पूरे भारत में हिन्दू आस्था और विद्या की प्रतीक गजानन गणपति की मूर्तियों का विसर्जन किया जा चुका है। यह भाद्र मास था। अश्विन-मास के साथ ही पितृ मोक्ष पखवाड़ा प्रारंभ हुआ। पितृमोक्ष अमावस्या के देसरे दिन अष्विन शुक्ल की प्रतिपदा से शक्ति की प्रतीक देवी दुर्गा की प्रतिमाओं की प्राणप्रतिष्ठा और पूजन का होगा।
गणेश और दुर्गा की प्रतिमाओं का वृहदस्तर पर निर्माण किया जाता है। जो भी मृदाशिल्प में रुचि रखता है और इसमें पारंगत है वह व्यापारिक दृष्टि से मूर्तियों का निर्माण करता है और मांग के अनुसार उनका व्यापार करता है। रक्षाबंधन और दीपावली में उत्सब के अनुकूल राखियों और पटाखों का निर्माण अधिकांशतः मुस्लिम मतावलंबी करते हैं। मूर्तियों का निर्माण भी अनेक स्थानों में विभिन्न समुदायों के लोग करते हैं ,जिनमें मुस्लिम समुदाय के लोग भी हैं। इन दिनों मंदिर मस्जिद के तथाकथित विवादों और तनावों का चर्चा गर्म है। इसलिए ऐसे समाचार चित्र सहित अखबारों में आते रहते हैं।
मेरे शहर में पिछले बीस बाइस सालों से दो विविध कलाकार मूर्तियों का व्यवसाय कर रहें है। व्यावसायिक स्तर पर किये जाने के कारण और उसमें स्वरुचि का रंग होने से ये मूर्तियां विशिष्ट रंग-रूप में आकर्षण का केन्द्र होती हैं। मैं बहुत वर्षों से प्रभावित हो रहा हूं और स्वांतः सुखाय जो रस मिल रहा है उसे पर्याप्त मान रहा हूं। इस बार ऐसा लगा कि इसकी चर्चा अपने ब्लाग के माध्यम से की जाए। शायद शिल्प पे्रमियों को पसंद आए।
मेरे मन में ये सवाल थे: -
1. कैसे बनती हैं मूर्तियां ? 2. किन चीजों से बनती हैं ? 3. अपने प्रारंभिक निर्माण के दौरान कैसी दिखती हैं ? 4. कैसे धीरे धीरे विकसित होती हैं और कैसे रंग वस्त्र शस्त्र और श्रृंगार के बाद इनका रूप निखरता है ?
इन सवालों के जवाब ये मिले:-
आवश्यक सामान: 1. पैरा : धान की बालियां निकलने के बाद शेष सूखे पौधे , 2. घास , 3. भूसा: गेंहू के पौधे से बालियां निकालने के बाद उसका मिंजा हुआ अवशेष , 4. लकड़ी और पट्टे ,5. कीलें , 6. सुतली (पटसन) और नारियल-बूच की रस्सी , 7. बीड़ी की फट्टियां , 8. मिट्टी विशेष तौर पर बंजर के कछार से बुलवाई गई , 9. चाक मिट्टी , 10. रंग: सभी प्रकार के - फेब्रीकिल, आइल पेंट, वाटर कलर , फ्लोरोसेंट ,लेककलर इत्यादि, 11. कपड़े ,साड़ी, ब्लाउस ( मांग के अनुसार ) 12. पटसन और केले के रेशों के कलकतियां केश ,बाल , 13. टिन के पत्तरों , कार्क , सोलम्सेट ,केला और थर्मोकाल से बने अस्त्र-शस्त्र , मुकुट, श्रृंगार आदि , 14. स्वयं शिल्पकार अपने सहयोगियों श्रमिकों और पारिवारिक सदस्यांे सहित।
ये हैं कलाकार - 1. चक्रवर्ती परिवार :
चक्रवर्ती परिवार के सुभाष (55) और रेवा (45) प्रमुख रूप से अपने पुस्तैनी मिट्टी के काम को करते हुए इस शिल्प की तरफ बढ़े। पांच भाइयों के इस परिवार में ये दो मुख्य रूप से इस काम में जुड़े हुए हैं। 1960 से इनके पिता श्री हरिप्रसाद चक्रवर्ती भी मूर्ति का काम करते थे। पूरे परिवार के साथ इसे विस्तार देने का काम इन भाइयों ने किया।
चक्रवर्ती और प्रजापति आदि कुंभकार समुदाय के लोग हैं , जिनका मुख्य काम रसोई घर के लिए मिट्टी के भांड़े बनाना था। दीपावली के दीपक , पोला के घुड़ले, लक्ष्मी -महालक्ष्मी , होलिका , काली , सरस्वती आदि की मूर्तियां भी प्रारंभ में इसी समुदाय ने बनाई। बाद मे ंअन्य कलाकार भी इस तरफ़ आकर्षित हुए। सभी वर्ग के व्यापारी इनकी बनाई हुई गणेश की छोटी छोटी मूर्तियां दूकानों में बेचते हैं। अधिकांश घरों में छोटी मूर्तिया स्थापित करने का चलन हिन्दू परिवारों में है।
अन्य संप्रदाय के लोग भी गणपति रखा करते हैं। प्रायः सामूहिक तौर पर गणेश स्थापित किये जाते रहे हैं। स्वतंत्रता संग्राम के दिनों में एकता के लिए प्रारंभ इस आंदोलन को शुरुआती दौर में सामूहिक रूप से ही आयोजित किया गया। बाद में व्यक्तिगत आस्था और सुरक्षा के तौर पर घरो में स्थापित किया जाने लगा। हालांकि भारत में हिन्दू-मुस्लिम एक्य के प्रतीक गणेशोेत्सव की अनेक कथाएं जीवित हैं।
दुर्गा अपेक्षाकृत वृहदस्तर पर सामूहिक तौर पर स्थापित की जाती है। अतः मुहल्लों में सहयोगात्मक तरीके से इनकी पूजा होती है। सभी वर्गों के लोग इसमें शामिल होते हैं।
क्रमशः
Comments
AAj aur hamesha hi is tarah ki zaroorat padti rahegi.
Indranil ji,
Beshak yehi massage samaj mein jaye, isiliye is khas waqt ko maine chuna--
comments k liye dhanvad...
देर न किया कीजिए। आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहती है।
पर मैं जानता हूं और भी दिलचस्प ब्लाग हंै जहां आपको जाना होता है।
बहरहाल आपने मेरे लिए वक्त निकालकर अपनी अपनी टिप्पणी दी और मुझे उत्साह में डाला इसका हृदयशः धन्यवाद।