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तीन मुक्तक

जिन्हें मोती ही भाते हैं , हन्स वोही कहाते हैं।
जहां गहरा मिले पानी , वहीं हाथी नहाते हैं।
जो उथले कीचड़ों में कूदकर फैलाते हैं दहशत ,
वो इकदिन अपने ही दलदल में गहरे डूब जाते हैं।
08.44 प्रातः ,13.1.11

कहीं ताना , कहीं निन्दा ,कहीं अलगाव फैलाते।
अगर बढ़ता है आगे कोई तो ये बौखला जाते ।
जो देता साथ कोई सच्चे दिल से ,सच्चे इन्सां का ,
ये उसको भी बुरा कहते ,स्वयं को ज्ञानी बतलाते ।
10.45 प्रातः ,13.1.11

कोई अमरीका जाता है ,किसी को रूस भाता है।
किसी को तेल अरबी तो किसी को चीन भाता है।
कोई जापान, स्विटजरलैंड,या आशिक है इटली का,
किसे है देश प्यारा ? किसको अपना देश भाता है ?
08.47 सायं 13.01.11

Comments

सुन्दर मुक्तक.. लोग बाहर जाकर वहां के नियम-कानून के बढ़िया ढ़ंग से लागू होने के कारण वहीं के होकर रह जाते हैं..
जिन्हें मोती ही भाते हैं , हन्स वोही कहाते हैं।
जहां गहरा मिले पानी , वहीं हाथी नहाते हैं।
क्या बात?? क्या बात?? क्या बात?? सुन्दर भावनाएं. क्या बात है आज तो माहौल बदल गया है. अच्छा लगा ये बदलाव.
kumar zahid said…
जिन्हें मोती ही भाते हैं , हन्स वोही कहाते हैं।
जहां गहरा मिले पानी , वहीं हाथी नहाते हैं।
जो उथले कीचड़ों में कूदकर फैलाते हैं दहशत ,
वो इकदिन अपने ही दलदल में गहरे डूब जाते हैं।


बेहतर ढंग से पेश एक बिल्कुल नया अंदाज़
kshama said…
Nihayat sundar muktak! Maza aa gaya!

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