पालक रानी
भोज्य भाजी के रूप में स्पिनैच केवल घास फूस नहीं है, यह बहुमूल्य सब्ज़ी है, जो हमारे जीवन की बगिया को सब्ज़-बाग़ बनाती है। यह निहित स्वार्थियों की भांति बेहतरी के केवल सब्ज़ बाग़ नहीं दिखाती, बल्कि हमारे स्नायुमण्डल में भरपूर शक्ति और ऊर्जा का संचार करती है, हमारे शरीर को अपेक्षित विटामिन्स और मिनरल्स की आपूर्ति करती है। कुदरत ने स्पिनैच के रूप में हमें अनोखे तरीक़े से एक नायाब तोहफ़ा दिया है जो हमारे आहार को संतुलन प्रदान करता है।
हां जी, हां जी, मैं आपका नाक भौं सिकोड़ना देख रहा हूं। आपका मन चाहता है कि आप विरोध में आवाज़ उठाएं और कहें- "यह क्या स्पिनैच-स्पिनैच कह रहे हो, हिंदी में बोलो, हिंदुस्तान में रह रहे हो।"
मैं जानता हूं भाई, पर क्या करूँ। आप में से बहुमत जिससे प्यार करता है न, वह है ही विदेशी। भले ही आपने हिंदी में उसका कोई प्यारा सा नाम रख लिया हो, जैसे पालक, पर हिंदी नाम रख देने से यह कोई भारतीय सब्ज़ी तो हो नहीं जाएगी। इतना आसान है क्या भारतीय होना। आख़िर परम्परा भी तो कोई चीज़ है कि नहीं। हम लाख जी जान से किसी से प्यार करने लग जाएं, अगर वह विजातीय है, तो क्या उसे अपनी जातीय परम्परा में आसानी से शामिल कर लेंगे, उसका चौके में घुसना सरलता से स्वीकार कर लेंगे? हमारी मान मर्यादा है कि नहीं है। लेकिन वो 'ग़ालिब' कह गए हैं न "इश्क़ पर ज़ोर नहीं है ये वो आतिश 'ग़ालिब', कि लगाए न लगे और बुझाए न बने"। विजातीय ग़ालिब ने कितनी सच बात कह दी। यही हुआ, जिसे हम पालक कहकर पूरी रसोई, पूरे रसोईघर की रानी बना बैठे, जो हमारे चौके में बेधड़क शान से घुस गई, उसकी हमने जात नहीं पूछी। केवल उसकी अच्छाइयां देखी।
हमने स्पिनैच में देखा कि इसमें तो भरपूर विटामिन्स हैं- विटामिन A, पांच प्रकार के विटामिन B, विटामिन C, विटामिन E, विटामिन K आदि, मिनरल्स में सर्वाधिक पोटैशियम, कैल्शियम, मैगनेसियम, सोडियम, फॉस्फोरस, आयरन, मैंगनीज़ और जिंक। स्वास्थ्य की आदर्श बहुमूल्य खदान इस कोमल हरी स्पिनैच में है। जाने कितने लोग जिंक और मिनरल की मंहगी कैप्सूल ख़रीदने के लिए पगलाए हुए हैं। स्पिनैच और नारियल पानी में वह मिल जाते हैं मान्यवर। और वह ग्रामीणों, ग़रीबों की मिठाई है न, जिसे हम गुड़ कहकर उपेक्षा से देखते हैं, वह भी अपनी हथेली में रखे बैठा है- रक्ताल्पता, आंख की समस्या, कमज़ोरी, पेट संबंधी समस्याओं की रामबाण औषधियां। जी, इस 'गुड़' में भी स्पिनैच और नारियल पानी की तरह आवश्यक विटामिन्स और मिनरल्स समाहित हैं। सेहत के लिये गुड़ खाइए, स्पिनैच के पकौड़े खाइए, ख़ून साफ़ रखिये, क़ब्ज़, खांसी भगाइये।
आप सही में बहुत गुणग्राही हैं तभी तो स्पिनैच जैसी विलायती बहू को पालक कहकर पलकों में बिठाए हुए हैं। नाम बहुत सोच समझ कर दिया है आपने- पालक। 'पालक'- पालक अर्थात पालनहार, पालन पोषण करनेवाला। पालक उस अर्थ में निःसंदेह हमारा पालन पोषण करती है, पोषक तत्व देती है। यही नहीं स्वाद भी असीम। मैं तो बचपन से ही इसके प्यार में पड़ा हुआ हूँ। प्यार है कि कम नही होता। बादल घिरते हैं तो इसकी याद मचलने लगती है। पानी बरसता है तो पालक पकौड़े (यदि पालक उपलब्ध हुई तो) नहीं तो गिलकी के पकौड़े की गंध पूरे घर को महकाने लगती है।(गिलकी भी इतनी ही गुणी है।) बहरहाल, इस विलायती स्पिनैच ने ऐसा जादू कर रखा है कि बाप तो बाप, बेटे भी इसके इश्क़ में गिरफ़्तार हैं।
राज़ की बात यह है दोस्तों कि इस विदेशी मेम स्पिनैच ने पर्सिया (ईरान) की ओर से, सातवीं शताब्दी के आसपास भारत और चीन में घुसपैठ की। भारत ने इसे प्यार से पुचकारा और कहा - पालक। चीन में इसे पर्सियन-वेज ही कहा जाता रहा। फिर इसने यूरोप में हमला किया और देखते ही देखते यह हज़ारों रसोईघरों की महारानी बन गयी। होते होते इसकी लोकप्रियता अमेरिका पहुंची। वहां भी यह सबके दिल में जा समाई।
इसकी लोकप्रियता ने 1929 में 'पोपेयी' नामक एक सुपर हीरो को जन्म दिया, जो एक समुद्री मांझी था और जिसकी ताक़त थी 'पिसी हुई पालक।' अपनी ताक़त के बल पर और सुपरहीरो पोपेयी के कारण, यह पूरी दुनिया में भोजन की सर्पोपरि-सम्राज्ञी(सुपर हेरोइन) बन गयी। होती भी क्यों नहीं, इसका परिवार 'अमरान्तसिआ' कहलाता है और इसका कुल है स्पिनसिया। इसी से इसे स्पिनैच नाम मिला। परसियन(ईरानी) इसे 'अस्पानक' कहते थे, अरब इसे 'इस्बानख' बुलाते थे। अरब से यूरोप गयी तो लैटिन में इनका नाम हो गया 'स्पिनेजियम'। 14 वीं शताब्दी में इसने इंग्लैंड में धावा बोला और 'एस्पिनैच' या 'स्पिनैच' नाम से शासन करने लगी। पर भारत ने अपनी गुणग्राहिता के कारण इसे पालक कहा और इसी नाम से यह सबकी ज़ुबान से लगी हुई है।
हालांकि किसी को पता नहीं कि कब से इसका जन्म दिन मनाया जाता है, और किसने पहल की, फिर भी पिछले अनेक वर्षों से दुनिया भर में आज का दिन 16 जुलाई स्पिनैच डे और भारत में पालक जयंती मनाने की परंपरा चल पड़ी है।
वैसे होने को तो आज स्नेक-डे भी है। भारत को विश्व में सांप, संपेरों और मदारियों का देश कहा जाता है। देखा होगा उन्होंने कुछ। इस बात से भारत का ख़ून नहीं खौलना चाहिए कि हमारे राष्ट्र का अपमान हो गया। दूसरों के कुछ कहने से कुछ नहीं होता, तुम्हारे लाठी लेकर दौड़ने से होता है। यह बुद्ध और कबीर का भी देश है। बुध्द ने कहा कि जो नहीं चाहिए, मत लो। कबीर ने कहा अपमान करनेवालों को आंगन में छत डालकर बसा लो। कहते हैं तो मानलो कि भारत सांपों का देश है। आस्तीनों का भी तो देश है। कमीज़ झटकारकर पहनें और पालक तोड़ने सम्हलकर बाग़-बाड़ी में जाएं। आपका दिन शुभ हो, रात मंगलमय हो। शेषनाग के सम्मान में सर्प जयंती की बधाइयां स्वीकार करें।
@पालकप्रेमी,१६.०७.२४
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