गीतल : बरसात और पहाड़
बरसात में जंगल का अंदाज़ निराला है
जैसे ये नवोढ़ा है नवयौवना बाला है
नदियां भी उमड़ती हैं बादल भी मचलते हैं
दोनों के इरादों ने दिल सबका उछाला है
फिसलें हैं पहाड़ों से उद्दण्ड बण्ड झरने
झीलों ने बिछा आंचल गिरतों को संभाला है
सावन की नई धुन में नाचे हैं बदलियां भी
पायल की झमाझम का संगीत ही आला है
लफ़्ज़ों में नहीं लिखते अहसास कथा अपनी
इनके न कहीं मकतब निकला न रिसाला है
@कुमार,
रूपझर घाटी, चौवन मोड़, लौगुर।
शब्दार्थ :
नवोढ़ा : नई दुल्हन,
मकतब : ग्रंथालय,
रिसाला : पत्रिका, मैगज़ीन।
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