कोविड 19 : अभिशाप या वरदान यह शीर्षक हमारा जाना पहचाना है। कोविड19 को भी पिछले 10 महीनों में जान पहचान लिया। वैक्सीन विहीन से को-वैक्सीन के वितरण और विश्व निर्यात किये जाने तक उसकी भयावहता और नियंत्रण तक के चक्र को हमने देखा। हमको जब गर्भ-ग्रहों में रहते या हमारे बजट को चरमरा कर, मास्क और सैनीटाईजर खरीदती ज़िन्दगी, इन हालातों की आदत हो गयी थी, तब इस ' को-वैक्सीन ' के जन्म की विशेष या बिल्कुल भी खुशी नहीं हुई। हम परम्परावादी भारतियों के घर जैसे बेटी जन्मी हो। भले हम बेटी बचाओ फैशन के चलते ऊपर से ख़ुशी ज़ाहिर करते फिरें, अंदर से हम मध्यमवर्गी मानसिकता के शिकार अब भी हैं। इसका कारण हमारा दिन ब दिन बेक़ाबू होता अर्थतंत्र है। बहरहाल, इस कोविड-19 के चलते लॉक डाउन की सार्वजनिक स्वीकृति के साथ हमने अपने ही घरेलू ज्ञात अज्ञातवास में, कोपभवन में या गर्भ-गृह में कैसे बिताया, यह बहुत मायने रखता है। लॉक डाउन बहुतों के लिए बहुत पीड़ा दायक रहा। नुकसानदेह रहा। बहुतों की नौकरी चली गयी। लेकिन ज़्यादातर के लिये लाभदायी भी रहा। मैं सेवा निवृत्त था। मुझे क्या रोज़गार और क्या बेरो...