#प्रधानमंत्री_पद
इन दिनों प्रतिष्ठित नाम, पदनाम और विशेषण कलंकित किये जा रहे हैं...योगी, साधु, साध्वी, चौकीदार, ... अगर इस सब से प्रेरित होकर कोई अपराधी थाने के सामने या जेल के भीतर खुद को थानेदार बताए तो दोषी कौन?
राजनीतिक लोगों को सांवैधनिक पद के साथ खिलवाड़ नहीं करना चाहिये। सुप्रीम कोर्ट को अपने निर्देशों की अवहेलना को गंभीरता से लेना चाहिए।
महामहिम राष्ट्रपति सर्वोच्च सांवैधानिक पद है... किसी दल के राजनैतिक दवाब के चलते उसे अन्य किसी पद के साथ स्थानापन्न करना संविधान और राष्ट्रपति पद का अपमान है।
इसी प्रकार प्रधानमंत्री भी गरिमामय सांवैधनिक पद है। किसी भी प्रधानमंत्री को यह अधिकार नही है कि उस पद को किसी अन्य पद से स्थानापन्न करे। ऐसा करना विधान द्रोह है। अगर पदनाम परिवर्तित ही करना है तो संसद में वैसा बिल ले आएं कि कोई भी व्यक्ति प्रधानमंत्री बनते ही राष्ट्रीय पदों के साथ खिलवाड़ करने का अधिकारी हो जाता है। सुप्रीम कोर्ट को राष्ट्रहित में यह अवश्य देखना चाहिए। चुनाव आयोग को निर्देश दिए जाने चाहिए कि पदों को लांछित करनेवाला व्यक्ति विधिश: दंडनीय हो।
कलेक्टर, शिक्षक, भृत्य सभी की विधिमान्य स्थिति है। कोई कलेक्टर शिक्षक कहकर क्लास लेने का अधिकारी हो जाता है तो उसे भृत्य होकर झाड़ू भी लगानी चाहिए और उस दिन का प्रभार किसी सामान्य मानसिक स्थिति वांले होशमंद अधिकारी को दे देना चाहिए।
किसी राजनैतिक दल को लाभ पहुंचाने के लिए कोई बड़े पद पर बैठा व्यक्ति स्वयं को सफाई कर्मी बना ले, कोई आपत्ति नहीं। किन्तु इसके साथ ही वह पद से अवकाश लेकर अपना पद किसी स्वस्थ व्यक्ति को सौंप कर नीचे उतर जाए। जिस पद की देश को आवश्यकता है, उस पद को बहुरूपियों की तरह, दोहरे चरित्र खेलकर नहीं सम्हाला जा सकता। देश को गंभीर व्यक्ति चाहिए, मसखरा नहीं।
हालांकि इस तरह का स्वस्थ व्यक्ति दिख भी नहीं रहा। इसका मतलब यह भी नहीं कि चुनाव आयोग उम्मीदवारों की तरफ से आंखें ही मूंद ले।
और हां, मतदाता खुल कर निर्णय दे कि कैसे व्यक्ति को किस चरित्र के साथ वे बागडोर सौंपना चाहते हैं। अगर राजनीति के पास चरित्रवान उम्मीदवार है ही नहीं तो #नोटा भी तो #मतदान ही है। #गलत_नेतृत्व_से_व्यवस्था_विहीन_समाज_श्रेष्ठ_है। #आंधी_और_तूफान, #मजबूत_मकान_बनाने_की_समझ, #बस्ती_को #ज़रूर_देगी।
नोट : कृपया इस पर बहस करने की बजाय वोटिंग मशीन में फैसला दर्ज करें।
इन दिनों प्रतिष्ठित नाम, पदनाम और विशेषण कलंकित किये जा रहे हैं...योगी, साधु, साध्वी, चौकीदार, ... अगर इस सब से प्रेरित होकर कोई अपराधी थाने के सामने या जेल के भीतर खुद को थानेदार बताए तो दोषी कौन?
राजनीतिक लोगों को सांवैधनिक पद के साथ खिलवाड़ नहीं करना चाहिये। सुप्रीम कोर्ट को अपने निर्देशों की अवहेलना को गंभीरता से लेना चाहिए।
महामहिम राष्ट्रपति सर्वोच्च सांवैधानिक पद है... किसी दल के राजनैतिक दवाब के चलते उसे अन्य किसी पद के साथ स्थानापन्न करना संविधान और राष्ट्रपति पद का अपमान है।
इसी प्रकार प्रधानमंत्री भी गरिमामय सांवैधनिक पद है। किसी भी प्रधानमंत्री को यह अधिकार नही है कि उस पद को किसी अन्य पद से स्थानापन्न करे। ऐसा करना विधान द्रोह है। अगर पदनाम परिवर्तित ही करना है तो संसद में वैसा बिल ले आएं कि कोई भी व्यक्ति प्रधानमंत्री बनते ही राष्ट्रीय पदों के साथ खिलवाड़ करने का अधिकारी हो जाता है। सुप्रीम कोर्ट को राष्ट्रहित में यह अवश्य देखना चाहिए। चुनाव आयोग को निर्देश दिए जाने चाहिए कि पदों को लांछित करनेवाला व्यक्ति विधिश: दंडनीय हो।
कलेक्टर, शिक्षक, भृत्य सभी की विधिमान्य स्थिति है। कोई कलेक्टर शिक्षक कहकर क्लास लेने का अधिकारी हो जाता है तो उसे भृत्य होकर झाड़ू भी लगानी चाहिए और उस दिन का प्रभार किसी सामान्य मानसिक स्थिति वांले होशमंद अधिकारी को दे देना चाहिए।
किसी राजनैतिक दल को लाभ पहुंचाने के लिए कोई बड़े पद पर बैठा व्यक्ति स्वयं को सफाई कर्मी बना ले, कोई आपत्ति नहीं। किन्तु इसके साथ ही वह पद से अवकाश लेकर अपना पद किसी स्वस्थ व्यक्ति को सौंप कर नीचे उतर जाए। जिस पद की देश को आवश्यकता है, उस पद को बहुरूपियों की तरह, दोहरे चरित्र खेलकर नहीं सम्हाला जा सकता। देश को गंभीर व्यक्ति चाहिए, मसखरा नहीं।
हालांकि इस तरह का स्वस्थ व्यक्ति दिख भी नहीं रहा। इसका मतलब यह भी नहीं कि चुनाव आयोग उम्मीदवारों की तरफ से आंखें ही मूंद ले।
और हां, मतदाता खुल कर निर्णय दे कि कैसे व्यक्ति को किस चरित्र के साथ वे बागडोर सौंपना चाहते हैं। अगर राजनीति के पास चरित्रवान उम्मीदवार है ही नहीं तो #नोटा भी तो #मतदान ही है। #गलत_नेतृत्व_से_व्यवस्था_विहीन_समाज_श्रेष्ठ_है। #आंधी_और_तूफान, #मजबूत_मकान_बनाने_की_समझ, #बस्ती_को #ज़रूर_देगी।
नोट : कृपया इस पर बहस करने की बजाय वोटिंग मशीन में फैसला दर्ज करें।
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