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आंखों का मामला

 आंखों का मामला


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धराये गए आज 'दो चोर' मन के,
'अदालत में आहों की' लाये गए हैं।
खचाखच भरी है जो बेचैनियों से,
वहां उनके मुद्दे उठाए गए हैं।

ये *पहली-नज़र* हैं जो पहले लुटी थीं,
ये वो 'बेरुखी' हैं जो बचती फिरीं थीं।
ज़रा देखिये 'नीची नज़रों' की हालत,
रहीं सर झुकाए कभी जब घिरीं थीं।
क़दम वो जो घबरा के थम से गए थे,
क़दम ये उन्हीं के उठाये गए हैं।
धराये गए आज 'दो चोर' मन के,
अदालत में आहों की लाये गए हैं।

कनखियां अभी भी हैं कतरा रही सी,
इधर तिरछी नज़रें भी ख़ामोश अब भी।
उधर नीमबाज़ आंख हैं सकपकाई,
लगी हो नज़र ऐसी मदहोश अब भी।
जहां चोर नज़रों के कुनबे हैं बैठे,
वहां तक ठगौरी के साये गए हैं।
धराये गए आज 'दो चोर' मन के,
अदालत में आहों की लाये गए हैं।

चढ़े आंख में, आंख से गिर गए कुछ,
बसे रह गए आंख में भाग्यशाली।
हुये आंख की किरकिरी कुछ अभागे,
कहीं नैन तारों ने, आंखें चुरा ली।
जो काजल चुराते हैं आंखों के वो सब,
निगाहों में दुनिया की लाये गए हैं।
धराये गए आज 'दो चोर' मन के,
अदालत में आहों की लाये गए हैं।

कटीले, रसीले, शराबी, नशीले,
कई नाम से ये ठगे जा रहे हैं।
लगन, लोभ, लालच, जगा लालसाएं,
जमाने से छलिये छले जा रहे हैं।
चपल और स्वच्छंद हैं इसलिए ये
नज़र बन्द करके छुपाए गए हैं।
धराये गए आज 'दो चोर' मन के,
अदालत में आहों की लाये गए हैं।
*
@ कुमार वेणु,
१०.०१.२०२१, रविवार, संजीविनी नगर, जबलपुर.
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(१२२ १२२ १२२ १२२, १२२ १२२ १२२ १२२.)

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