मुठ भर मुर्रा चना चबैना,
हरी मिर्च दंतियाता,
हीरा लेने चला बिसहुआ, तन जर्जर, मन मंगना!
बिना पंख के उड़े देखकर शांति निकेतन आये!
पुनर्नवा का अर्क निकाले, कुटज कूटकर खाये!
दो कौड़ी में बने हजारी, सुत अनमोल कहाये!
जो बोले वह सच हो जाये, ज्योतिष-मत हो जाये!
वह कबीर की बानी साधे,
कल्पलता सा फैले,
हर-सिंगार के फूल बिखेरे, इस अंगना, उस अंगना!!
जग को गीतांजली पिलाकर, सुध बुध सब बिसराये!
कृषि की कला काव्य-कुंज की कलियों सी महकाये!
क्षिति में भरी अकूत संपदा, मृत्य-अमृत्य, अजानी!
बंजर को करती उर्वर, मरुथल को पानी पानी!
जहां भिखारिन भी सोने-से,
सुत तक लौटा देती,
चलो वहां जाकर देखेंगे, लाल झारता झंगना!!
मन की धूल धूसरित गलियां, सौंधेपन से भर दे!
कुछ मनभाती बूंदाबांदी सूखा तन तर कर दे!
मुड़े-तुड़े कुछ बिसरे सपने आंखों में फैलाकर-
बुने घौंसला फिर से चिड़िया, तिनका-तिनका लाकर!
गीतों की फिर लगे चौकड़ी,
कृति-कस्तूरी महके,
फिर कविता-कामिनी चिहुंककर, हंस खनकाये कंगना!
***
डॉ. रामकुमार रामरिया,
मंगलवार,
दि. 23.04.2019,
(5 बजे शाम, रात्रि 10. 20 से 11, प्रातः 7.30)
Comments