Skip to main content

मोरारी बापू का अहिंसा आन्दोलन


मोरारी बापू राम कथा के सबसे अधिक सुने और चाहे जानेवाले कथा-गायक हैं। निम्बार्क पंथ से उनका संबंध है और काले टीके के साथ काली कंबली उनकी पहचान है। पर यह काला टीका और काली कंबली उनकी शुभ्रता को कम नहीं करती बल्कि अधिक उजागर कर देती है। उनके परिधान में जो शुभ्रता है, वह उन्हें धार्मिक उन्माद से परे एक सौहार्द्र पूर्ण भक्ति आंदोलन का साधक और प्रवर्तक बना देती है।
बापू राम के समन्वयवादी स्वरूप के गायक हैं। यही वह बीज है जिसे महात्मा गांधी ने धर्म की मिट्टी में बोया और उससे अहिंसा की फसल ली। बापू इसी परम्परा को सर्वत्र बिखेरते चलते हैं। यद्यपि उन्होंने रामकथा का गुरुमंत्र अपने दादा से प्राप्त किया किन्तु रामकथा गायन में रामभक्त हनुमान उनके मार्गदर्शक परम गुरु और संरक्षक हैं। हनुमान जयंती के अवसर पर प्रत्येक वर्ष वे अस्मिता पर्व का आयोजन करते हैं और साहित्य, संगीत, नृत्य, गायन, अभिनय आदि विविध कला क्षेत्रों के शीर्ष व्यक्तित्वों को आमंत्रित कर उनकी प्रतिभा का प्रदर्शन करते है और उनका सम्मान करते हैं। इस आयोजन में मोरारी बापू केवल उत्सवधर्मिता नहीं दिखाते बल्कि उनकी वैचारिकता और चिन्तन के दर्शन भी सहज ही हो जाते हैं। वे निस्संदेह केवल प्रवचनकत्र्ता का धर्म नहीं निभाते बल्कि स्वयं अपनी कथ्य या विचारधारा पर नया क्रांतिकारी कदम उठाकर दिखाते हैं।
इस बार भी उन्होंने ऐसा ही किया। चारों तरफ़ जब अपनी अपनी स्वार्थपूर्ति के लिए मार काट उठापटक और हिंसात्मक गतिविधियां, धार्मिक अपराधीकरण का उन्माद अपने चरम पर है वहीं मोरारी बापू अपने आराध्यों के हाथों से हिन्सा के सारे अस्त्र छीनकर उनमें लालित्य और प्रेम के उपकरण थमा रहे हैं। हनुमान जयंति के आयोजन की समाप्ति पर अपना प्रबोधन देते हुए मोरारी बापू ने एक उद्घोषणा की कि वे सर्वसमर्थ हनुमान को उनके जन्मदिन पर कुछ भेंट करना चाहते हैं। उनसे कुछ लेना भी चाहते हैं। भरत ने अपने भ्राता और आराध्य से उनकी चरण पादुकाएं ली थीं। मोरारी बापू ने हनुमान से उनका प्रिय शस्त्र मुदगर, उनकी गदा लेली। कुछ चैंकानेवाले अंदाज में। जहां तूम्बा होता है वहां मुदगर या गदा के प्रहारक गोलक था और जो मुख्य दण्ड होता है वह सितार थी। यह निश्चित रूप उनकी अहिंसा दृष्टि का रोमांचक पहलू था जिसे सभी उपस्थित समुदाय ने उमंग के साथ स्वीकार किया।
बापू ने कहा कि जो गदा हनुमान जी के दायें पक्ष में रखी हुई वह अत्यधिक भारी है और उसे हटाने में समय और श्रम लगेगा अतः अभी प्रतीकात्मक गदा को हटाया गया है किन्तु अगले दिन हनुमान जी सितार के साथ दिखेंगे गदा के साथ नहीं। यह मोरारी बापू के व्यक्तित्व का आंतरिक पक्ष था जिसमें उनके जीवन के तीन सूत्र सत्य, प्रेम और करुणा के की झलक आज दिखाई दी।
निश्चित रूप से बापू अपनी कथाओं और अपने आयोजनों में इस देश की धर्मप्राण किन्तु सहिष्णु स्नेहिल जनता को एक उदात्त और उदार दृष्टि दे रहे हैं। केवल पुरातन का पृष्ठपोषण ही नहीं कर रहे बल्कि जिस सहअस्तित्वपूर्ण सौहार्द्र के वातारण का सपना वे कर रहे, उसे साकार भी करते चल रहे हैं।
उन्हीं के माध्यम से पता चला कि पिछली कथाओं में उन्होंने अपने आराध्य राम के हाथों से तीर और धनुष तथा कंधे से धनुष उतार दिया था। प्रेम देवो भव का नारा देने वाला अहिंसा का गायक अपने इष्ट के पास अस्त्र और शस्त्र कैसे देख सकता है। भारत की संस्कृति और परम्परा ने तो महाभारत के सूत्रधार श्रीकृष्ण के हाथों से चक्र और अस्त्र शस्त्र पहले ही हटा दिये थे और प्रेम की धुन बजानेवाली बांसुरी वहां थमा दी थी।
बापू ने इस रोमांचक और क्रांतिकारी अवसर पर एक और सपने की घोषणा की कि  रणभूमि में अर्जुन की ध्वजा में बैठे हनुमान जी को उतारकर धरा पर लाना है। रामकथा के सतत श्रोता और संरक्षक का युद्ध की पताका में बैठने का क्या औचित्य? बापू की इस अहिंसा दृष्टि का भी अभिनंदन।

दि. 15.04.14, हनुमान जयंती, मंगलवार

Comments

Dr.R.Ramkumar said…
जहां एक ओर धर्म के नाम पर, मजहब के नाम पर हथियार बंद सांप्रदायिक सेना तैयार की जा रही है, आक्रामक दस्ते तैयार किये जा रहे हैं, देश की राजनीति और सेनाएं सक्रिय हैं, जातिवादी समाज संगठित हो रहे हैं वहां भारत के आराध्य राम के तीर तरकस और धनुष हटा देना, हनुमान के पास से गदा उठाकर सितार रख देना मोरारी बापू की सारे जीवन की कमाई है। एक युगांतर है। वास्तव राम कथा से जितना वे नहीं कह पाए उससे ज्यादा उन्होंने कर दिखाया।

Popular posts from this blog

तोता उड़ गया

और आखिर अपनी आदत के मुताबिक मेरे पड़ौसी का तोता उड़ गया। उसके उड़ जाने की उम्मीद बिल्कुल नहीं थी। वह दिन भर खुले हुए दरवाजों के भीतर एक चाौखट पर बैठा रहता था। दोनों तरफ खुले हुए दरवाजे के बाहर जाने की उसने कभी कोशिश नहीं की। एक बार हाथों से जरूर उड़ा था। पड़ौसी की लड़की के हाथों में उसके नाखून गड़ गए थे। वह घबराई तो घबराहट में तोते ने उड़ान भर ली। वह उड़ान अनभ्यस्त थी। थोडी दूर पर ही खत्म हो गई। तोता स्वेच्छा से पकड़ में आ गया। तोते या पक्षी की उड़ान या तो घबराने पर होती है या बहुत खुश होने पर। जानवरों के पास दौड़ पड़ने का हुनर होता है , पक्षियों के पास उड़ने का। पशुओं के पिल्ले या शावक खुशियों में कुलांचे भरते हैं। आनंद में जोर से चीखते हैं और भारी दुख पड़ने पर भी चीखते हैं। पक्षी भी कूकते हैं या उड़ते हैं। इस बार भी तोता किसी बात से घबराया होगा। पड़ौसी की पत्नी शासकीय प्रवास पर है। एक कारण यह भी हो सकता है। हो सकता है घर में सबसे ज्यादा वह उन्हें ही चाहता रहा हो। जैसा कि प्रायः होता है कि स्त्री ही घरेलू मामलों में चाहत और लगाव का प्रतीक होती है। दूसरा बड़ा जगजाहिर कारण यह है कि लाख पिजरों के सुख के ब

काग के भाग बड़े सजनी

पितृपक्ष में रसखान रोते हुए मिले। सजनी ने पूछा -‘क्यों रोते हो हे कवि!’ कवि ने कहा:‘ सजनी पितृ पक्ष लग गया है। एक बेसहारा चैनल ने पितृ पक्ष में कौवे की सराहना करते हुए एक पद की पंक्ति गलत सलत उठायी है कि कागा के भाग बड़े, कृश्न के हाथ से रोटी ले गया।’ सजनी ने हंसकर कहा-‘ यह तो तुम्हारी ही कविता का अंश है। जरा तोड़मरोड़कर प्रस्तुत किया है बस। तुम्हें खुश होना चाहिए । तुम तो रो रहे हो।’ कवि ने एक हिचकी लेकर कहा-‘ रोने की ही बात है ,हे सजनी! तोड़मोड़कर पेश करते तो उतनी बुरी बात नहीं है। कहते हैं यह कविता सूरदास ने लिखी है। एक कवि को अपनी कविता दूसरे के नाम से लगी देखकर रोना नहीं आएगा ? इन दिनों बाबरी-रामभूमि की संवेदनशीलता चल रही है। तो क्या जानबूझकर रसखान को खान मानकर वल्लभी सूरदास का नाम लगा दिया है। मनसे की तर्ज पर..?’ खिलखिलाकर हंस पड़ी सजनी-‘ भारतीय राजनीति की मार मध्यकाल तक चली गई कविराज ?’ फिर उसने अपने आंचल से कवि रसखान की आंखों से आंसू पोंछे और ढांढस बंधाने लगी। दृष्य में अंतरंगता को बढ़ते देख मैं एक शरीफ आदमी की तरह आगे बढ़ गया। मेरे साथ रसखान का कौवा भी कांव कांव करता चला आया।

सूप बोले तो बोले छलनी भी..

सूप बुहारे, तौले, झाड़े चलनी झर-झर बोले। साहूकारों में आये तो चोर बहुत मुंह खोले। एक कहावत है, 'लोक-उक्ति' है (लोकोक्ति) - 'सूप बोले तो बोले, चलनी बोले जिसमें सौ छेद।' ऊपर की पंक्तियां इसी लोकोक्ति का भावानुवाद है। ऊपर की कविता बहुत साफ है और चोर के दृष्टांत से उसे और स्पष्ट कर दिया गया है। कविता कहती है कि सूप बोलता है क्योंकि वह झाड़-बुहार करता है। करता है तो बोलता है। चलनी तो जबरदस्ती मुंह खोलती है। कुछ ग्रहण करती तो नहीं जो भी सुना-समझा उसे झर-झर झार दिया ... खाली मुंह चल रहा है..झर-झर, झरर-झरर. बेमतलब मुंह चलाने के कारण ही उसका नाम चलनी पड़ा होगा। कुछ उसे छलनी कहते है.. शायद उसके इस व्यर्थ पाखंड के कारण, छल के कारण। काम में ऊपरी तौर पर दोनों में समानता है। सूप (सं - शूर्प) का काम है अनाज रहने देना और कचरा बाहर निकाल फेंकना। कुछ भारी कंकड़ पत्थर हों तो निकास की तरफ उन्हें खिसका देना ताकि कुशल-ग्रहणी उसे अपनी अनुभवी हथेलियों से सकेलकर साफ़ कर दे। चलनी उर्फ छलनी का पाखंड यह है कि वह अपने छेद के आकारानुसार कंकड़ भी निकाल दे और अगर उस आकार का अनाज हो तो उसे भी नि