और बिन पानी सब सून आकाश में सूखे की संभावनाएं ,बेपानी बादल और आग उगलता सूरज ,आखिर किस असंतोष को प्रदर्शित कर रहे हैं। बिजली बेमियादी और बेमुद्दत हो गई है। दिन में केवल तीन चार घंटे और वह भी किश्तों में । कभी एक घंटे, कभी पंद्रह मिनट ,कभी दो मिनट भी नहीं। इन्वर्टर पूरी खुराक़ के अभाव में चीखने लगे हैं। उनकी प्लेटों पर ‘खट’ जमने लगी है। ‘खट’ को थोड़ी देर के लिए खटास ही मान लें। बिजली का काम करनेवाला कम पढ़ालिखा लड़का उसका केमिकल नाम नहीं जानता । हम जानते हैं तो क्या कर लेंगे। पानी बदलकर एसिड डालकर तो उसे ही धोना है। हम उसी पर निर्भर हैं। नगरपालिका ने नोटिस पर दस्तखत ले लिए हैं कि अब कटौती को बढ़ाकर एक दिन के आड़ में पानी देंगे। पानी का भंडारण भी सूख रहा है। पानी ही नहीं हैं। आसमान सूना ,जमीन सूखी ,बिजली गायब ..... हम जो अब तक आदी हो गए थे बिजली के बहुआयामी उपयोगों के और प्राकृतिक आबोहवा से दूर हो गए थे , प्रकृति की तमाम सहजावस्था के नज़दीक आ गए हैं। टीवी-कम्प्यूटर ने हमें बांध लिया था और अपनों के साथ दो घड़ी बैठ पाने के लिए हमारे पास समय नही था । सूखे ने जैसे उन कंुभलाए हुए संबंधों और भावन...