आज की ग़ज़ल
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2122 2122 2122 212
बहरे रमल मुसम्मन महज़ूफ़
फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन
काफ़िया : ऊ स्वर
रदीफ़ : आ सके
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नीम के पेड़ों से भी चंदन की ख़ुशबू आ सके।
दिल बड़ा करके अगर वो मेरे बाज़ू आ सके।।
हो रही है जंग सारी ज़र ज़मीनों के लिए
शांति करुणा प्रेम क़ायम हो अगर तू आ सके
क्यों उन्हीं लोगों के दस्तर-ख़्वान हैं मेवों भरे
काश मुफ़लिस के कटोरों में भी काजू आ सके
राजधानी जाएंगी सद्भावना की गाडियां
कोशिशें हों एक अफ़ज़ल एक घीसू आ सके
हो ज़रा इंसानियत सबके ज़मीरों को अता
देखकर बद-हालियाँ आंखों में आंसू आ सके
@कुमार, १३/१४.०६.२१
#प्रयुक्त_शब्द :
बाज़ू بازُو : बगल, बायीं या दायीं तरफ़,
ज़र زَر : स्वर्ण, धन, संपत्ति, सम्पदा
कायम قائم : स्थिर स्थापित, मज़बूत
दस्तर-ख़्वान دَسْتَرخوان : भोजन लगाने के लिए बिछने वाला कपड़ा, भोजन की थाली रखने का चादर,
अफ़ज़ल اَفْضَل : सबसे उत्कृष्ट, उत्तम, बेहतरीन, एक मुस्लिम नाम,
घीसू : प्रेमचंद की कथा (कफ़न) का पात्र, एक पासी/दलित नाम, ज़मीर ضَمیر : विवेक, सही ग़लत को समझने की बुद्धि,
अता عَطا : प्रदान करना, बड़ों की ओर से छोटों को प्राप्य दान,
बद-हालियाँ (बद-हाली) بد حالی : कंगाली, दुर्दशा,
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