एक हिन्दी ग़ज़ल (२२१ १२२२ ×२)
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जीवन के कठिन रस्ते हमने यूं संभाले हैं।
कुछ देर ठहर कांटे पैरों के निकाले हैं।
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जीवन के कठिन रस्ते हमने यूं संभाले हैं।
कुछ देर ठहर कांटे पैरों के निकाले हैं।
कुछ मान नये लेकर, देखा है गुणा करके,
भोगे हुए सुख दुख के, परिणाम निराले हैं।
पलकों में दबा, की हैं कुछ नर्म, कड़ी तल्खी,
कुछ सूख गए लम्हे, दिल में ही उबाले हैं।
किस ओर चढ़ाई है, फिसलन है कि खाई है,
हर मोड़ पे हिम्मत ने, ये प्रश्न उछाले हैं।
कुछ कह रहे गहरे हैं, कुछ कह रहे उथले हैं,
अनुभव के सभी सागर, ख़ुद डूब खंगाले हैं।
@कुमार, ०८.०९.२१
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