आज की ग़ज़ल
0
हमेशा' अपनी' ही मर्ज़ी से क्यों जिया जाए
कभी हवा की दिशा में भी बह लिया जाए
कभी हवा की दिशा में भी बह लिया जाए
फटे दिलों को मुहब्बत से अब सिया जाए
हुए कटार से रिश्ते हैं क्या किया जाए
तबील राह हो तो ये सबक़ ज़रूरी है
मुसाफ़िरों के बराबर सफ़र किया जाए
हंसी ख़ुशी के ये लम्हात गर गए तो गये
हज़ार जख़्म दबा मौज में जिया जाए
ज़मीन पास में होगी तो नींव रख लेंगे
बने मकान तो छत उठ के आलिया जाए
मसर्रतों का मुहर्रम मना रही है सदी
महज़ ख़याल की सड़कों पे ताज़िया जाए
तमाम रिश्तों से बढ़कर वो एक है कांधा
कि जिस पे रखते ही सर सोग़ शर्तिया जाए
बयानबाज़ियों के सब्ज़ बाग़ रहने दो
करो उपाय कि मसला ये हालिया जाए
करो उपाय कि मसला ये हालिया जाए
शराब की ही लगानों से मुल्क जी पाया
निजाम ये है कि घर घर में साक़िया जाए
@ हबीब अनवर
{alis डॉ. आर रामकुमार, रामकुमार रामरिया, कुमार ज़ाहिद वग़ैरह}
0
शब्दार्थ :
तबील = लम्बी, दूरी की,
आलिया (अरबी)= आकाश, स्वर्ग,
मसर्रत = हर्ष, उल्लास, खुशी, आनंद,
मुहर्रम = शोक काल, इमाम की शहादत का मातम,
महज़ = केवल, मात्र, निरा,
ख़याल = कल्पना, तख़य्युल, illusion, दृष्टि भ्रम, निराधार कल्पना,
ताज़िया = इमाम के जनाज़े या क़ब्र की झांकी,
शर्तिया = पक्का, निश्चित रूप से,
मसला {मसअला (पु)} = समस्या, संकट,
हालिया = मौजूदा, वर्तमान,
लगान = राजस्व, कर,
निजाम = व्यवस्था, बन्दोबस्त, प्रबंध,
साक़िया = शराब परोसनेवाली,
शब्दार्थ :
तबील = लम्बी, दूरी की,
आलिया (अरबी)= आकाश, स्वर्ग,
मसर्रत = हर्ष, उल्लास, खुशी, आनंद,
मुहर्रम = शोक काल, इमाम की शहादत का मातम,
महज़ = केवल, मात्र, निरा,
ख़याल = कल्पना, तख़य्युल, illusion, दृष्टि भ्रम, निराधार कल्पना,
ताज़िया = इमाम के जनाज़े या क़ब्र की झांकी,
शर्तिया = पक्का, निश्चित रूप से,
मसला {मसअला (पु)} = समस्या, संकट,
हालिया = मौजूदा, वर्तमान,
लगान = राजस्व, कर,
निजाम = व्यवस्था, बन्दोबस्त, प्रबंध,
साक़िया = शराब परोसनेवाली,
Comments