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बिल्ली का भाग्य


डर्टी ,डफर ,चीटर कैट !
आई हेट यू!
अपने पीले गंदे दांत मत निपोरो । आई रियली हेट यू। मेरे सामने बिल्कुल म्यांऊं मत करो। मैं तुमसे नफ़रत करता हूं और नम्बर एक में नफ़रत करता हूं। नंबर दो में नहीं ..जहां आई हेट यू का मतलब आई लव यू होता है। आजकल युवाओं में प्रेम के मामले में इन्नोवेशन के चलते नये नये संप्रेषण के तरीके निकाले जा रहे है। मुझे कम से कम तुम युवा मत समझना। आज मैं गुस्से में हूं और चाहता हूं कि तुम पक्के तौर पर मुझे खड़ूस समझो। गुस्से में मुझे अपनी इमेज नही दिखाई दे रहीं ;केवल दिखाई दे रहा है वह पतीला जिस में शाम को फ्राई होने के लिए रखा गया भात था और तुमने उसे गिरा दिया । मुझे दिखाई दे रही है दूध से भरी हुई वह पतीली जिसमें मलाईदार दूध अभी भी रखा हुआ है और जिसे तुमने ..अरी चटोरी ,चालू ,चालाक, चोर , भड़ियाई बिल्ली ! लपलप सड़पसड़पकर जूठा कर दिया। तुम्हें पता है कि अब वह किसी इंसान के काम का नहीं रहा ? तुम्हें क्या पता ! तुम्हें तो मुंह डालने के पहले यह भी पता नहीं था कि इतना एक लीटर दूध तुम पी भी पाओगी या नहीं। बस मुंह डाल दिया।
इसके पहले तो तुम ऐसी नहीं थी। तुम सिर्फ चूहों के पीछे भागती थीं। छोटी सी प्यारी सी चितकबरी तुम हमें कितनी अच्छी लगती थीं। यह बात और है कि तुम्हारे नानवेजीटेरियन होने के कारण हम तुम्हें हाथ नहीं लगाते थे। दूसरे ...तुम्हारे बालों से मुझे एलर्जी है और तुम्हारे गंदे दांतों से घृणा। यही नहीं तुम्हारे नाखूनों से भी मुझे नफरत है, जिसके लग जाने से रेबिज का खतरा होता है। तुम रेबीज का भंडार हो। दांत, लार, नाखून। कैसे लोग तुम्हे मुंह लगाते है? मौका देखकर घर में घुस जानेवाली और खानेपीने की चीजों को खराब कर देने वाली कबरी कैट! तुम्हारे बारे में कम से कम मेरी राय तो अच्छी नहीं है। तुम्हारे कारण मेरी लाडली बच्ची कई बार डांट खा चुकी है। अगेन आई हेट यू!
यह क्या ? मुझे लग रहा है तुमने फिर दांत निपोरे। तुम मेरे गुस्से को मजाक समझ रही हो ? या फिर कैटरीना कैफ की तरह तुम केवल मुस्कुराते रहने का अभिनय कर रही हो। लगता है,यह बात तुम्हें पता चल गई है कि कैटरीना को लोग ‘कैट’ कहते हैं। अपने मतलब की चीजें सूंघने या ताड़ने में तुम बिल्लियों का जवाब नहीं। शायद यही वजह है कि पिछले कई दिनों से तुम्हारे हाव-भाव बदले हुए है। पहले तुुम आहट सुनकर भाग जाती थी। अब ‘कैटवाक’ करती हुई चली जाती हो। पहले हमें देखकर थोड़ी देर टकटकी लगाए देखती रहती थीं। आजकल यूं गुजर जाती हो जैसे देखा ही नहीं है। सचमुच ! तुम अपने को कैटरीना कैफ उर्फ ‘कैट’ समझने लगी हो। मगर डर्टी कैट ! तुम्हारे समझने से क्या होता है। तुम कैटरीना की तरह हीरोइन तो नहीं हो जाओगी। वैंप हो तुम वैंप। रामू और रामसे कैंप की वैंप। तुमने इन हारर लोगों की फिल्में देखी होगी तो देखा होगा कि तुम्हारा फ्रेम वे कैसा तैयार करते हैं। ..अंधेरी रात है..हवा चल रही है ..खिड़कियां अपने आप बंद हो रही है..खंढर हवेली में अजीब अजीब सी चीखें आ रही है... नीले लाइट में धबराई हुई हीरेाइन ऐसे मौके के लिए खास तौर से बनवाए गए पारदर्शी गाउन पहनकर ..‘‘कौन ! कौन !!’’ कहकर इधर उधर भाग रही है... क्या होने वाला है कोई नहीं जानता ...जिस रूप में लड़की को फोकस किया जा रहा है उससे कुछ चटोरे किस्म के दर्शकों को लग रहा है कि कोई विलेन टाइप का आदमी आएगा और पारदर्शी गाउन में लिपटी हुई लड़की .... बस ,एक गलतफहमी दर्शकों की धड़कनें बढ़ाने के लिए काफी है ..मगर अचानक तुम ..कबरी कैट! तुम म्यांऊ करती हुई कूद जाती हो.....तुम्हारे कूदते ही कुछ फेमिनाइन चीखें निकल जाती हैं......कुछ मैस्कुलाइन गालियां हवा में तैरने लगती है......दोनों का कहना यही होता है कि बेवकूफ डायरेक्टर ! जब बिल्ली ही कुदवानी थी तो हीरोइन को सादे कपड़े पहना देते। पर दूसरी बार फिर वे टिकट विंडों में दिखाई देते हैं कि कुछ भी कहो, गाउन में हीरोइन लग अच्छी रही थी। एक बार और देखते हैं। देख लो , तुम साइउ में हो। फिर भी तुम अपने को ‘कैट’ समझ रही हो ..यानी कैटरीना कैफ....खैर , गलतफ़हमी तो अच्छे अच्छों को हो जाती है। तुम तो फिर भी बिल्ली हो।
तुम यह मत समझना कि कैटरीना की बात करने लगा हूं तो मैं बहक गया हूं। कैट की बात करते हुए भी मैं तुमसे हैट कर रहा हूं। बिल्लो रानी ! मैं अपनी चाय के लिए रखे गए दूध को किसी ‘कैट’ या ‘बिप्स’ के साथ अदल बदल नहीं सकता। वे दूर का ढोल हैं। चाय यथार्थ की प्याली है ,जो मेरे होंठों से ,मैं जब चाहूं ,लग सकती है।
तो मैं कह रहा था मनहूस बिल्ली! कि तुम हारर फिल्मों की वैंप तो हो ही , मानव जीवन की भी वैंप हो। जिस रास्ते से तुम गुजर जाओ ,उससे आदमी नहीं गुजरते। रुक जाते है कि बिल्ली रास्ता काट गई। और यह देखते हैं कि कोई दूसरा गुजर जाए ,जिसने बिल्ली को रास्ता काटते नहीं देखा है। बिल्ली का रास्ता काटना अपसगुन है। बनते काम बिगड़ जाते हैं। मगर मैंने ऐसा कभी नहीं सोचा। मैंने कभी दूसरे आदमी का इंतजार नहीं किया क्योंकि इस अंधविश्वास पर मैं नहीं पड़ा। मगर आज तुमने मेरी चाय का रास्ता काट दिया।
अभी अभी पत्नी मुझे परेशान देखकर यह कह गई है -‘‘ जाने दो ना। आज का दूध-चांवल बिल्ली के भाग्य का था। जाओ, दो पैकेटस जाकर ले आओ। इतना दुखी होने की जरूरत नहीं है।’’
बताओ ! मैं गुस्से में दिखना चाह रहा हूं और पत्नी मुझे दुखी समझ रही है। सारी तैयारी पर पानी फेर रही है। गुस्से में दिखना और दुखी दिखने में अंतर है भाई ! अब पत्नी को कैसे समझाऊं।
पर एक चीज़ मेरी समझ में आ रही है कि बिल्ली का भी भाग्य होता है। मैंने सुना है कि बिल्ली के भाग्य से छींका टूट जाते हैं। आजकल तो खैर छींके नहीं होते। फ्रीज होते हैं और जालियां होती हैं। मगर कभी रहे होंगे। यह मेरा अनुमान है। प्रमाण इसका नहीं है। मुझे लगता है किसी गलतफहमी की वजह से यह बात बनी होगी। माखन और दही चोर श्रीकृष्ण छींके तोड़कर भाग जाते रहे होंगे। जब छींके की मालकिन आती होगी तो रामसे और रामू कैंप की बिल्ली वहां अचानक कूद जाती होगी। लोग समझते होंगे कि बिल्ली के भाग्य से छींका टूट गया होगा। बिल्ली तो तोड़ नहीं सकती। यही सही है । यह मैं मान सकता हूं परन्तु मैं नहीं मान सकता कि बिल्ली के भाग्य से छींका कभी टूटा होगा। ऐसा मान लेने से बिल्ली की बच्ची! तुम्हारा चोट्टापन कम हो जाता है। और मैं ऐसा होने नहीं दूंगा।
नहीं ,बिल्ली के भाग्य नहीं होता। होता तो सूरदास या रसखान लिखते। कहां किसी चोट्टी बिल्ली के भाग्य के बारे में उन्होंने लिखा ? कौए के भाग्य के बारे में जरूर रसखान ने लिखा है कि काग के भाग बड़े सजनी ,हरि हाथ सौं ले गयो माखन रोटी।
रसखान क्यों इतने खुश हुए ? कृष्ण ने उनके छींके में कब हाथ डाला ? जैसे बिल्ली ने मेरे घर में डाला। मेरा अपना मत है कि अगर ऐसी बात थी तो रसखान को दुखी होना था या गुस्सा करना था। इतने आनंदित क्यों हुए। क्योंकि कौए ने रोटी उनके हाथ से नहीं छीनी थी न! कहते हैं किसी की रोटी नहीं छीननी चाहिए। किसी के पीठ पर मार लो , पेट पर कभी नहीं मारना चाहिए। अब बिल्ली और कौओं को कौन तहजीब सिखाए ? ठीक है ,उस समय के लोग भाग्यवादी थे। उनका मानना रहा होगा कि दाने दाने पर खानेवाले का नाम लिखा होता है। मैं नहीं मानता।
मुझे लगता है कि ‘यही ’ मानना ठीक नहीं है। क्योंकि यह मान लेने से गुस्से की जगह शांति मिलती है। मैं गुस्सा करना चाहता हूं। किन्तु हम हर जगह कहां गुस्सा कर पाते हैं?
पिछले दिनों मेरे साथ ‘दाने दाने में खानेवाले का नाम’ विषयक हादसा हुआ। जिस ज़मीन की रजिस्ट्री मैंने पत्नी के नाम कराई थी ,उसमें उसके अलावे पचीसों गैर और अजनबी लोगों के नाम भी लिखे महसूस हुए थे। वे रजिस्टर्ड तो खैर नहीं हुए पर स्टाम्प की खरीदी से लेकर डाइवर्सन ,पंजीयन, अभिलेख , नामांकन आदि-आदि में उनके हिस्से का दाना-पानी उनको दिये बिना रजिस्ट्री की न्यायमूलक कानूनी गाड़ी आगे नहीं बढ़ी। बाद में बात-बात पर कई लोगों के नामों के दाने बांटे गए, बांटे जा रहे हैं और अनंतकाल तक बांटे जाते रहंेगे। गृहप्रवेश से लेकर त्यौहारों में ,उसके बाद, बाल-बच्चों के होने पर तथा बेहद निजी क्षणों के सार्वजनिक होने के सामाजिकीकरण के सभी मामलों में दाने-दर-दाने अनेक प्रकार के लोगों ,जातियों और प्राणियों को गए हैं।
मैंने देखा है कि आज भी रसोई में रोटी बनती है तो गाय, कुत्ते , भिखारी और मेहमानों के लिए एक या दो रोटियां सुरक्षित रखी जाती हंै। गाय ,कुत्ता और भिखारी तो खैर नियमित रूप से दरवाजे पर आकर अपनी रोटी ले जाते हैं। अतिथियों की रोटी प्रायः हमीं लोग शाम को सेंककर खा जाते हैं। ऐसा तो है नहीं कि अतिथियों को कोई काम ही नहीं है और वे टाइम देखकर बस टपक पड़ने के लिए तैयार बैठे हैं। हां ,कई बार और बनानी पड़ती है,जब सचमुच जरूरतमंद अतिथिगण या परिचित लोग आकर ,नहा-धोकर हमारी कुटिया को देवता की तरह कृतार्थ करने लगते हैं। हम धन्य होने के हाव-भाव से भर जाते हैं। ये सब संचारी या व्यभिचारी भाव न होकर ,‘संस्कारी-भाव’ हैं । कुलमिलाकर गाय, कुत्ता, भिक्षुक और अतिथि ,किसी गृहस्थ के हिस्से के वे पुण्य हैं ,जिनके न करने से उसका जीवन व्यर्थ हो जाता है।
इस पूरी सूची में बिल्लो! तुमने देखा कि तुम्हारा यानी बिल्ली का कहीं जिक्र नहीं है। तुम तो झपट्टा मारनेवाले वर्ग की हो। शेरसिंह वगैरह तुम्हारी बहन के बेटे कहलाते हैं। तुम उनकी मौसी हो। चोर चोर मौसेरे भाई की कहावतें तुम्हीं लोगों को देखकर बनी होगी। मुफ्तखोरों! तुम इसे बहादुरी समझते हो ? धिक्कार है!! मेरे प्रिय महाकवि कबीर ने तुम्हारी बड़ी बुरी भद्द की है। उन्होंने लिखा है-‘‘ जब लगि सिंह रहै बन माहिं। तब लगि वह बन फूलै नाहिं।’ सुन रही हो , इतने मनहूस हो तुम लोग। यही नहीं कबीर ने इस समस्या के उन्मूलन का उपाय भी बताया है। कहते हैं-‘उलट स्यार जब सिंहहिं खाय। तब वह बन फूलै हरियाय।।’’ वाह! वाह!! इसे कहते ईंट का जवाब पत्थर से। निकृष्ट से उत्कृष्ट की कैसी दुर्गति हो रही है, कुटिला कैट! देख रही हो?
तुम लोगों की मक्कारी पर एक कहानी मैंने पढ़ी है। भगवतीचरण वर्मा ने ‘सोने की बिल्ली ’नामक कहानी में तुम्हारी और तुम्हारे मौसेरे-चचेरे भाइयों की अच्छी कलई खोली है। एक बहू ने तुम्हारी जैसी चोर बिल्ली को फेंककर कुछ मारा। अच्छा किया। चटोरी बिल्ली बेहोश हो गई । उसके मौसेरे रिश्तेदारों यानी पंडितवर्गीय लोगों ने ‘सोने की बिल्ली’ दान करने का प्रपंच रचा। परिवार पर बला टूटने का भय दिखाया। चलिये साहब सोने की बिल्ली तैयार हुई। कहानी में हो जाती है इतनी जल्दी। और जब दान का वक्त आया तो बिल्ली उठकर भाग गई। चूंकि वह कहानी भगवती चरण की थी ,इसलिए बिल्ली भाग गई। किसी बिल्ली की कहानी होती तो शायद दंड भी निर्धारित कर देती कि हजार बिल्ली को दूध पिलाओ तो पाप कटे। हो सकता है जीवन भर रोज दस बिल्लियां दूध पीकर जाती।
बिल्लो ! मुझे एक और कहानी याद आ रही है जो मुझे ज्यादा सुकून दे रही हैगी। तुम्हें पता है- बंदरबांट की कहानी? दो बिल्लियां आपस में इसलिए लड़ पड़ी कि उन्होंने एक साथ एक ही रोटी पर झपट्टा मारा था। अब बंटवारा कैसे हो? झपट्टा मारनेवाले प्रायः बंटवारे में कमजोर होते हैं। तब एक बंदर आया। वह चालाकी से रोटी बांटने लगा। कभी एक तरफ की रोटी ज्यादा कर देता और कभी दूसरी तरफ की। जितना हिस्सा ज्यादा होता उससे ज्यादा तोड़कर खा जाता। आखिर में जब कुछ न बचा तब बिल्लियों को समझ में आया कि बंदर ने क्या किया। मुझे आज यह कहानी अच्छी लग रही है। तब अच्छी नहीं लगी थी। धोकाधड़ी मुझे कभी अच्छी नहीं लगी। पर आज चूंकि मेरा नुकसान हुआ है तो मुझे तुम्हारे पुरखों का नुकसान अच्छा लगा। शायद यहीं से चोर का माल चंडाल खाए का मुहावरा बना होगा। ओर जाके पैर न फटे बिंबाई का भी । खैर ! अब मैं थक गया हूं। अब और गुस्सा नहीं हो सकता। तुमसे अब मैं बाद में निपटूंगा।
आज इतनी ही घृणा...शेष घृणा फिर कभी ....
तब तक याद रखना-आई हैट यू! डर्टी कैट!!
तुम्हारा -
कुछ नहीं ,कोई नहीं
8. 5.10 /9 ..5.10

Comments

बहुत बढ़िया ! शायद इसलिए ही कहावत है कि बिल्ली के नौ जीवन होते हैं ... इतना ज्यादा भाग्य और किस जानवर के पास है ?
Dr.R.Ramkumar said…
जी हां , लोग तो यहां तक कहते हैं.. ‘‘नौ सौ चूहे खाकर बिल्ली हज को जाए’’
क्या बात है आज फिर एक नया विषय, सबसे मजबूत और दमदार बात तो ये की झपट्टा मारने वाले प्रायः बंटवारे में कमजोर होते हैं.सच सोचने पर मजबूर कराता है आपका ये वक्तव्य
Dr.R.Ramkumar said…
रचना जी!
धन्यवाद ,
कि इस गंभीरता से आपने पढ़ा ओर उस जगह पर आपको सहमति व्यक्त करने ठिठकना पड़ा जहां बात आपके ख्याल के नजदीक पहुंची। अनुभूतियों की यही तो मंजिल है कि अभिव्यक्त होने के बाद उसे हमसफर मिल जाएं..
इसके पहले तो तुम ऐसी नहीं थी। तुम सिर्फ चूहों के पीछे भागती थीं। छोटी सी प्यारी सी चितकबरी तुम हमें कितनी अच्छी लगती थीं।

लगता है,यह बात तुम्हें पता चल गई है कि कैटरीना को लोग ‘कैट’ कहते हैं। अपने मतलब की चीजें सूंघने या ताड़ने में तुम बिल्लियों का जवाब नहीं। शायद यही वजह है कि पिछले कई दिनों से तुम्हारे हाव-भाव बदले हुए है। पहले तुुम आहट सुनकर भाग जाती थी। अब ‘कैटवाक’ करती हुई चली जाती हो। पहले हमें देखकर थोड़ी देर टकटकी लगाए देखती रहती थीं। आजकल यूं गुजर जाती हो जैसे देखा ही नहीं है। सचमुच ! तुम अपने को कैटरीना कैफ उर्फ ‘कैट’ समझने लगी हो। मगर डर्टी कैट !


बात है ....आपकी अभिव्यक्ति का जवाब नहीं...कितनल चतुराई और सफाई से आप चीविद्रूपताओ पर झपट्टा मारते हैं..सारी ..आपके ही षब्द हैं..अच्छै लगे..झपट्टा मारनेवालों पर अच्छा कटाक्ष है
Kumar Koutuhal said…
तुम तो झपट्टा मारनेवाले वर्ग की हो। शेरसिंह वगैरह तुम्हारी बहन के बेटे कहलाते हैं। तुम उनकी मौसी हो। चोर चोर मौसेरे भाई की कहावतें तुम्हीं लोगों को देखकर बनी होगी। मुफ्तखोरों! तुम इसे बहादुरी समझते हो ? धिक्कार है!! मेरे प्रिय महाकवि कबीर ने तुम्हारी बड़ी बुरी भद्द की है। उन्होंने लिखा है-‘‘ जब लगि सिंह रहै बन माहिं। तब लगि वह बन फूलै नाहिं।’ सुन रही हो , इतने मनहूस हो तुम लोग। यही नहीं कबीर ने इस समस्या के उन्मूलन का उपाय भी बताया है। कहते हैं-‘उलट स्यार जब सिंहहिं खाय। तब वह बन फूलै हरियाय।।’’ वाह! वाह!! इसे कहते ईंट का जवाब पत्थर से। निकृष्ट से उत्कृष्ट की कैसी दुर्गति हो रही है, कुटिला कैट! देख रही हो?


बहुत जन्नाटेदार बात...
कबीर जैसे प्रखर महाकवि को बीच में डालकर आपने इसकी झनझनाहट को तेज कर दिया
बधाई
बहुत बढ़िया
kumar zahid said…
मुफ्तखोरों! तुम इसे बहादुरी समझते हो ? धिक्कार है!! मेरे प्रिय महाकवि कबीर ने तुम्हारी बड़ी बुरी भद्द की है। उन्होंने लिखा है-‘‘ जब लगि सिंह रहै बन माहिं। तब लगि वह बन फूलै नाहिं।’ सुन रही हो , इतने मनहूस हो तुम लोग। यही नहीं कबीर ने इस समस्या के उन्मूलन का उपाय भी बताया है। कहते हैं-‘उलट स्यार जब सिंहहिं खाय। तब वह बन फूलै हरियाय।।’’ वाह! वाह!! इसे कहते ईंट का जवाब पत्थर से। निकृष्ट से उत्कृष्ट की कैसी दुर्गति हो रही है, कुटिला कैट! देख रही हो?
Anonymous said…
लो मैंने पुल बना लिया,देखा बिल्ली की बाते हैं और उसके मद्ध्य्म से कितना कुछ कह गए मित्र !
फुर्सत से आराम से पढूंगी दोबारा उसके बाद ही अपने व्यूज़ दूंगी अभी तो आई हूँ ...............
एक पुल बनाने जिससे हम एक दुसरे से मिल सकें.आपका आईडिया पसंद आया .मैं भी नई ही हूँ,लिखना आता है बस. और कुछ नही आता.
स्नेह
Baujee,
Ek baat bolu, poore aadar samman sahit.....
Khisiyaani Billi Khmaba Noche!
Ha ha ha ha ha....
Ye raha Flyover!!!!!
Dr.R.Ramkumar said…
indu ji ,
aapke ye kahne k लो मैंने पुल बना लिया,
aur aasheesh ji,
Aap ne kaha
Ye raha Flyover!!!!!
Bas ab ab barbas bas chalegi,
Ab sab kuchh aapke aur Hamar bas me aa gaya...bas chlegi zaroor...
अब प्रश्न उठता है कि दम क्या है ? उसके गुण-सूत्र क्या हैं ? मुझे तो आपकी बातों मे दम लगा और उसके गुणसूत्र ही पाठकों को बाँधने मे सक्षम है सही मे उत्कृष्ट दमदार चिन्तन और लेखन है बधाई
बहुत सुन्दर पोस्ट!

बिल्ली तो बस! माध्यम है, भावों की अभिव्यक्ति आप बहुत सहजता से कर देते हैं....

लेखन के लिए शुभ्कमानायें...
एक बिचारी बिल्ली के माध्यम से कितने कटाक्ष कर डाले हैं.....बहुत ही बढ़िया आलेख...लाजवाब...

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