ही शातिर हुआ तो देश निकाला दे देते हैं। आतंकवादियों तक को हम कहते हैं कि जाओ , अब दुबारा मत आना। इस तरह की शैली को आजकल ‘समझौता एक्सप्रेस’ कहा जाता है। मैंने चूहे को इसी एक्सप्रेस में बाहर भेज दिया और कहा कि नापाक ! अब दुबारा मेरे घर में मत घुसना। क्या करें , इतनी कठोरता भी हम नहीं बरतते यानी उसे घर से नहीं निकालते अगर वह केवल मटर गस्ती करता और हमारा मनोरंजन करता रहता। अगर वह सब्जियों के उतारे हुए छिलके कुतरता या उसके लिए डाले गए रोटी के टुकड़े खाकर संतुष्ट हो जाता। मगर वह तो कपड़े तक कुतरने लगा था जिसमें कोई स्वाद नहीं होता ना ही कोई विटामिन या प्रोटीन ही होता। अब ये तो कोई शराफत नहीं थी! जिस घर में रह रहे हो उसी में छेद कर रहे हो!? आखि़र तुम चूहे हो ,कोई आदमी थोड़े ही हो। चूहे को ऐसा करना शोभा नहीं देता। हालांकि शुरू शुरू