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Showing posts from July, 2021

राष्ट्रीय वैराग्य-गीत

  एक राष्ट्रीय वैराग्य-गीत मत कर मेरा-मेरा, इक दिन- कुछ न रहेगा तेरा। चतुर लुटेरे ले जाएंगे, भैंसी सहित बछेरा। इक दिन, कुछ स्वर्ग-भूमि कश्मीर वणिक को, मिट्टी मोल निछावर।  हुए लेह-लदाख भी जैसे,  एंड़ी लगे महावर। दरक रहे हैं शिखर, बर्फ़ का उजड़ रहा है डेरा। इक दिन, कुछ राजकोष बनियों का होगा, राजमार्ग', नभ-पथ'' तक'''। अंटीलिया* से ट्रेनें उनकी, जाएंगी जन-पथ^ तक^^। सोने की चिड़िया° के पर°° पर°°°,उनका बने बसेरा। इक दिन, कुछ बहन-भाई*° मिलकर बदलेंगे, भारत की पहचान। लट्ठ, लठैत, लड़ाईवाला, मेरा देश महान। जनता घण्टा'° हो जाएगी, शासक क्रूर कसेरा^°। इक दिन, कुछ @कुमार, २९-३०-३१.०७.२१, ००००० शब्द शिविर /शब्दार्थ : राजमार्ग ' = सड़क सेवा, (रोड वेज़), नभ-पथ''= वायु मार्ग(एयर वेज़), उड्डयन साम्राज्य, हवाई सेवा, तक ''' = भी, सहित, ( जैसे उसने खेत, जेवर और घर तक गिरवी रख दिया। ) अंटीलिया : फैंटम आइलैंड (प्रेतात्मा द्वीप) के नाम से अटलांटिक सागर  में स्थित द्वीप का नाम है, जहां काल्पनिक कार्टून फैंटम के नायक फैंटम {भूतनाथ, (ऐसा प्रेत, जो जीवि...

ग़ज़लिका

ग़ज़लिका दि. 05.07. 2021, विषम संख्यांक दिवस, सोमवार, (17 पद), (मात्रात्मक यति नियति 16, 10) 0 अंतर्जाली-युग मन का कुछ, हाल नहीं पाता।। वह गुल्लक में सुख का सिक्का, डाल नहीं पाता।। अपनी-अपनी थीं प्रवृत्तियां, हुईं काल-कवलित, किसी काल को मैं 'कालों का काल' नहीं पाता।। सीधे मुंह बातें करने का, समय नहीं हैं मित्र! वह पिछड़े, जो ख़ुद को इसमें,  ढाल नहीं पाता।। बच्चे उठकर खड़े हो गये, तनकर बड़े हुए, अब उनमें मैं पहले जैसी, चाल नहीं पाता।। सिर सहला दूं, पीठ ठोंक दूं, शाबाशी दे दूं, जिसे स्नेह से थपक सकूं वह गाल नहीं पाता। अपने क़द का पा चिढ़ जाते, कवि, नेता, विद्वान, जो ख़ुश हो, ऐसा माई का लाल नहीं पाता।। नाकों चने चबाकर पाई, है रूखी-सूखी, पल भर में गल जाये ऐसी, दाल नहीं पाता।। लूट-पाट करनेवालों के, घर में भरे पड़े, श्रमिक ज़िन्दगी-भर सोने का, थाल नहीं पाता।। साल-गिरह चुभती कांटे सी, दिल में सालों से , किसी साल को मन-माफ़िक मैं,  साल नहीं पाता।। राजभवन में राजनीति कर, पाऊँ ' पदम-सिरी', ऐसे ऊंचे धांसूं भ्रम मैं, पाल नहीं पाता।। क़लम और अभिव्यक्ति बनी हैं, जिस दिन ...