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छठी का दूध याद आना


छठी का दूध याद आना

26.11.2025, बुधवार, बालाघाट।

 26 नवंबर आर्थिक, राजनैतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, वाणिज्यिक, प्रभुता सम्पन्न भारत के लिए महत्वपूर्ण दिन है।  

इसे वर्त्तमान पीढ़ी के समक्ष संविधान दिवस के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। इस इतिहास के साथ कि हमने अंग्रेजों की दो सौ वर्षीय आर्थिक, वाणिज्यिक और नागरिक दासता के विरुद्ध लड़कर 1947 की आज़ादी पाई थी। उसके बाद लगभग दो वर्ष की कड़ी मेहनत, विचार विमर्श, दूरदर्शिता, आदि के बाद अपना सबसे बड़ा वृहत्तम संविधान तैयार कर लिया था। संविधान सभा के अध्यक्ष और स्वंत्रत भारत के मनोनीत राष्ट्रपति मा. राजेन्द्र प्रसाद जी के हस्ताक्षर 26 नवंबर 1949 को हुए थे। इसे दो महीने बाद  26 जनवरी 1950 को लागू कर लिया गया। इसी हस्ताक्षर दिवस की याद में 26 नवंबर  को संविधान दिवस मनाया जाता है, याद किया और कराया जाता है। जिनकी उम्र 75 वर्ष या उससे कम है, उन्हें इस दिन का पता कराया जाता है, ज्ञान कराया जाता है। संज्ञान में लिया जाता है कि बची खुची जिस तार तार सांवैधानिकता की सांसों का हल्का स्वर हम सुन पा रहे हैं, वह आज के दिन ही तैयार होकर आनेवाले नए वर्ष की पहली 26 तारीख को लागू करने के लिए सुरक्षित रख लिया गया था। 
यह हुई संविधान के जन्म की बात। इस देश में कुछ पंचांग
होते हैं जिनमें दूध का हिसाब लिखा जाता है। यानी किस दिन आया, कब नागा मार दिया। नागा को ग़ैरहाज़िर के अर्थ में लेते हैं। पर मुझे लगता है यह शब्द नाग के डस लेने के भाव में लिया जाता होगा। कहना चाहते होंगे डस मत देना, पर लिहाज में नागा मत करना कहते होंगे। पुरखे बड़े होशियार थे। उनकी क्रिएरिविटी में अक्ल से भी काम लिया जाता था।

तो कुछ पञ्चाङ्ग जो सिर्फ़ कैलेंडर नहीं होते, 'दूध दिया और नागा किया' भी होते हैं, उनमें दूसरी विशेषता तारीख़ तिथि, मिति, हिजरी वगैरह भी होती है। कैलेंडर को सर्वोपयोगी भी तो बनाना है। व्यापार भी करना है, विपणन प्रबंधन भी करना है। इस प्रकार बहुमुखी कैलेंडर में हिजरी, शक, विक्रम संवत की तारीखें तिथियां भी न चाहने पर भी दिख ही जाती है। ख़ास छुट्टियां या त्योहार भी सम्बंधित खांचे में छपे होते हैं। इनका छपना बहुत ज़रूरी है। ये कैलेंडर स्त्रियों के त्यौहार के रोजनामचा हैं। 

स्त्रियां त्यौहारों की जान हैं। उन्हीं से घर और संसार जीवंत और सुंदर हैं। वे ही जीवन का सौन्दर्यशास्त्र हैं। 

 इस देश की यही महानता है कि इस देह की महान स्त्रियां अथवा नारियां कभी पुत्र के लिये, कभी पति के लिए व्रत करती ही रहती हैं। मनुष्य क्या वह तो देवताओं के लिये भी व्रत रखती हैं। शिव विवाह(तृतीया), गणेशजन्म(चतुर्थी), रामजन्म (नवमी), कृष्ण जन्म(अष्टमी) आदि।  और तो और पेड़, पौधे, कंकर, पत्थर  के लिए उनके व्रत चलते हैं।  आंवला नवमी, वट (बरगद) व्रत (अमावस या पूर्णिमा),  तुलसी शालीग्राम विवाह (ग्यारस, एकादशी)। पौधा और काले गोटे (कंकर) शालिग्राम की यह पूजा अद्भुत समन्वय से भरी हुई है। यह दिन एक और चौंकानेवाली तिथि का द्योतक है। इस दिन को देव उठनी एकादशी भी कहते हैं। स्त्री सिर्फ़ 'मॉर्निंग बेड-टी' बनाकर पतियों को ही नहीं जगाती, देवता (विष्णु) को भी जगाती है। 

मैं भी जाग गया हूँ। प्रायः जल्दी जाग जाता हूँ। 'बेड-टी' का सभ्य-शौक़ मुझे कभी नहीं रहा। विद्यार्थी काल से सुबह जल्दी उठकर पढ़ने लिखने लगता था। रेस्ट करना होता तो प्रातः-भ्रमण में निकल जाता। रात में आराम करने के लिए कमरे में टहलता था। कभी कभी जब नींद नहीं आती थी तो सोने के पहले चाय पी लेता था। बरसात में चार महीने चाय को हाथ क्या आंख तक नहीं लगाता था। शादी के बाद पत्नी ने चाय का चश्का डाला। सुबह सुबह कनेक्ट होने के लिए हेलो की जगह एक चषक में चाय लेकर आ जाती थी। साथ में बैठकर चाय की चुस्कियां लेते हुए थोड़ी बहुत बात कर लेना हमारी गुड मॉर्निंग हुआ करती। आज भी होती है। 

आज ख़ाली प्याले लेकर पत्नी चली गयी तो ख़ाली छूटा हुआ मैं क्या करता? मैंने कैलेंडर उतारकर यूंही आज की तारीख़ देखी तो उसमें लिखा था- नवंबर, 26,बुधवार,  बैंगन षष्ठी, चंपा षष्ठी, मार्गशीर्ष शुक्ल विक्रमी। 

षष्ठी शब्द बहुत सुना हुआ है। हल षष्टी तो हर साल सुनता हूँ। पुरुष संतानों के सुखमय जीवन के लिए स्त्रियां यानी मांएं इस दिन व्रत रखती हैं।

षष्ठी को बोलचाल में छठ या छठी भी कहते हैं। छठ तो बिहार प्रांत का वैश्विक त्यौहार है। 

छठी से 'छठी का दूध याद आना' मुहावरा बना है। मुझे छठी का दूध कभी याद नहीं आया। कैसे आ सकता है? छठी शिशु के जन्म के छठवें दिन होती है। सूदक उठता है, शुद्धिकरण होता है, जच्चा बच्चा क़् अनं होता है। स्नान के बाद मां बच्चे को दूध पिलाती है। यह भी कुछ कुछ देखा और बहुत कुछ सुना है। इस दिन में याद आने जैसी क्या बात है? अगर हो भी तो छः दिन के शिशु को याद कैसे रहेगी? कुछ भी कहते हैं।

सिर्फ़ झूठा रौब झाड़ने के लिए लोग कहते होंगे कि छठी का
दूध याद दिला देंगे। आप भी उनको झाड़ दीजिये। आ दिला याद। सौ प्रतिशत लोगों को जो याद नहीं है, वो तू आकर याद दिला।
मैंने जानने की कोशिश की है कि क्या होता है छठी के दूध में? सब बढ़िया होता है। मां का दूध तो अमृत होता है। रोग प्रतिरोधात्मक रसायनों और अनिवार्य रसायनों से परिपूर्ण यह दूध मां छठी स्नान करके पिलाये या उसके पहले पिलाये, बच्चे को लाभ ही पहुंचाते हैं। आजकल सुनते हैं कि किसी किसी मां के दूध में यूरेनियम के कुछ अंश पाए गए हैं जो किडनी, लिवर आदि के लिए उपयुक्त नहीं हैं। नवजात शिशुओं को पीलिया चार पांच दिन में हो ही जाता है। एक डेढ़ घंटे नवजात को सुबह की धूप में सुखा लो तो बहुत फायदा होता है। हड्डियां तक मज़बूत होती हैं। जो बूढ़े हो चुके हैं और दूध नहीं पचा पाते उन्हें सुबह और शाम की तरलीकृत धूप में एक डेढ़ घंटे अवश्य सूखना चाहिए। मतलब बैठना चाहिए। 

अच्छा विदा।  

आज छठी है, नागार्जुन की चंपा की याद में एक चषक दूध पी लेता हूँ। मुझे पच जाता है। पंचमी में पिलाओ या षष्ठी में, नवमी में या एकादशी में। मुझे सब समय पच जाता है। दूध पीकर    बैंगन का भुर्ता बनवाता या बनाता हूँ। इसी बहाने  छठी के दूध की और बैंगन के भुरते की याद को यादगार बना सकूंगा। 

 आपका भी दिन मङ्गलमय हो।


 

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