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संस्कृत छंद अनुष्टुप का हिंदी-उर्दू में प्रयोग

1. संस्कृत छंद अनुष्टुप का हिंदी-उर्दू में प्रयोग

अनुष्टुप छन्द संस्कृत काव्य में सर्वाधिक प्रयुक्त छन्द है। वेदों सहित रामायण, महाभारत तथा गीता के अधिकांश श्लोक अनुष्टुप छन्द में निबद्ध हैं।संस्कृत में अनुष्टुप वृत्त की लोकप्रियता और सरलता की तुल्य दृष्टि से हिन्दी में दोहा को समतुल्य कहा जा सकता है। आदिकवि बाल्मिकी द्वारा उच्चरित प्रथम श्लोक अनुष्टुप छन्द में ही है। 
इसी प्रकार उज्जयिनी के राजा भर्तृहरि (विक्रमादित्य के अग्रज) के 'शतक-त्रयं' में कुल 37 अनुष्टुप वृत्त या छंद हैं। 'शतक-त्रयम्' के पहले शतक "नीतिशतक" का पहला मंगलाचरण श्लोक ही अनुष्टुप छंद/वृत्त में है। देखें-


दिक्कलाद्य नवच्छिन्नानंतचिन्मात्रमूर्तये।
स्वानुभूत्येक साराय नमः शान्ताय तेजसे।

     ।।नी. श. भ. मंगलाचरण: प्रथम श्लोक।।

'शतक-त्रयम्' के भाष्यकार डॉ. ददन उपाध्याय ने 'नीति शतक' के मंगलाचरण की टीका करते हुए छंद या वृत्त की चर्चा भी की है और इसमें निबद्ध 'अनुष्टुप छंद' का लक्षणवृत्त भी प्रस्तुत किया है।

अस्तु, अनुष्टुप वृत्त का गण-सूत्र या लक्षण-श्लोक इस प्रकार है-

श्लोके षष्ठं गुरू ज्ञेयं सर्वत्र लघु पंचमम्।
द्विचतुष्पादयोर्ह्रस्वं सप्तमं दीर्घमन्ययोः॥

                              (छंद शास्त्र लक्षण श्लोक)

उपर्युक्त छंद के अनुसार और छंद-शास्त्रियों के मतानुसार अनुष्टुप् छन्द 32 वर्णों का एक वर्णिक छंद है, जिसमें आठ-आठ वर्ण के चार पद या चरण होते हैं। इस छन्द के प्रत्येक पद/चरण का पंचमाक्षर लघु वर्ण और छठा वर्ण गुरू होता है। प्रथम और तृतीय पद/चरण का सातवाँ वर्ण गुरू होता है तथा दूसरे और चौथे पद/चरण का सप्तमाक्षर लघु होता है। प्रत्येक आठवें वर्ण के बाद यति होती है।

अब यहां उद्धरित अनुष्टुप छंदों का लक्षण वृत्त के परिप्रेक्ष्य में विश्लेषण निम्नानुसार है...

श्लोके षष्ठं गुरू ज्ञेयं सर्वत्र लघु पंचमम्।
द्विचतुष्पादयोर्ह्रस्वं सप्तमं दीर्घमन्ययोः॥

                              (छंद शास्त्र लक्षण श्लोक)
222 212 22 . 221 112 12
112 212 22 . 212 212 12

दिक्कलाद्य नवच्छिन्नानंतचिन्मात्रमूर्तये।
स्वानुभूत्येक साराय नमः शान्ताय तेजसे।।

।।नी. श. भ. मंगलाचरण: प्रथम श्लोक।।
212 112 22. 212 212 12
212 21 221. 122 212 12

वरं पर्वतदुर्गेषु भ्रान्तं वनचरै सह।
न मूर्खजनसम्पर्कः सुरेन्द्रभवनेष्वपि।।
नी. श. भ.14।।
122 112 21. 221 112 11
121 112 21. 121 112 11

परिवर्तिनि संसारे   मृतः को वा न जायते।।
स जातो येन जातेन  याति वंशः समुन्नतिम्।।
32।।
112 112 21. 122 212 12
122 212 21. 212 212 12

आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महा-रिपुः। नास्त्युद्यमसमो बन्धुः  कृत्वा यं नावसीदति।।87।।
222 112 22. 122 212 12
221 112 22. 222 212 11

मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः। यत्क्रौंचमिथुनादेकं वधीः काममोहितम्॥
                         ( रामायणं, बालकाण्डं : 2.15)
212 112 22. 112 212 12
221 112 22. 122 121 11

कर्मण्येवाधिकारस्ते  मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भू:  मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि।।

                              (श्रीमद्भगवद्गीता:2.47)
222 212 22. 212 112 11
221 112 22. 222 212 11

क्रोधाद्भवति संमोहः  संमोहात्स्मृतिविभ्रमः।
स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो  बुद्धिनाशात्प्रणश्यति।
                                                                 
                              (श्रीमद्भगवद्गीता:2.63)
221 112 22. 222 112 11
112 221 22. 212 212 11

हिंदी में अनुष्टुप छंद का प्रयोग इतना प्रचलित नहीं है। हिंदुस्तानी संगीताचार्य प्रो. मौलाबख़्श घीसी खान द्वारा विरचित एक सौ उनतीस वर्ष पुरानी एक पुस्तक छन्दोमंजरी प्राप्त हुई है,जिनमें संस्कृत के अट्ठावन छ्न्दों का संगीत नियोजन, स्वरलिपि, राग एवं ताल की प्रस्तुति की गई है। संस्कृत, हिंदी, गुजराती और मराठी के छन्दगीतों से संयुक्त इस ग्रंथ में भी अनुष्टुप सहित अनेक छंद छोड़ दिये गए हैं।

यहां हिंदी/भाषा में कुछ रचनाएं प्रस्तुत हैं। 

1.
षष्ट सदा गुरू रूप, हृस्व पंचम सर्वथा,
सप्तम लघु दो चार, दीर्घ एक व तीन हों।।

                                     (लक्षण अनुवाद)
{8 वर्ण, चार चरण, पंचम वर्ण लघु, षष्ट वर्ण गुरू, सप्तम वर्ण = 1-3 में गुरू, 2-4 में लघु}
211 212 21. 212 112 12
211 112 21. 212 112 12

2.
संयम दृढ़ता धैर्य, कष्टों में सप्रयत्न हो।
सुगम मुक्ति का मार्ग, युक्ति युक्त विवेक से ।।

                        (संस्कृत तुकविहीन विधान, स्वतंत्र)

3.
काजल-कोठरी कूट राजनीति कुनीति है।
न्याय महज उद्घोष होती यही प्रतीति है।।

                         ( मध्यकालीन तुक विधान, स्वतंत्र)

4.
करती है गिरफ़्तार  बशर को नई हवा।
अहमक नहीं है वो  कि जो फ़ासिल्स* को छुए।

(संस्कृत छंद/वृत्त : अनुष्टुप, भाषा:आधुनिक हिंदी, शिल्प: शें'र, रचना: स्वतंत्र, स्वकीय)
112  212 21. 111 212 12
111 112 22.  122 212 12
                               {*फ़ासिल्स=जीवाश्म}
5.
उत्कंठा तीव्र हो तो है  प्रत्येक वस्तु पास ही।
जरा मरण या लाभ -क्षय की भीतियां वृथा।

222 212 22. 221 212 12
121 112 22.112 212 12

®डॉ. आर. रामकुमार,

नोट: यथा संभव त्रुटियां संशोधित कर ली गईं हैं। तथापि कहीं रह गयी हों तो विद्वतजन सुधार प्रेषित करें!!

Comments

अत्यंत महत्वपूर्ण जानकारी डॉ साहब । इस छंद के बारे में मुझे बिल्कुल भी जानकारी नही थी ।मेरे लिए ये विशेष है ।

धन्यवाद । ऐसी प्रस्तुतियां भेजते रहें आपसे विनती है ।
Dr.R.Ramkumar said…
धन्यवाद विरुरकर जी!

मुझे यह जानकर बहुत खुशी है कि छंद बद्ध रचनाएं लिखनेवाले मित्रों को भी इस छंद की जानकारी इससे पहले नहीं थी। हिंदी जगत में इस पर ध्यान नहीं दिया गया क्योंकि यह वर्णिक छंद है। वर्णिक छंद कठिन संयम, शब्द सामर्थ्य, अनुशासन उक्ति कौशल चाहते हैं। इसके स्थान पर मात्रिक छंद दोहा हिंदी में लोकप्रिय है। हालांकि प्रवाह की दृष्टि से उसको निभाना भी बहुत एकाग्रता और परिश्रम की मांग करता है।

हिंदी वर्णमाला क्रम में अगला छंद और भी चौंकायेगा। परीक्षा करियेगा। आप मान जाएंगे कि इंतज़ार में सचमुच मज़ा होता है।
Dr.R.Ramkumar said…
परीक्षा को प्रतीक्षा पढ़ें।
अवश्य

आपके हर आलेख की प्रतीक्षा में
आपका शुभचिंतक

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