ग़ज़लिका
दि. 05.07. 2021, विषम संख्यांक दिवस, सोमवार, (17 पद),
(मात्रात्मक यति नियति 16, 10)
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अंतर्जाली-युग मन का कुछ, हाल नहीं पाता।।
वह गुल्लक में सुख का सिक्का, डाल नहीं पाता।।
अपनी-अपनी थीं प्रवृत्तियां, हुईं काल-कवलित,
किसी काल को मैं 'कालों का काल' नहीं पाता।।
सीधे मुंह बातें करने का, समय नहीं हैं मित्र!
वह पिछड़े, जो ख़ुद को इसमें, ढाल नहीं पाता।।
बच्चे उठकर खड़े हो गये, तनकर बड़े हुए,
अब उनमें मैं पहले जैसी, चाल नहीं पाता।।
सिर सहला दूं, पीठ ठोंक दूं, शाबाशी दे दूं,
जिसे स्नेह से थपक सकूं वह गाल नहीं पाता।
अपने क़द का पा चिढ़ जाते, कवि, नेता, विद्वान,
जो ख़ुश हो, ऐसा माई का लाल नहीं पाता।।
नाकों चने चबाकर पाई, है रूखी-सूखी,
पल भर में गल जाये ऐसी, दाल नहीं पाता।।
लूट-पाट करनेवालों के, घर में भरे पड़े,
श्रमिक ज़िन्दगी-भर सोने का, थाल नहीं पाता।।
साल-गिरह चुभती कांटे सी, दिल में सालों से,
किसी साल को मन-माफ़िक मैं, साल नहीं पाता।।
राजभवन में राजनीति कर, पाऊँ 'पदम-सिरी',
ऐसे ऊंचे धांसूं भ्रम मैं, पाल नहीं पाता।।
क़लम और अभिव्यक्ति बनी हैं, जिस दिन से सहचर,
इनकी मांगें किसी हाल में, टाल नहीं पाता।।
सर्दी, गर्मी, बरखा झेलूं, क्यों आखि़र चुपचुप,
इतनी भी मोटी मैं अपनी खाल नहीं पाता।।
घालमेल की दुनिया का क्यों, केवल मैं दुश्मन,
क्योंकि सोने में तांबा मैं, डाल नहीं पाता।।
माली हालत नहीं देखता, मरता खपता है,
सैनिक सरहद पर शहीद हो, माल नहीं पाता।।
मेरे ध्वज के नीचे सारा, विश्व सिमट आये,
सिकन्दरी ये सोचें मेरा, भाल नहीं पाता।।
कोलाहल को राग कहूं क्यों, क्यों सरगम समझूं,
मैं संकट के क़दमताल में, ताल नहीं पाता।।
घड़ियालों से नदी कनारे, है ख़तरा भारी,
मछियारों में भी दमखम का, जाल नहीं पाता।
- कुमार,
शब्दार्थ-पोटली :
अंतर्जाली-युग = अंत:(inter) +जाल ( net), इंटरनेट युग,
गुल्लक = बच्चों का मिट्टी/ टीन का बचत बैंक, पिगी बैंक,
अपनी-अपनी प्रवृत्तियां = अपना अपना स्वभाव, विशेषताएं,
काल-कवलित = समय के साथ नष्ट, समय के साथ विलीन,
'कालों का काल' = समय को नियंत्रित करने वाली मृत्यु,
पद्म-श्री = कला आदि क्षेत्र की एक विशिष्ट उपाधि,
माली हालत = आर्थिक परिस्थिति,
ध्वज = सत्ता या स्वायत्तता का निशान, वर्चस्व का चिन्ह,
सिकन्दरी ये सोचें = साम्राज्यवादी, शक्ति पूर्वक सम्पदा हड़पने की मानसिकता,
घड़ियालों से नदी कनारे : घड़ियालों से नदी के तट पर,
( मप्र को टाइगर स्टेट के बाद अब घड़ियाल स्टेट का तमग़ा। चंबल नदी पर बने घड़ियाल अभ्यारण्य में घड़ियालों की संख्या बढ़कर 1255 हो गई है। )
(मात्रात्मक यति नियति 16, 10)
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अंतर्जाली-युग मन का कुछ, हाल नहीं पाता।।
वह गुल्लक में सुख का सिक्का, डाल नहीं पाता।।
अपनी-अपनी थीं प्रवृत्तियां, हुईं काल-कवलित,
किसी काल को मैं 'कालों का काल' नहीं पाता।।
सीधे मुंह बातें करने का, समय नहीं हैं मित्र!
वह पिछड़े, जो ख़ुद को इसमें, ढाल नहीं पाता।।
बच्चे उठकर खड़े हो गये, तनकर बड़े हुए,
अब उनमें मैं पहले जैसी, चाल नहीं पाता।।
सिर सहला दूं, पीठ ठोंक दूं, शाबाशी दे दूं,
जिसे स्नेह से थपक सकूं वह गाल नहीं पाता।
अपने क़द का पा चिढ़ जाते, कवि, नेता, विद्वान,
जो ख़ुश हो, ऐसा माई का लाल नहीं पाता।।
नाकों चने चबाकर पाई, है रूखी-सूखी,
पल भर में गल जाये ऐसी, दाल नहीं पाता।।
लूट-पाट करनेवालों के, घर में भरे पड़े,
श्रमिक ज़िन्दगी-भर सोने का, थाल नहीं पाता।।
साल-गिरह चुभती कांटे सी, दिल में सालों से,
किसी साल को मन-माफ़िक मैं, साल नहीं पाता।।
राजभवन में राजनीति कर, पाऊँ 'पदम-सिरी',
ऐसे ऊंचे धांसूं भ्रम मैं, पाल नहीं पाता।।
क़लम और अभिव्यक्ति बनी हैं, जिस दिन से सहचर,
इनकी मांगें किसी हाल में, टाल नहीं पाता।।
सर्दी, गर्मी, बरखा झेलूं, क्यों आखि़र चुपचुप,
इतनी भी मोटी मैं अपनी खाल नहीं पाता।।
घालमेल की दुनिया का क्यों, केवल मैं दुश्मन,
क्योंकि सोने में तांबा मैं, डाल नहीं पाता।।
माली हालत नहीं देखता, मरता खपता है,
सैनिक सरहद पर शहीद हो, माल नहीं पाता।।
मेरे ध्वज के नीचे सारा, विश्व सिमट आये,
सिकन्दरी ये सोचें मेरा, भाल नहीं पाता।।
कोलाहल को राग कहूं क्यों, क्यों सरगम समझूं,
मैं संकट के क़दमताल में, ताल नहीं पाता।।
घड़ियालों से नदी कनारे, है ख़तरा भारी,
मछियारों में भी दमखम का, जाल नहीं पाता।
- कुमार,
शब्दार्थ-पोटली :
अंतर्जाली-युग = अंत:(inter) +जाल ( net), इंटरनेट युग,
गुल्लक = बच्चों का मिट्टी/ टीन का बचत बैंक, पिगी बैंक,
अपनी-अपनी प्रवृत्तियां = अपना अपना स्वभाव, विशेषताएं,
काल-कवलित = समय के साथ नष्ट, समय के साथ विलीन,
'कालों का काल' = समय को नियंत्रित करने वाली मृत्यु,
पद्म-श्री = कला आदि क्षेत्र की एक विशिष्ट उपाधि,
माली हालत = आर्थिक परिस्थिति,
ध्वज = सत्ता या स्वायत्तता का निशान, वर्चस्व का चिन्ह,
सिकन्दरी ये सोचें = साम्राज्यवादी, शक्ति पूर्वक सम्पदा हड़पने की मानसिकता,
घड़ियालों से नदी कनारे : घड़ियालों से नदी के तट पर,
( मप्र को टाइगर स्टेट के बाद अब घड़ियाल स्टेट का तमग़ा। चंबल नदी पर बने घड़ियाल अभ्यारण्य में घड़ियालों की संख्या बढ़कर 1255 हो गई है। )
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