Skip to main content

Posts

Showing posts from August, 2024

मीर जाफ़र के ख़ुदा-वालिद : रोबर्ट क्लाइव

बेताला निजी रोज़नामचा मीर जाफ़र के ख़ुदा-वालिद : रोबर्ट क्लाइव 30 अगस्त 24, शुक्रवार, बालाघाट।            टीवी के लगभग सारे चैनल्स पक्षपाती और निहितार्थी हो गए और उनमें  से जनपक्ष का रस निकल गया तो हमने epic (महाकाव्य) चैनल की बंधोर बांध ली (subscribed)। उसमें वस्तुगत जानकारियां बहुत सुबोध और तार्किक तरीक़े से दी जाती है।            कल हमने एपिक के अंतर्गत 'राजा रसोई' में पूर्वांचल के राजवंशों की रसोई और खानपान के बारे में जाना। कुछ भी हमारे खाने योग्य नहीं था, किंतु इसमें अच्छी बात यह थी कि हमारे खाने की उसमें बुराई नहीं थी। इसे इतिहास, पुरातत्व और भोज-विज्ञानी 'कोई'(?) प्रोफेसर व्याख्यायित कर रहे थे।              फिर इसमें  20-30 मंजिला एक कार्गो जलयान को बीच से काट-जोड़कर  30 मीटर अधिक बढ़ाने का जीवंत (live) प्रस्तुतिकरण था। किन-किन निर्माण समस्याओं का, किस बुद्धिमत्ता और सावधानी से निराकरण किया गया, समाधान निकाले गए इसका सुरुचिपूर्ण वर्णन था। न किसी समस्या में राजनैतिक महिमामंडन थ...

हॉकी के जादूगर : ध्यानचंद

बेताला : निजी रोज़नामचा 29 अगस्त 2024, गुरुवार * आज हॉकी के जादूगर मेजर  ध्यान सिंह का जन्म दिन है। उन्होंने हॉकी में लगातार तीन स्वर्ण पदक भारत के मुकुट में जड़ कर जादूगर की उपाधि हासिल की थी।   आज भले ही ओलंपिक में भारत के लिए स्वर्ण पदक जीतना किसी सपने की तरह  हो, लेकिन 1928 ओलंपिक में अपना डेब्यू करते हुए भारतीय हॉकी टीम ने अपना पहला स्वर्ण पदक हासिल किया था। उस ओलंपिक में भारत ने 5 मैच खेले थे और कुल 29 गोल दागे थे और एक भी गोल उनके ख़िलाफ़ नहीं हुआ था। इस दौरान ध्यान चंद की हॉकी स्टिक से 14 गोल आए थे। इसके बाद तो ध्यान चंद भारतीय हॉकी टीम के प्रमुख अंग ही बन गए थे और 1932 और 1936 ओलंपिक में भी उन्होंने अपने दम पर भारत को दो और ओलंपिक स्वर्ण पदक दिलाए थे और अपनी कप्तानी में ही भारत को गोल्ड मेडल की हैट्रिक बनवाई। हॉकी दुनिया के लोकप्रिय खेलों में से एक हो गया हो, जो एक ओलंपिक खेल तो है ही, साथ ही साथ वर्ल्ड कप, चैंपियंस ट्रॉफ़ी और FIH प्रो लीग जैसी बड़ी प्रतियोगिताओं में भी ये शामिल है। हॉकी का इतिहास काफ़ी पुराना है जो 16वीं सदी से चला आ रहा है। हॉकी (तब अंग्रेज़...

गीतल : बरसात और पहाड़

  गीतल : बरसात और पहाड़ बरसात में जंगल का अंदाज़ निराला है जैसे ये नवोढ़ा है नवयौवना बाला है नदियां भी उमड़ती हैं बादल भी मचलते हैं दोनों के इरादों ने दिल सबका उछाला है फिसलें हैं पहाड़ों से उद्दण्ड बण्ड झरने झीलों ने बिछा आंचल गिरतों को संभाला है सावन की नई धुन में नाचे हैं बदलियां भी पायल की झमाझम का संगीत ही आला है   लफ़्ज़ों में नहीं लिखते अहसास कथा अपनी इनके न कहीं मकतब निकला न रिसाला है                              @कुमार,                    रूपझर घाटी, चौवन मोड़, लौगुर । शब्दार्थ :  नवोढ़ा : नई दुल्हन, मकतब : ग्रंथालय, रिसाला : पत्रिका, मैगज़ीन।