नवगीत : बहुरेंगे दिन मत उड़, मत उड़ ठूंठ की चिड़िया बहुरेंगे दिन। मत उड़, मत उड़.... ताप तापकर तपे हुए दिन निखर जाएंगे। अंधड़ वाली धूल ओढ़कर सँवर जाएंगे। आती ही हैँ भोरें स्वर्णिम रातें गिन-गिन। मत उड़, मत उड़.... हरे हो गए जलते जंगल छाँह बनेंगे। धुआँ धुआँ आहोँ के बादल नीर सनेंगे। मन मयूर नाचेंगे खुलकर ताक धिनक धिन। मत उड़, मत उड़.... फूल खिलेंगे सपन सजेंगे पिक बोलेंगी। दबी दबाई गूढ़ गुत्थियां कल खोलेंगी। क्यों फीके हों भावी उत्सव हम बिन, तुम बिन। मत उड़, मत उड़.... @ कुमार, २१.०४.२३,