आज का सच : और सदा का....
*
पढ़ता रहता मन जाने क्या
*
पढ़ता रहता मन जाने क्या
छत पर लिखा हुआ!
*
अपढ़ आस्था बांच न पाती
सच की एक इबारत!
अनगढ़ गढ़े हुए शिल्पों की
पूजित शून्य इमारत!
दिव्य-भव्य परलोक प्रचारित
लौकिक असफलता के,
सन्नाटों के घंटे बजते
आहत किंतु अनाहत!
साष्टांग ही समर्पितों की
गर्वित शिखा हुआ!
*
खुली हवा को मंत्रित करना,
लहरों को सम्मोहित!
बुद्धि-शुद्धि के बीजक रचना,
मन को कर संशोधित!
नदियों का घाटों में बंटन,
वृक्षों का भूतों में,
प्रकृति के हर प्राण तत्व में
योजित द्रव्य नियोजित!
व्यक्ति व्यक्ति निद्रित उच्चारे,
सब कुछ सिखा हुआ!
*
अवचेतन की पृष्ठभूमि में
आठ गगन अनुलेखित!
खुली आंख के कोटर में हैं
नौ सागर उद्वेलित!
अपने अंतरिक्ष में अपना
अमित सौर मंडल है,
आग्रह के अनगिनत ग्रहों से
आकर्षित आवेशित!
अनदेखी किरणों में भासित
अदिखा दिखा हुआ!
*
😈
@ कुमार,
2.4.17, 9.29 am,
रविवार, जबलपुर
सच की एक इबारत!
अनगढ़ गढ़े हुए शिल्पों की
पूजित शून्य इमारत!
दिव्य-भव्य परलोक प्रचारित
लौकिक असफलता के,
सन्नाटों के घंटे बजते
आहत किंतु अनाहत!
साष्टांग ही समर्पितों की
गर्वित शिखा हुआ!
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खुली हवा को मंत्रित करना,
लहरों को सम्मोहित!
बुद्धि-शुद्धि के बीजक रचना,
मन को कर संशोधित!
नदियों का घाटों में बंटन,
वृक्षों का भूतों में,
प्रकृति के हर प्राण तत्व में
योजित द्रव्य नियोजित!
व्यक्ति व्यक्ति निद्रित उच्चारे,
सब कुछ सिखा हुआ!
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अवचेतन की पृष्ठभूमि में
आठ गगन अनुलेखित!
खुली आंख के कोटर में हैं
नौ सागर उद्वेलित!
अपने अंतरिक्ष में अपना
अमित सौर मंडल है,
आग्रह के अनगिनत ग्रहों से
आकर्षित आवेशित!
अनदेखी किरणों में भासित
अदिखा दिखा हुआ!
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@ कुमार,
2.4.17, 9.29 am,
रविवार, जबलपुर
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