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गीतल एक ग़ज़ल

हिंदी ग़ज़ल : गीतल



यूं तो जीवन में कई नामी गिरामी आये।

नमकहलाल भी आये हैं, हरामी आये।


नाला करता हूँ तो सय्याद लगाए कोड़े,

आह भरता हूं तो सीने में सुनामी आये।


यक़ीन कर जिन्हें सौंपी थी मकां की चाबी,

वो उसी घर के एक दिन बने स्वामी आये।


कुछ अजब बात ही देखी है इन दिनों मैंने,

जहां पे लानतें आनी थी, सलामी आये।

 

चाहता हूं कि बनूँ पंछी, हिरण या घोड़ा,

हर तरफ़ रोड़े उसूलों के लगामी आये।


पहले हर बात में दिखतीं थीं हजारों ख़ूबी,

आज दिखने में हरिक बात में ख़ामी आये। 


ये वो षड्यंत्र हैं, तोड़े हैं जिन्होंने सपने,

गए दिनों यही साष्टांग प्रणामी आये। 


@कुमार ज़ाहिद, ११.१०.२४, प्रातः ७.३७


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