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Showing posts from November, 2025

भगवान बिरसा मुंडा जयंती 2

 भगवान बिरसा मुंडा जयंती पर 32 बंदी जेल से रिहा  : एक आदिमजाति विमर्श         आदिमजातीय गौरव दिवस, यानी 15 नवंबर को भगवान बिरसा मुंडा की जयंती पर, मध्यप्रदेश राज्य अपनी विभिन्न जेलों से कुल 32 कैदियों को मुक्त करने वाला 'देश का पहला राज्य' बन गया है।  यद्यपि यह रिहाई जेल प्रावधानों के तहत 'अच्छे आचरणों के आधार पर रिहाई नियम' के अंतर्गत हुई है, किंतु इसे म.प्र. सरकार ने  अपने इस कदम  को आदिम-जातीय समुदाय के गौरव को सम्मान प्रदान करनेवाला "ऐतिहासिक कदम" बताया है।            मुक्त किए गए 32 कैदियों में जबलपुर जेल से 6 बंदी (5 पुरुष, 1 महिला), ग्वालियर सेंट्रल जेल से एक पुरुष बंदी शामिल है।  कटनी और छिंदवाड़ा सहित अन्य जिलों की जेलों से भी कैदियों को रिहा किया गया। इन 32 कैदियों में से केवल 9 आदिवासी समुदाय से संबंधित हैं।              मध्य प्रदेश सरकार की नई नीति के अनुसार, अब साल में कुल पांच बार जेल से कैदियों की रिहाई की जाएगी-1. 26 जनवरी (गणतंत्र दिवस), 2. 15 अगस्त (स्वतंत...

बिरसा मुंडा : उलगुलान

बिरसा मुंडा 'धरती आबा'(धरती पिता) (15 नवंबर 1875 - 9 जून 1900) जन्म स्थल : ग्राम-सिंजुड़ी टोला-बाहम्बा खुटकटी गांव-उलिहातु, राँची जिला, बंगाल प्रेसिडेंसी (अब खूँटी जिला, झारखंड) बिरसा मुंडा एक भारतीय आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी और मुंडा जनजाति के लोक नायक थे। बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1875 के दशक में एक गरीब किसान परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम सुगना पुर्ती (मुंडा) और माता का नाम करमी पुर्ती (मुंडा) था। साल्गा गाँव में प्रारंभिक पढ़ाई के बाद वे चाईबासा (गोस्नर इवेंजेलिकल लुथरन चर्च) विद्यालय में पढ़ाई करने चले गए। उन्होंने ब्रिटिश राज के दौरान 19वीं शताब्दी के अंत में बंगाल प्रेसीडेंसी (अब झारखंड) में हुए एक आदिवासी धार्मिक सहस्राब्दी आंदोलन का नेतृत्व किया, जिससे वह भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति बन गए। भारत के आदिवासी उन्हें भगवान मानते हैं और 'धरती आबा' नाम से भी जाना जाता है। 'उलगुलान' (आदिवासी विद्रोह) के नायक बिरसा मुंडा-                 19वीं शताब्दी के अंत में अंग्रेजों ने कुटिल नीति अपनाकर आदिवासियों को...

कटोगे तो विकास करोगे!

 कटोगे तो विकास करोगे! जंगल से जल ज़मीन छीन खोद खदानें, शेरों को सब्ज़ बाग़ दिखाती है सियासत। बंदूक फेंक दी है निहत्थे हुए हैं फिर,  मज़बूर मुल्क में हुई बे-दख़्ल बग़ाबत।           @ कुमार,०६.११.२५, गुरुवार, ०८०९ जंगल से कटे तो मिले शहरों के क़त्लगाह, वनवासी कभी शेर थे अब बैल बनेंगे। ख़ूँखार ज़िंदगी की कलाबाज़ियाँ गईं, चालाकियाँ के देश में ये खेल बनेंगे।          @ कुमार, ०७.११.२५, शुक्रवार, ०७.३९ काटें ज़मीन से तुम्हें आकाश बनाएं। सूरज के, चांद तारों के सपनों से सजाएं। तुम पैर की जूती हो तुम्हें ऐसे उछालें, यूं मुफ़्त में दुनिया की तुम्हें सैर कराएं।          @ कुमार, ०७.११.२५, शुक्रवार, ०७.५१

मिट्टी मेरे गॉंव की

  मिट्टी मेरे गॉंव की मचल रही है बहुत दिनों से पनहीँ मेरे पांव की। शायद मुझको बुला रही है मिट्टी मेरे गॉंव की।। आंगन में जलते दीपक का सुबह शाम यह काम था।  आये-जाये कोई सबसे लेता खरा प्रणाम था।  घर मेरा, आंगन मेरा था बेशक चौरा मेरा, लेकिन सबकी अपनी थी वह  तुलसी मेरे गाँव की। नित सुख दुःख की सभा बनी थी,  मौलशिरी की छांव घनी। आम, नीम, जामुन की छाया,   कड़ी धूप में ठाँव बनी। इन चारों से चौपालें अब पंचायत क्या बन पातीं, बनी रसीली पंच पांचवीं  इमली मेरे गाँव की।     अमराई की ठंडी-ठंडी याद बसी मन में अब भी। रोक सकेंगे मुझको आख़िर नगरों के झंझट कब तक।  बुला रहीं हैं जाने कब से यादों की दादी नानी,  हाट, बाट, नदिया तट, पनघट, चक्की मेरे गॉंव की। मन में बढ़ता सन्नाटा है, बाहर इतनी भीड़ बढ़ी।  तर्जन, वर्जन, धूल, धुआं की जाली मेरे नीड़ चढ़ी। स्थगनों के अम्बारों में व्यस्त विवशता ढूंढ रही, मिले कहीं निर्मल निर्झर-सी चिट्ठी मेरे गॉंव की।                               ...