बिना सींखचोंवाली धूप मुकुल के बहुत बार बुलाने पर एक बार मैं शहपुरा चला आया। नहीं निकलने पर आंगन तक निकलने में आलस आता है, मगर एक बार घर के बाहर निकल आए तो फिर ऐसा लगता है चलो हिमालय छू आएं। हालांकि जबलपुर से कुण्डम और कुण्डम से शहपुरा के रास्ते भर मुझे लगभग हिमालय पर चढ़ने जैसा ही आभास होता रहा। छोटी बड़ी अनेक पहाड़ियों से घिरा शहपुरा मृदुल का वर्तमान निवास है। मुकुल मेरा बेटा है और बैंकों के संविलियन के कारण शहपुरा ब्रांच में स्थानांतरित कर दिया गया है। मुकुुुल को जंगल, पहाड़, समुद्र, द्वीपसमूह आदि घूमने में रोमांच होता है, नई ऊर्जा और आत्मविश्वास मिलता है। शहपुरा आकर उसे पहाड़ों के बहुत निकट आने का अनुभव हुआ और उसके अन्दर छुपे रहस्यों का पता चला। मेरी रुचि भी पर्वतों और जंगलों में है, इसलिए वह बार-बार मुझे बुलाता रहा। अन्ततः मैं शहपुरा आ गया। जबलपुर से शहपुरा लगभग सौ किलोमीटर है। जबलपुर से निकलने के बाद भी पहाड़ियों से छुटकारा नहीं मिलता। पूरा जबलपुर महानगर पहाड़ों और नर्मदा नदी के घाटों से घिरा हुआ है। कौन सी पहाड़ी कहां से शुरू हुई और कहां खत्म हुई पता नहीं चलता। पहाड़ियों की एक ...