एक हिंदुस्तानी गीत
जिसकी लाठी भैंस उसी की,
है ज़मीन बलवान की।
देखी जाती नहीं है मुझसे, हालत हिंदुस्तान की।
मंचों पर जो चल निकले वो, कविता चोरी हो जाए।
और पकड़ में आ जाए तो सीनाज़ोरी हो जाए।।
आज अभी की बात नहीं यह सदियों से होता आया।
हमने कविता की लाशों पर कवियों को रोता पाया।।
गोद नहीं लेता है कोई, गुप्त अपहरण करता है।
दुल्हन को कुछ पता न चलता कौन संवरण करता है।।
ऐसे चलती है क्या दुनिया? यही तुम्हारी निष्ठा है?
यही कीर्ति कहलाती है क्या? यह सम्मान प्रतिष्ठा है?
चिंता नहीं किसी को कोई,
अपने स्वाभिमान की।
देखी जाती नहीं है मुझसे, हालत हिंदुस्तान की।
रूप रंग संभ्रांत, शिष्ट है, कोमल मीठी वाणी है।
कौन देखकर नहीं कहेगा सम्मुख सज्जन-प्राणी है।
आंख मूंदकर उस पर किसका, नहीं भरोसा हो जाए।
वही आंख का काजल चोरी करके चंपत हो जाए।
चेहरा पढ़ लेने का दावा करने वाले हार गए।
माथे लिखा नहीं पढ़ पाए, पढ़े ग्रंथ बेकार गए।
जीवन एक सराय है लेकिन अनुभव यही बताता है।
सच्चा राही वही जो भोजन, स्वयं पकाकर खाता है।
क्योंकि हमें ही रक्षा करनी,
है अपने सामान की।
देखी जाती नहीं है मुझसे, हालत हिंदुस्तान की।
हिंसा प्रतिहिंसा पग पग पर घात और प्रतिघात हैं।
गिद्ध अगर हैं डाल डाल तो, चील पात दर पात हैं।
अहंकार के सिंहनाद हैं, वर्चस्वों का झगड़ा है।
संबंधों के मल्ल युद्ध में, दंभ अकेला तगड़ा है ।
चालाकी ही सदाचार की खाल ओढ़कर रहती है।
यहां तराई से चोटी तक उल्टी गंगा बहती है।
लूले ही कहते हैं सारे उनकी उंगली पर नाचें।
और गधे ही चौपालों में नियमों की पोथी बांचें।
उल्लू उड़ उड़ कर करते हैं,
बातें नए विहान की।
देखी जाती नहीं है मुझसे, हालत हिंदुस्तान की।
@ कुमार, १६.१०.२४, सायं ०७.३५.
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