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सुनो, सुनो कुत्ते भौंक रहे हैं - 3


सुनो, सुनो कुत्ते भौंक रहे हैं - 3 (गतांक से आगे)

1.

सुनो सुनो कुत्ते भौंक रहे हैं,
आ रहे हैं बस्ती में भिखमंगे।
कुछ चिन्दी पहने हैं, कुछ ने पहने हैं थिगड़े ,
 और कुछ ने पहन रखी हैं रेशमी पोशाकें।
2.
सुनो सुनो कुत्ते भौंेक रहे हैं,
मेरी पत्नी अन्दर आ रही है,
घास फूस  और
गुर्रातें हुए धारदार चाकूओं के साथ,
जिनसे बहुत ज्यादा शोर हो रहा है।
3.
सुनो सुनो! कुत्ते भौंेक रहे हैं,
लेकिन तीन में से केवल एक पर
वे केवल रेशमी लबादे पर भौंक रहे है
वे कभी मुझ पर नहीं भौंकते।

राजा रेशमी लबादों का शौंकीन है
वह तुम सबको चाय पर बुला सकता है
लेकिन मैं चीथडे पहने हूं, मैं थिगड़ों में लिपटा हैं,
वह मुझे (चाय के लिए भी) नहीं पूछेगा।

सुनो सुनो! कुत्ते भौंेक रहे हैं,
राजा अवयस्क बिल्ली के बच्चों का शौकीन है,
वह उनके अंदर का सब कुछ निकालकर
बाहर फेंक देगा और
उनकी खाल के दस्ताने बनाकर पहनेगा।
(द थरटीन क्लाॅक (1950) से)
4.
सुनो सुनो! कुत्ते भौंेक रहे हैं,
ये समाजवादी है जो शहर में आ रहे हैं,
कोई चिन्दिया नहीं लपेटे हैं,
किसी ने थिगड़े नहीं लपेटे हैं,
वे अकड़कर इधर-उधर आ जा रहे है।

ग्यारहवीं शताब्दी ये सतरहवीं सदी तक इसका जो रूप रहा हो, अठारहवीं में इसका पहला रूप स्वीकृत हुआ जो नर्सरी में पढ़ाया जाता रहा। भारत सहित यह विश्व भर में घूमा और बच्चों में जितना लोकप्रिय हुआ, हुआ, कुछ नामचीन अंग्रेजी साहित्यकारों ने भी इसकी पेरोडियों में अपनी भड़ास निकाली। ये पैरोडियां बच्चों की समझ से बाहर की थी। ज़ाहिर है कि इनका संबंध ‘समझदारों’ से था। इस कविता को अपने लक्ष्य पर निशाना साधनेवाले समर्थ साहित्यरों में जेम्स थरबर और डी. एच. लारेंन्स के साथ साथ फ्रैंक बाम का नाम भी आता है। इस कविता में वेलवेट यानी रेशमी गाउन के प्रवेघ का कारण किंग जेम्स प्रथम थे जिन्हें रेशमी गाउन पहनना पसन्द था और जो रेशमी गाउन पहनकर ही दरबार में आते थे। इस जानकारी के बाद कविता में इसका प्रयोग व्यंग्यात्मक लग सकता है। कविता में कहीं टेग के स्थान पर जेग किया गया है। सोलहवीं सदी में टयूडर काल में जेग एक पहनावे की शैली थी। चैथी कविता में सोशिलिस्ट शब्द का आना सोवियत रूस में कयुनिस्टों आना और उससे उपजी खीझ को प्रदशित करता है।
लेकिन आज अशांत विश्व में; रूस, यूक्रेन, कजाक, श्रीलंका, अमेरिका, ब्रिटेन, पाकिस्तान और भारत में अपने अपने किस्म की बेचैनियों के बीच इस कविता का अचानक चर्चित हो उठना एकदम से चैंका देता है। क्या नये सिरे से इस की और पैरोडियां आनेवाली हैं? भारत में एक कहावत हाथी चले बाज़ार कुत्ते लगे हज़ार के बावजूद ...
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((समाप्त)

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