बेताला : निजी रोज़नामचा
29 अगस्त 2024, गुरुवार
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आज हॉकी के जादूगर मेजर ध्यान सिंह का जन्म दिन है।
उन्होंने हॉकी में लगातार तीन स्वर्ण पदक भारत के मुकुट में जड़ कर जादूगर की उपाधि हासिल की थी।
आज भले ही ओलंपिक में भारत के लिए स्वर्ण पदक जीतना किसी सपने की तरह हो, लेकिन 1928 ओलंपिक में अपना डेब्यू करते हुए भारतीय हॉकी टीम ने अपना पहला स्वर्ण पदक हासिल किया था। उस ओलंपिक में भारत ने 5 मैच खेले थे और कुल 29 गोल दागे थे और एक भी गोल उनके ख़िलाफ़ नहीं हुआ था। इस दौरान ध्यान चंद की हॉकी स्टिक से 14 गोल आए थे।
इसके बाद तो ध्यान चंद भारतीय हॉकी टीम के प्रमुख अंग ही बन गए थे और 1932 और 1936 ओलंपिक में भी उन्होंने अपने दम पर भारत को दो और ओलंपिक स्वर्ण पदक दिलाए थे और अपनी कप्तानी में ही भारत को गोल्ड मेडल की हैट्रिक बनवाई।
हॉकी दुनिया के लोकप्रिय खेलों में से एक हो गया हो, जो एक ओलंपिक खेल तो है ही, साथ ही साथ वर्ल्ड कप, चैंपियंस ट्रॉफ़ी और FIH प्रो लीग जैसी बड़ी प्रतियोगिताओं में भी ये शामिल है। हॉकी का इतिहास काफ़ी पुराना है जो 16वीं सदी से चला आ रहा है।
हॉकी (तब अंग्रेज़ी में होकी Hokie)की शुरुआत संभवत: 1527 में स्कॉटलैंड से हुई थी। इसी तरह का खेल उस समय मिस्र में भी खेला जाता था।
वर्तमान हॉकी का प्रारम्भ 18वीं सदी के अंत और 19वीं सदी के आरम्भ से में ब्रिटिश द्वारा हुई थी। तब ये स्कूल में एक लोकप्रिय खेल हुआ करता था और फिर ब्रिटिश साम्राज्य में 1850 में इसे भारतीय आर्मी में भी शामिल किया गया। देश में पहला हॉकी क्लब कलकत्ता (अब कोलकाता) में 1855 में स्थापित किया गया था।
1924 में अंतरराष्ट्रीय हॉकी संघ स्थापित हुआ और 1925 में भारतीय हॉकी संघ की स्थापना हुई ।
1926 में भाहॉसं (IHF) ने पहला अंतर्राष्ट्रीय टूर न्यूज़ीलैंड का किया, जहां भारतीय हॉकी टीम ने 21 मैचों में से 18 में जीत हासिल की। इसी टूर्नामेंट में ध्यान चंद जैसी दिग्गज शख़्सियत को दुनिया ने पहली बार देखा था, जो आगे चलकर सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी बन गए।
यहीं से भारतीय हॉकी टीम के सुनहरे अतीत की शुरुआत हुई थी और फिर भारत ने अब तक रिकॉर्ड 8 ओलंपिक स्वर्ण पदक अपने नाम किए।
पहला हॉकी का ओलंपिक स्टेटस 1928 एम्सटर्डम ओलंपिक में दिया जिसमें अपना डेब्यू करते हुए भारतीय हॉकी टीम ने स्वर्ण पदक हासिल किया। भारत ने 5 मैच में 29 गोल अपने नाम किये जिसमें 14 गोल सिर्फ़ मेजर ध्यान चंद की हॉकी स्टिक से आये। 1932 और 1936 ओलंपिक में भी उन्होंने अपने दम पर भारत को दो और ओलंपिक स्वर्ण पदक दिलाए थे। इस प्रकार मेजर ध्यानचंद ने अपनी कप्तानी में भारत को गोल्ड मेडल की हैट्रिक बनवाई। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद भी स्वतंत्र भारत में यह सिलसिला ज़ारी रहा जिसे क़ायम रखते हुए बलबीर सिंह सीनियर ने 1948, 1952 और 1956 में फिर भारत को लगातार तीन स्वर्ण पदक की हैट्रिक दिलवाई।
इसके बाद भारत के हाथ से हॉकी छूटती चली गई। वह आठ सतत स्वर्ण से एक रजत पर छूटी और फिर कांस्य पर गिरी और इक्कीसवीं सदी के प्राम्भिक दो दशकों तक वह हासिये में पड़ी रही।
हालांकि इस बीच 1998 में धनराज पिल्लई ने एशियन गेम्स में भारत को स्वर्ण पदक दिलाते हुए कई सालों की प्यास पर एक बूंद अवश्य डाली। इसी वर्ष महिला हॉकी टीम ने रजत से भारत को शोभित किया और 2002 कॉमनवेल्थ गेम्स में भारतीय महिला हॉकी टीम ने स्वर्ण पदक पर कब्ज़ा जमाया।
फिर रजत और कांस्य के साथ महिला टीम संघर्ष करती रही लेकिन पुरुष दल फिर हासिये में चला गया।
2024 में कप्तान हरमनप्रीत सिंह 10 गोल के साथ टूर्नामेंट में शीर्ष गोल स्कोरर थे। गोलरक्षक पी आर श्रीजेश ने स्पेन द्वारा ख़तरनाक़ हिट किये गए 5 गोल बचाकर भारत के नाम कांस्य पदक दिलवाकर हॉकी से संन्यास ले लिया।
और आज हम मेजर ध्यानसिंह को उनके जन्मदिन पर याद करते हुए गर्व का अनुभव कर रहे हैं
Comments
बहुत बधाई आपको इस संस्मरण हेतु।