Skip to main content

काली_पुतली_चौक_की_चौपाटी_में_भारत_माता_और_आदिवासी_अस्मिता_का_सवाल

 काली_पुतली_चौक_की_चौपाटी_में_भारत_माता_और_आदिवासी_अस्मिता_का_सवाल


6 सितंबर 2025 को बालाघाट के इतिहास में एक और पुतली स्थापित हुई। चार सिंहों के रथ पर सवार 'भारत माता' (राष्ट्र पिता के बरक्स राष्ट्र माता) की रंगीन फाइबर प्रतिमा स्थापित की गई। शरद पूर्णिमा और महर्षि वाल्मीकि जयंती के अवसर पर इस प्रतिमा का स्थापित किया जाना  नगरपालिका अध्यक्ष की विशेष उपलब्धि बताया जा रहा है। 

बालाघाट जीरो माइल पर स्थित 'काली पुतली' चौक हमेशा से  अपने नाम और लोकेशन (क्षेत्र स्थिति) के लिए प्रसिद्ध है। इस नामकरण का कारण इस चौक के बीचों बीच स्थापित काली प्रतिमा है। यह प्रतिमा सिर्फ कलात्मकता के कारण स्थापित की गई हो और उसका और कोई निहितार्थ हो, सामान्यतः इस पर विश्वास करना मुश्किल है।  जानकारी के अभाव में इस पर किसी प्रकार का कयास लगाना भी उचित नहीं है। 

काली पुतली चौक जिस बिंदु पर स्थापित है वह छः मार्गों का संगम है।  एक बालाघाट गोंदिया मैन रोड, जो हनुमान चौक से जुड़ती है, सर्किट हाउस रोड पर स्थित अम्बेडकर चौक से आने वाली कनेक्टिंग रोड, जयस्तम्भ चौक से आनेवाली रोड, पुरानी कचहरी से आनेवाली रोड,  अवंति बाई चौक अथवा बस स्टैंड से आनेवाली रोड और सहकारी प्रिंटिंग प्रेस से होकर पुराने राम मंदिर को जानेवाली रोड, इस प्रकार यह  काली पुतली चौक बालाघाट का केंद्रीय और महत्वपूर्ण स्थल है। यहीं अनेक सार्वजनिक और शासकीय निकाय भी हैं। नगरपालिका, जिला सहकारी बैंक, यातायात पुलिस कार्यालय, स्नातकोत्तर महाविद्यालय, ज़िला जेल, पुरानी कचहरी, पुराना हनुमान मंदिर आदि हैं। इन सबके बावजूद इसका काली पुतली चौक होना जिज्ञासा का विषय है। पुष्ट जानकारी के अभाव यह मान लेना कि केवल काली पुतली के कारण यह काली पुतली चौक है, ऐसा मान लेना भी ठीक नहीं। 

इस चौक पर भारत माता की प्रतिमा स्थापित करने पर आदिवासियों के कतिपय संगठनों ने आपत्ति की है।  आदिवासी समूह का कहना है कि काली पुतली आदिवासी वंश की बाला है और उसका नाम बाला मरावी था। इस तरह उसकी साख को ख़त्म करने का प्रयास किया जा रहा है जिसका काम आदिवासियों के विरोधी कर रहे हैं। यह षड्यंत्र रोका जाना चाहिए। लेकिन कुछ रुकेगा नहीं। बहुमत दल की सत्ता भी कभी अपनी कार्यवाही रोकती है भला। मूर्ति आंदोलन को तो उसकी सफलता की बधाई देनी ही पड़ेगी। 

पुतलियों के शहर बालाघाट के हर तिराहे चौराहे पर एक और एक से अधिक प्रतिमाएं स्थित हैं जिनका ऐतिहासिक और राजनैतिक महत्व है। बैहर रोड में स्थित तिराहे को संविधान चौक का नाम दिया गया है किंतु कोई प्रतिमा नहीं है। भविष्य की राजनीति डॉ. अम्बेडकर की प्रतिमा लगाती है या मनु की यह कहा नहीं जा सकता, पर समझा जा सकता है। 

संविधान चौक के आगे बढ़ने पर रेलवे क्रासिंग के बाद बस स्टैंड और देवी तालाब जानेवाले तिराहे पर लाल बहादुर शास्त्री की छोटी सफेद प्रतिमा है। बस स्टैंड चौक पर रानी अवनति बाई लोधी की ताम्बिया प्रतिमा है। गोंदिया रोड से आने पर सरेखा पेट्रोल पंप तिराहे पर ज्योतिबा और सावित्री बाई फुले की काली प्रतिमाएं हैं। हनुमान चौक में आमने सामने दुर्गा मंदिर और हनुमान मंदिर हैं। दुर्गा मंदिर के आगे छोटी सफेद महात्मा गांधी की प्रतिमा है और बीच चौक पर  चंद्रशेखर आज़ाद की विशाल  काली प्रतिमा है।

मैन रोड में आगे बढ़ने पर इतवारी बाज़ार से देवी तालाब जानेवाले तिगड्डे में राणा प्रताप की काली प्रतिमा है। 

इसी मुख्य मार्ग में आगे बढ़ने पर जैन मंदिर के पास निकेतन तिगड्डे पर बहुत छोटी सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा है। यही मैन रोड आगे चलकर काली पुतली चौक में तब्दील हो जाता है। 

काली पुतली चौक से दक्षिण में अम्बेडकर चौक है। इस चौक के बीच में डॉ. अम्बेडकर का गोल्डन बस्ट (स्वर्णिम वक्षान्त) है। हनुमान चौक से इस चौक तक आनेवाला रास्ता सर्किट हाउस रोड कहलाता है क्योंकि इसी अम्बेडकर चौक पर सर्किट हाउस स्थित है। इस चौक से दक्षिण की ओर बढ़ने पर जीवन बीमा टिगड्डा है। इसी तिगड्डे पर पश्चिम की ओर जो रास्ता जाता है वह साउथ सिविल लाइन कहलाता है। इसी सिविल लाइन रोड पर पहला चौक आकाशवाणी चौक है जिसके डक्शन में आकाशवाणी, उत्तर में  टेलीफोन ऑफिस है। सांसद और विधायक बंगले भी इसी पर है। इस आकाशवाणी चौक में इंजीनयर विश्वेश्वरैया का स्वर्णिम वक्षान्त (गोल्डन बस्ट) है। 

विभन्न स्थानों पर स्थापित (मंदिरों को छोड़कर) मोती तालाब के दक्षिण में सहस्रबाहु की स्वर्णिम प्रतिमा, तालाब के पश्चिम में भूरा भगत की स्वर्णिम प्रतिमा, पॉलीटेक्निक कॉलेज के दोराहे पर सेन भगत की स्वर्णिम प्रतिमा, तालाब के आंतरिक परिसर में राजा भोज की काली प्रतिमा और मुख्य द्वार के प्रांगण में दानवीर रामा भाऊ नगपुरे का काला बस्ट (वक्षान्त)। 

भगतसिंग ज़िला चिकित्सालय के अंदर लगभग गुमनाम और सामान्य दृष्टि से दूर, केवल मरीजों और उनके परिजनों को नज़र आनेवाली काले रंग की भगतसिंह की प्रतिमा का ज़िक्र भी महत्व रखता है।

विशिष्ट प्रतिमा धर्मी सूत्रों के अनुसार अभी और प्रतिमाएं लगाई जानी हैं। कुछ लोगों का मानना है कि कुछ विशिष्ट राजनयिकों की मूर्तियां बनवाई का रही हैं। केंद्रीय और प्रांतीय सत्ताधारी दल के अनुमोदित सदस्य ही पालिका में हैं तो निश्चित रूप से किन व्यक्तियों की मूर्तियां लगाई जाएंगी इसका अनुमान सरल है। महात्मा गांधी के सामने ऐसे व्यक्ति की विशाल मूर्ति लगाई जा सकती है जिसने गांधी के सक्रिय जीवन की तेज धार को रोक दी। अम्बेडकर चौक में कश्मीर में बीमारी के कारण मृत महापुरुष की मूर्ति लगाई जा सकती है जो संविधान सभा के सदस्य भी थे। बहुमत चौक को योजनाबद्ध तरीके से नई मूर्ति के नाम से चौक को बुलाने लगेगा। बिना मारकाट के पुरानी मूर्ति के नाम को धराशाई कर नया नाम स्थापित हो जाएगा। 

   इस प्रकार लगभग 14 मुख्य प्रतिमाओं के नगर बालाघाट ने निरन्तर चर्चा में बने रहने की कला सीख ली है। इन चर्चाओं को जीवंत बनाये रखने में विविध राजनैतिक दल, सम्प्रदाय, समाज आदि की विशिष्ट भूमिका है। सभी को बधाई।

Comments

Popular posts from this blog

काग के भाग बड़े सजनी

पितृपक्ष में रसखान रोते हुए मिले। सजनी ने पूछा -‘क्यों रोते हो हे कवि!’ कवि ने कहा:‘ सजनी पितृ पक्ष लग गया है। एक बेसहारा चैनल ने पितृ पक्ष में कौवे की सराहना करते हुए एक पद की पंक्ति गलत सलत उठायी है कि कागा के भाग बड़े, कृश्न के हाथ से रोटी ले गया।’ सजनी ने हंसकर कहा-‘ यह तो तुम्हारी ही कविता का अंश है। जरा तोड़मरोड़कर प्रस्तुत किया है बस। तुम्हें खुश होना चाहिए । तुम तो रो रहे हो।’ कवि ने एक हिचकी लेकर कहा-‘ रोने की ही बात है ,हे सजनी! तोड़मोड़कर पेश करते तो उतनी बुरी बात नहीं है। कहते हैं यह कविता सूरदास ने लिखी है। एक कवि को अपनी कविता दूसरे के नाम से लगी देखकर रोना नहीं आएगा ? इन दिनों बाबरी-रामभूमि की संवेदनशीलता चल रही है। तो क्या जानबूझकर रसखान को खान मानकर वल्लभी सूरदास का नाम लगा दिया है। मनसे की तर्ज पर..?’ खिलखिलाकर हंस पड़ी सजनी-‘ भारतीय राजनीति की मार मध्यकाल तक चली गई कविराज ?’ फिर उसने अपने आंचल से कवि रसखान की आंखों से आंसू पोंछे और ढांढस बंधाने लगी। दृष्य में अंतरंगता को बढ़ते देख मैं एक शरीफ आदमी की तरह आगे बढ़ गया। मेरे साथ रसखान का कौवा भी कांव कांव करता चला आया।...

मार्बल सिटी का माडर्न हॉस्पीटल

उर्फ मरना तो है ही एक दिन इन दिनों चिकित्सा से बड़ा मुनाफे़ का उद्योग कोई दूसरा भी हो सकता है, इस समय मैं याद नहीं कर पा रहा हूं। नहीं जानता यह कहना ठीक नहीं। शिक्षा भी आज बहुत बड़ा व्यवसाय है। बिजली, जमीन, शराब, बिग-बाजार आदि भी बड़े व्यवसाय के रूप में स्थापित हैं। शिक्षा और स्वास्थ्य आदमी की सबसे बड़ी कमजोरियां हैं, इसलिए इनका दोहन भी उतना ही ताकतवर है। हमें जिन्दगी में यह सीखने मिलता है कि बलशाली को दबाने में हम शक्ति या बल का प्रयोग करना निरर्थक समझते हैं, इसलिए नहीं लगाते। दुर्बल को सताने में मज़ा आता है और आत्मबल प्राप्त होता है, इसलिए आत्मतुष्टि के लिए हम पूरी ताकत लगाकर पूरा आनंद प्राप्त करते हैं। मां बाप बच्चों के भविष्य के लिए सबसे मंहगे शैक्षणिक व्यावसायिक केन्द्र में जाते हैं। इसी प्रकार बीमार व्यक्ति को लेकर शुभचिन्तक महंगे चिकित्सालय में जाते हैं ताकि जीवन के मामले में कोई रिस्क न रहे। इसके लिए वे कोई भी कीमत चुकाना चाहते हैं और उनकी इसी कमजोरी को विनम्रता पूर्वक स्वीकार करके चिकित्सा व्यवसायी बड़ी से बड़ी कीमत लेकर उनके लिए चिकित्सा को संतोषजनक बना देते हैं। माडर्न ...

चूहों की प्रयोगशाला

( चींचीं चूहे से रेटसन जैरी तक ) मेरे प्रिय बालसखा , बचपन के दोस्त , चींचीं ! कैसे हो ? तुम तो खैर हमेशा मज़े में रहते हो। तुम्हें मैंने कभी उदास ,हताश और निराश नहीं देखा। जो तुमने ठान लिया वो तुम करके ही दम लेते हो। दम भी कहां लेते हों। एक काम खतम तो दूसरा शुरू कर देते हो। करते ही रहते हो। चाहे दीवार की सेंध हो ,चाहे कपड़ों का कुतरना हो , बाथरूम से साबुन लेकर भागना हो। साबुन चाहे स्त्री की हो या पुरुष की, तुमको चुराने में एक सा मज़ा आता है। सलवार भी तुम उतने ही प्यार से कुतरते हो , जितनी मुहब्बत से पतलून काटते हो। तुम एक सच्चे साम्यवादी हो। साम्यवादी से मेरा मतलब समतावादी है, ममतावादी है। यार, इधर राजनीति ने शब्दों को नई नई टोपियां पहना दी हैं तो ज़रा सावधान रहना पड़ता है। टोपी से याद आया। बचपन में मेरे लिए तीन शर्ट अलग अलग कलर की आई थीं। तब तो तुम कुछ पहनते नहीं थे। इसलिए तुम बिल से मुझे टुकुर टुकुर ताकते रहे। मैं हंस हंस कर अपनी शर्ट पहनकर आइने के सामने आगे पीछे का मुआइना करता रहा। ‘आइने के सामने मुआइना’ , अच्छी तुकबंदी है न! तुम्हें याद है ,तुम्हारी एक तुकबंद कविता किताबों में छप...