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ग़ज़ल

 रमल मुसम्मन मख़्बून महज़ूफ़ मक़्तूअ

फ़ाइलातुन फ़यइलातुन फ़यलातुन फ़ेलुन/फ़अलुन

2122 1122 1122 22 /112

1. 

मेरी आँखों के समंदर पे तो तैरे कोई
इस तरह दिल में उतर पाएगा गहरे कोई

लेते रहता है फ़लक भर के क्यों फेरे कोई
ठौर इतने हैं कहीं पर भी तो ठहरे कोई

शक़्ल-- चीज़ें -- न दिखें राह-गुज़र -- चारागर
ज़हन में क्यों लिए फिरता है ये कुहरे कोई

जिसके होने से बियाबां में बहारां होती
एक गुंचा तो खिलाये मेरे डेरे कोई

चिलमनों में भी मिले रुख पे हिज़ाब ओढ़े थे 
डालकर ख़ुद पे ही रखता है क्या पहरे कोई

रंज ग़म जख़्म तलातुम में गिरफ़्तार बशर 
इस बुरे तौर से इंसां को न पेरे कोई

चैन देते हैं सुकूँ देते शिफ़ा देते हैं 
मेरे पहलू से हटाए न अंधेरे कोई

@कुमार, ज़ाहिद, हबीब अनवर, १५.१२.२१

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