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नए दिन की बधाई

एक कविता

*#किंतु..*

फैली हुई धूप
बहती हुई हवा
हिलती हुई डालियां
खिले हुए रंग बिरंगे फूल
मैं सबको
नए दिन की 
बधाई देना चाहता हूं
किंतु...


प्रातः भ्रमण में निकले बुज़ुर्ग
दौड़ते हुए युवा
खेलते हुए बच्चे
भागती हुई भीड़
आँचल को कमर में दबोचकर
कचरा फेंकने निकली गृहणियां
मैं सबको
नए दिन की 
बधाई देना चाहता हूं
किंतु...

काम पर निकले मज़दूर
ऑटो दौड़ाते ऑटोचालक
अल्पसंख्यक लुप्त प्राय 
साईकल रिक्शा के पैडलों पर
पूरी ताक़त झौंकते रिक्शा-चालकों
विश्व के सबसे धनी 
किंतु अ-दानी के देश में
भीख मांगने निकले
बच्चे, बूढ़े, औरतें और निराश पुरुष भिखारियों को
मैं नए दिन की 
बधाई देना चाहता हूं
किंतु...

किसी के पास फुर्सत नहीं है
न इतनी जगह
जहां वे इस बधाई जैसे
मुफ़्त में बांटे गए
पम्पलेट को रख सके
फिर भी 
ऊपर की सूची में से 
आप जो भी हो
मैं आपको भी
नए दिन की 
बधाई देना चाहता हूं
किंतु...

आप रखते हैं क्या
याद ऐसी बधाइयां
इनकी क़ीमत लगाते हैं क्या
आपके जीवन के ख़ालीपन से
लबालब भरे दिल में
शेष है क्या कोई जगह?

फिर भी....
मैं सबको
नए दिन की 
बधाई देना चाहता हूं

हां, फायदा क्या है 
कुछ नहीं
जानता हूं 
किंतु...

*-- #तुहिन_निरक्षर, ०९.१२.२४*

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