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Showing posts from August, 2025

जंगल जीवेषणा

  बाघ-द्वीप की जंगल जीवेषणा                           सिंहावलोकन             जंगल जीवेषणा का अर्थ है "जंगल में जीने की कला, जीवन यापन का उद्यम,  जंगल के वातावरण के अनुकूल जीवन शैली,  जंगल के हिंसक और आक्रामक पशुओं से निपटने का कौशल, जंगल की दुर्गमताओं और दुरूहताओं का ज्ञान आदि। भोजन, पानी, आश्रय, आवागमन, समूह निर्माण और सहजीविता की रीति नीति।       यह बातें उन पर लागू होती है जो जंगल को ही अपना घर बनाकर उसमें रहते हैं लेकिन जंगल के जीवन के अध्येताओं और पर्यटकों के लिए इनकी जीवन शैली और मानसिकता को पढ़ना और उसके अनुकूल अपनी अध्ययन सामग्री जुटाना या आनंद बटोरना  जंगल जीवेषणा के अतिरिक्त बिंदु हैं।         पर्यटकों के लिए सामान्य तौर पर बनी हुई राजकीय वन विभागीय व्यवस्था के अंतर्गत जंगल के सौंदर्य, वन्य प्राणियों को देखना ही ध्येय है। वन्य प्राणियों के अतिरिक्त वनवासी भी पर्यटन का लक्ष्य होना चाहिए था लेकिन आधुनिक काल में वनवासियों ...

सब कैसे हैं?

 नवगीत : चलकर पूछूं सब कैसे हैं? संकोचों का  क्या उत्पादन, बहुत दिनों से सोच रहा हूं, चलकर पूंछू,  सब कैसे हैं?  आदर्शों की भूलनबेली,  उपवन में मन को छू बैठी, डहरी भूल गए सब सपने। हड़बड़ सुबहें झटपट भागीं,  तपती दो-पहरों से आगे, रात गयी ना लौटे अपने।  अनजाना पथ, लोग अपरिचित,  चित्र विचित्र भविष्य तुम्हारे, तुम्हीं बताओ,  ढब कैसे हैं?  सूरज को देखो तो लगता,  पड़ा घड़ा ख़ाली सिरहाने, जिसमें मुझको पानी भरना।  किस-किस के हिस्से का जीना,  जीवन है बेनामी खाता,  सांसों को बेगारी करना।  'हां' कहकर 'दर-असल' हुए जो,  'जब भी वक़्त मिलेगा तब' के, झूठे वादे,  अब कैसे हैं?  कैसी है पथरीली छाती,  जिस पर दुःख के शीशे टूटे, छल से छलनी दिल कैसा है? सब संतापों के छुपने को, ख़ामोशी की खुदी बावली,  उसका निचला तल कैसा है? भावुकता के क्षीण क्षणों में,  पथ के हर पत्थर को भी जो,  रब कहते थे,  लब कैसे हैं?  @कुमार, ०३.०७.२०२१, मध्य-रात्रि ००.१९  शब्दार्थ : उत्पादन : प्रोडक्ट, परिणाम, उपादान, उपलब...