सारे शहर में उसने तबाही सी बाल दी
अपना पियाला भरके सुराही उछाल दी
हमने उड़ाए इंतजार के हवा में पल
वो देर से आए ओ कहा जां निकाल दी
मां को पता था भूख में बेहाल हैं बच्चे
दिल की दबाई आग में ममता उबाल दी
जिस आंख में उम्मीद के चेहरे जवां हुए
बाज़ार की मंदी ने वो आंखें निकाल दी
नंगी हुई हैं चाहतें ,राहत हैं दोगली
‘ज़ाहिद’ किसी ने अंधों को जलती मशाल दी
021009/शुक्रवार
अपना पियाला भरके सुराही उछाल दी
हमने उड़ाए इंतजार के हवा में पल
वो देर से आए ओ कहा जां निकाल दी
मां को पता था भूख में बेहाल हैं बच्चे
दिल की दबाई आग में ममता उबाल दी
जिस आंख में उम्मीद के चेहरे जवां हुए
बाज़ार की मंदी ने वो आंखें निकाल दी
नंगी हुई हैं चाहतें ,राहत हैं दोगली
‘ज़ाहिद’ किसी ने अंधों को जलती मशाल दी
021009/शुक्रवार
Comments