याद करता हूं तो हार जाता हूं
अपने जन्म तक भी नहीं पहुंच पाता
अपने ही जन्म का किसको पता
कब शुरू हुआ?
कोई बताएगा क्या?
मुझे ही इस्मिती आदबन ने कभी कभी बताया था-
"इन्हीं हाथों में आंख खोली थी तुमने छोटे भैया!
मैया तो बेहोश थी तुम्हें जनमते ही...
सब तो उन्हें संभालने में लग गए
तुम्हें कौन संभालता?
मैं ही न?
और अब तुम आकाश छूने लगे!!
तुम्हारा मुंह देखना हो तो गर्दन दुखती है,
पर सच्ची छोटे भैया! छाती जुड़ा जाती है...
खूब बढ़ो!"
मां ने बताया था कि जन्म से ही उसने
मुझे बुलाया था - 'छोटे भैया!'
राजनांदगांव के रानी सागर के नीचे
जो बस्ती है
बसंतपुर जानेवाली गाड़ादान को छूती यादवों की
उसी बस्ती में रहती थी वह इस्मिती मौसी..
दूध, दही सब वही लाती थी हमारे घर
और ढक्कन खोलते ही घर भर में खुशबू भर दे
ऐसा कड़काया गया घी..
एक बस्सी में मिश्री मिलाकर तो मैं ही
सबसे पहले भोग लगाता था
जब जब घी आता था
'उसकी जुबान में मक्खन था और बातों में घी'
कोई बात अच्छी लगती है तो
मुझे ये ही दो शब्द मिलते हैं
बलिष्ठ, हृष्ट और पुष्ट
अब वह नहीं रही....
रहती तो कितने साल की होती?
सौ सवा सौ से ऊपर की तो होती ही
मैं ही नवासी नब्बे का हो गया हूं
इतने ही सालों से साथ है राजनांदगांव मेरे
इस्मिती आदबन... मौसी ..के साथ तो और पहले से
इसी गांव में पैदा हुई, यही पली बढ़ी और
इसी गांव में उसका ब्याह हो गया
कहीं भी जाए, रहे, उसे लगता है
वह राजनांदगांव में ही है
सोए तो, जागे तो...
वह उसकी नस नस में था
यहीं जो पैदा हुई थी वह...
कहीं भी जाए, रहे, उसे लगता है
वह राजनांदगांव में ही है
सोए तो, जागे तो...
वह उसकी नस नस में था
यहीं जो पैदा हुई थी वह...
लगाव ऐसा होता है क्या?
वह जब जब ऐसा बोलती
उसका बोला हुआ मेरी नसों में सुगमुगाने लगता।
मैं भी जब जब जहां जहां गया
मेरी साथ राजनांदगांव की सुबह गई
रानी सागर और बूढ़ा सागर की लहरें गईं
मिल का भोंपू और राधा-मंदिर की सड़क गई
मैं हर शहर में उन्हें ढूंढने निकल जाता हूं
लेकिन जो छूट जाते हैं
वे भी कहीं मिलते हैं भला?
एक दिन किसी ने खबर दी कि ..
कि...
नहीं रहीं इस्मिती मौसी?
मैं स्तब्ध हुआ..
मुझे लगा राजनांदगांव का एक हिस्सा दरक गया
किले की एक दीवार गिर गई
किले के मुख्यद्वार के सामने खड़ा वह
छतनार बरगद आंधी में उखड़ गया
रानी सागर की लहरों में तूफ़ान उठा
और जाकर जैसे वह बूढ़ा सागर में समा गया..
शहर जैसे एक दूसरे के कंधे पर सिर रखकर रो रहा था..
मैं तो हिल भी नहीं सका
मन में एक ही सवाल था..
ऊपर जाकर जहां कहीं भी उसने आँखें खोली होंगी
तो क्या यही पूछा होगा लोगों से उसने....
'क्यों भैया!
क्या राजनांदगांव स्टेशन आ गया?'
०
@ कुमार, २९.१०.२५, बुधवार, ०९.२१

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