गीत ००० मापनी : (212 ×4) **** हम वहीं के वहीं आसमां के तले, ज़िंदगी भर ज़मीं ढूंढते रह गये। ख्वाब इतने दिखाए गये खामखां, हम बिजूके बने, खेत के रह गये। रात को क्या पता हम ही सूरज थे कल, वो समझती है हम स्वप्न में जी रहे। घूंट भर प्यास की आस में सैंकड़ों, आंख की पीर के आचमन पी रहे। मौसमों में हमें सिर्फ सूखा मिला, सावनों की खबर बांचते रह गए। ख्वाब इतने दिखाए गये खामखां... कंटकों का सफर खत्म होता नहीं, क्या पता बाग क्या, फूल होते हैं क्या? राह में राहजन ही मिले हर कदम, राहबर कौन है, दोस्त होते हैं क्या? कौन रस्ता तके, किसको संदेश दें, लापता का पता पूछते रह गए। ख्वाब इतने दिखाए गये खामखां... खुशबुओं की कनातों के इस पार हम, गुलशनों के तसव्वुर में मशगूल हैं। इंद्रधनुषों को मन में था बोया मगर, ऊगकर हाथ आये तो सब शूल थे। एक माला नहीं चुन सके प्यार की, चाह को चाव से चाहते रह गये। ख्वाब इतने दिखाए गये खामखां... है यहां क्या कोई जो करिश्मा करे, एक जादू म...